tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post4350528979156042749..comments2024-03-14T12:42:05.665+05:30Comments on राजभाषा हिंदी: हिन्दी उपन्यास–उद्भव संबंधी मान्यताराजभाषा हिंदीhttp://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-71815545629168202332011-07-10T21:15:07.936+05:302011-07-10T21:15:07.936+05:30हिंदी उपन्यास...उद्भव और विकास पर एक बहुत ही सार्थ...हिंदी उपन्यास...उद्भव और विकास पर एक बहुत ही सार्थक लेख....<br />नामवर सिंह का विश्लेषण ........बहुत अच्छा लगासुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-83589929654085802682011-07-10T14:35:38.197+05:302011-07-10T14:35:38.197+05:30हिंदी उपन्यास का उद्भव पश्चिमी साहित्य की देन है। ...हिंदी उपन्यास का उद्भव पश्चिमी साहित्य की देन है। सर्वप्रथम बांगला साहित्य में इस विधा की शुरूआत हुई एवं कालान्तर में हिंदी साहित्य से जुड़े साहित्यकारों ने इसे देश काल एवं तदयुगीन वातावरण के साथ तादाम्य स्थापित कर इस विधा को एक अलग पहचान दी। पोस्ट प्रशंसनीय है।<br />सुझाव है-Allegary की जगह Allegory लिखें।<br />धन्यवाद सर।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-36347407935777301812011-07-10T09:04:57.538+05:302011-07-10T09:04:57.538+05:30हिन्दी उपन्यास-उद्भव सम्बन्धी मान्यता पर इस रचना म...हिन्दी उपन्यास-उद्भव सम्बन्धी मान्यता पर इस रचना में काफी रोचक व सशक्त सामग्री दी गयी है। साधुवाद।आचार्य परशुराम रायhttps://www.blogger.com/profile/05911982865783367700noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-42832287709994465552011-07-10T01:37:17.333+05:302011-07-10T01:37:17.333+05:30ज्ञानवर्द्धक और छात्रोपयोगी लेख...धन्यवादज्ञानवर्द्धक और छात्रोपयोगी लेख...धन्यवादचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-87184590891232679062011-07-09T21:33:05.069+05:302011-07-09T21:33:05.069+05:30अधिकांश उपन्यासकार अपने पात्रों को अपने हाथों की क...अधिकांश उपन्यासकार अपने पात्रों को अपने हाथों की कठपुतलियां बना कर छोड़ते हैं, जिससे वे पूर्णतया अस्वाभाविक प्रतीत होते हैं और हमारे जीवन से दूर हट जाते हैं तथा हमारी सहानुभूति का अधिकार भी खो देते हैं. शरत बाबु के विप्रदास, प्रेमचंद के सूरदास और होरी की स्वाभाविकता इतनी है कि वे हमारी अपनी धरती के जन्मे प्रतीत होते हैं. इसके विपरीत अज्ञेय का शेखर ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती और आकाश के बीच कल्पनाओं के धरातल पर उत्पन्न हुआ है. अज्ञेय ने शेखर की प्रेरणा प्रसिद्ध पाश्चात्य उपन्यासकार रोम्या रोलाँ के ज्याँ क्रिस्ताफ से ली है. कहना चाहूंगी की कल्पना का संतुलित प्रयोग होना चाहिए जिससे कथानक की स्वाभाविकता नष्ट न हो क्यूंकि कल्पना का अत्यधिक प्रयोग भी कथानक को अविश्वसनीय बना देता है. अतः यह भी निश्चित है की उपन्यासकार को अपने पात्रों के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. चरित्र जितने ही जाने पहचाने और स्वाभाविक होते हैं उतनी ही उपन्यासों की सफलता असंदिग्ध होती है.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-76792463048665886842011-07-09T19:33:09.963+05:302011-07-09T19:33:09.963+05:30उपन्यास आधुनिक युग की उपज है - उस युग की जिसका दृष...उपन्यास आधुनिक युग की उपज है - उस युग की जिसका दृष्टिकोण सर्वथा व्यक्तिवादी हो गया है, अराजकता का बोलबाला है, बाहरी दुनिया में तो कम, हमारे आंतरिक जगत में अधिक। समष्टि को दबाकर व्यक्ति ऊपर उठ आया है। इन्हीं परिस्थितियों का प्रतिफल हमारा उपन्यास साहित्य है। प्रेमचंद ने कहा है कि मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल त्तत्व है। <br /><br />ज़ाहिर है कि भारतीय परंपरा ऐसी नहीं थी। यहाँ तो समाज सर्वोपरि था और वसुधैव कुटुंबकम्, सर्वे भवंतु सुखिनः का भाव प्रचलित था। अतः इसी तत्व के आधार पर उपन्यास के उद्भव पर विचार किया जाना सही रहेगा। गद्य की परंपरा की शरुआत कादंबरी से माना जा सकता है। कथानकों में परिवर्तन सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार होता रहा। <br /><br />मनोज जी का अच्छा प्रयास है।डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-39190448540192117472011-07-09T19:31:09.270+05:302011-07-09T19:31:09.270+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-53111198718262298912011-07-09T18:59:26.434+05:302011-07-09T18:59:26.434+05:30आपके यह आलेख विज्ञान के विद्यार्थी को भी साहित्य स...आपके यह आलेख विज्ञान के विद्यार्थी को भी साहित्य से लुभाने लगे हैं.. उपन्यास पढना एक बात है और उनकी वैज्ञानिक जेनेसिस दूसरी बात.. यहाँ आकर अपने बौनेपन का एहसास होता है!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-57746003551934461852011-07-09T18:12:53.078+05:302011-07-09T18:12:53.078+05:30बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ||
बधाई ||बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ||<br />बधाई ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-11998092493106407162011-07-09T15:25:58.488+05:302011-07-09T15:25:58.488+05:30आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज ...आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....<br /><br /><br /><a href="http://tetalaa.nukkadh.com/2011/07/blog-post_09.html" rel="nofollow"> ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर </a>संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-23081834915244910862011-07-09T15:23:02.889+05:302011-07-09T15:23:02.889+05:30हिंदी गद्य साहित्य, विशेषकर उपन्यास विधा के बारे म...हिंदी गद्य साहित्य, विशेषकर उपन्यास विधा के बारे में तथ्पूर्ण विश्लेषण रोचक, सर्गाभित एयर चिंतान्परल लगा. अभी तो इतना ही शेष मनन करने के बाद. सराहनीय पोस्ट. बधाई स्वीकार करें सार्थक संचयन के लिए. आपकी खोजी वृत्ति को सलाम.Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-58426220979013163632011-07-09T14:47:51.348+05:302011-07-09T14:47:51.348+05:30आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बला...आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू<br />लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/<br /> <br />मै नइ हु आप सब का सपोट chheya<br /> joint my followervidhyahttps://www.blogger.com/profile/04419215415611575274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-23447643091991427742011-07-09T10:46:55.652+05:302011-07-09T10:46:55.652+05:30एक अर्थपूर्ण प्रस्तुति। आभार इस ज्ञानवर्धक आलेख के...एक अर्थपूर्ण प्रस्तुति। आभार इस ज्ञानवर्धक आलेख के लिए।हास्यफुहारhttps://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-22698044094531437442011-07-09T09:45:53.346+05:302011-07-09T09:45:53.346+05:30नामवर जी का विश्लेषण सटीक प्रतीत होता है.नामवर जी का विश्लेषण सटीक प्रतीत होता है.vijai Rajbali Mathurhttps://www.blogger.com/profile/01335627132462519429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-23402739061745915002011-07-09T09:09:00.687+05:302011-07-09T09:09:00.687+05:30हिंदी उपन्यास सम्बन्धी धारणाओं को जानकार ज्ञानवर्...हिंदी उपन्यास सम्बन्धी धारणाओं को जानकार ज्ञानवर्धन हुआ ...वैसे हिंदी उपन्यास ही क्या किसी भी विधा के सम्बन्ध में विद्वानों के विचारों में मतैक्य नहीं है ..चाहे वह काल विभाजन सम्बन्धी हो या विधा सम्बन्धी ....लेकिन आपने विचारों को संतुलित रूप से प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया है ...आपका आभारकेवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.com