मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

सेवानिवृत्ति


आयुध निर्माणी बोर्ड कोलकाता की राजभाषा पत्रिका उन्मेष से ----
लघुकथा

सेवानिवृत्ति
-- --- मनोज कुमार

उस दिन दफ़्तर में पेपर कटिंग की एक छाया प्रति ख़ूब वितरित हो रही थी। किन्हीं विश्‍वस्त सूत्रों का हवाला देकर यह बताया गया था कि सरकार सेवानिवृत्ति की सीमा 60 वर्ष की जगह 62 वर्ष करने पर विचार कर रही है। अनुमान यह भी लगाया जा रहा था कि प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाक़िले से देश को संबोधित करते वक़्त इसकी घोषणा भी कर देंगे। अनुभागों में कर्मचारियों के बीच इसकी मिश्रित प्रतिक्रिया थी। पर ज़्यादातर काफी ख़ुश थे। शाम को घर जाते वक़्त श्यामली और रूपसी लिफ्ट में मिलीं। अलग-अलग अनुभागों में कार्यरत होने के कारण दिनभर उनका मिलना हो नहीं पाया था। वे पक्की सहेली हैं। श्यामली बोली, सुना है सरकार 62 करने जा रही है।
रूपसी बोली, हाँ, आज सब पेपर कटिंग लेकर घूम रहे थे।
अब तो मर ही जाऊँगी। ये जोड़ों का दर्द, उसपर बढ़ती उम्र। सोच रही थी कि इस महीने रिटायर हो जाऊँगी, तो घर पर बैठकर आराम करूँगी। अब तो दो साल और काम करना पड़ेगा। उफ! अब नहीं होगा हमसे।
हां, री रूपसी बोली, सरकार का कौन सा नियम है यह, जो बूढ़े हैं, रोगग्रस्त हैं, उनसे और काम लेना चाहती है। इससे तो अच्छा होता जवान लड़कों से काम लेती, जो बिना काम के इधर-उधर घूमते रहते हैं।
पंद्रह अगस्त को श्यामली और रूपसी ऑफिस के ध्वजारोहण कार्यक्रम में नहीं जाती हैं। अपने-अपने घर में टीवी पर आ रहे स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का लालक़िले से सीधा प्रसारण देख रहीं हैं।
प्रधानमंत्री का भाषण समाप्त हो गया, पर उस तरह की कोई घोषणा नहीं हुई। श्यामली काफी दुखी एवं उदास हो गई। उसे इसी महीने सेवानिवृत्त होना पड़ेगा। तभी मोबाइल पर रूपसी का फोन आया। श्यामली, अगले महीने से हम ऑफिस नहीं जा रहें हैं। हमें घर में ही बैठना होगा।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. सच है की कभी भी मन संतुष्ट नहीं होता.....अच्छी लघुकथा...मानवीय सोचों को उजागर करती हुई

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