tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post7919266397002026372..comments2024-03-14T12:42:05.665+05:30Comments on राजभाषा हिंदी: यथार्थवादी और समस्या नाटक का विकासराजभाषा हिंदीhttp://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-7733692195192950512013-03-11T11:07:52.409+05:302013-03-11T11:07:52.409+05:30Admiring the commitment you put into your site and...Admiring the commitment you put into your site and in depth information you provide.<br />It's nice to come across a blog every once in a while that isn't the same out of date rehashed information.<br /><br />Great read! I've saved your site and I'm including your RSS feeds <br />to my Google account.<br /><br />Stop by my blog: <a href="http://www.erovilla.com" rel="nofollow">http://www.erovilla.com</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-26114542448147717622013-02-22T17:45:59.896+05:302013-02-22T17:45:59.896+05:30In fact when someone doesn't know after that i...In fact when someone doesn't know after that its up to other visitors that they will assist, so here it occurs.<br /><br />Feel free to surf to my web blog ... <a href="http://smallcockhumiliation.thumblogger.com" rel="nofollow">http://smallcockhumiliation.thumblogger.com</a><br /><i>my webpage</i>: <b><a href="http://milfsoupmoms.thumblogger.com" rel="nofollow">Click To Find</a></b>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-55342829740135467232011-09-01T10:46:53.542+05:302011-09-01T10:46:53.542+05:30आपकी इस श्रृंखला से नाटक विधा के महत्त्व का पता चल...आपकी इस श्रृंखला से नाटक विधा के महत्त्व का पता चला .. कभी विस्तृत रूप में इस विषय पर नहीं पढ़ा था ..साधुवादसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-71262904693621115792011-08-31T17:52:54.262+05:302011-08-31T17:52:54.262+05:30मनोज भाई!!
इतना बारीक और गहन अध्ययन मैंने किया ही ...मनोज भाई!!<br />इतना बारीक और गहन अध्ययन मैंने किया ही नहीं.. यह श्रृंखला भी मुझे अपने बौनेपन का एहसास कराती है!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-14990862813976344112011-08-31T12:54:04.464+05:302011-08-31T12:54:04.464+05:30प्रेमसरोवर जी की बातों से सहमत.
ईद की बधाई और शुभ...प्रेमसरोवर जी की बातों से सहमत. <br />ईद की बधाई और शुभकामनायें....शमीमhttps://www.blogger.com/profile/17758927124434136941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-80303910959757550512011-08-30T10:27:31.854+05:302011-08-30T10:27:31.854+05:30नहीं पढ़ी हमने इतनी सुन्दर रचना ,भाव विभोर करती ,मन...नहीं पढ़ी हमने इतनी सुन्दर रचना ,भाव विभोर करती ,मनमोर को नचाती ,मुस्काती ,भाषिक सौन्दर्य और प्रतिमान बिखेरती ,इठलाती अल्हड सी किसी गाँव की पगडण्डी पर ,कुए की मैंड पे खड़ी चकली चलाती ....<br />आपकी ब्लोगिया हाजिरी के लिए आभार .<br />नाटकों का इतिहास समस्या मूलक नाटकों के कथ्य को उजागर करती एक महत्वपूर्ण पोस्ट .अच्छी सेवा कर रहें हैं आप आईदा आने वाले शोध छात्रों के लिए बहु -उपयोगी .<br />सोमवार, २९ अगस्त २०११<br />क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?<br />http://veerubhai1947.blogspot.com/<br />Monday, August 29, 2011<br />विशेषधिकार की बात करने वालों से दो टूक .<br /><br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-88121630895198754352011-08-30T09:45:47.476+05:302011-08-30T09:45:47.476+05:30दुर्भाग्य है कि आज नाटक को हिंदी ने मूल धारा से अल...दुर्भाग्य है कि आज नाटक को हिंदी ने मूल धारा से अलग करके देख रहा है... इस कारण से इस विधा पर विस्तार से चर्चा नहीं हो पा रही... रंग मंच से भी स्वयं को अलग कर लिए है... आपका यह आलेख नई जानकारियां दे रहा है... बहुत सुन्दर...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-72814228657142301262011-08-30T08:07:38.162+05:302011-08-30T08:07:38.162+05:30श्री मनोज कुमार जी,
यह अकाट्य सत्य है कि भारत में ...श्री मनोज कुमार जी,<br />यह अकाट्य सत्य है कि भारत में नाट्य-विधा की नींव अंग्रेजी नाटकों के आधार पर ही पड़ी थी । यह बात जिगर है कि नाटककारों ने इस विधा को अपने-अपने बौद्धिक स्तर पर तदयुगीन समस्याओ को केंद्रित कर अपने नाटकों को लिखा । समस्यामूलक नाटकों के लिखने की पृष्ठभूनि में नाटककार समाज के साथ तादाम्य स्थापित कर नाटकों में नूतन समस्याओ को तरजीह देता था । उस समय समाज में कुछ लोग पुरातनपंथी विचारों से प्रभावित होने के कारण इसका विरोध करना शुरू कर दिए पर कुछ लोग ऐसे भी निकले जो नाटककारों के नाटकों के साथ सहानुभूति भी रखे एवं उन पुरातनपंथी लोगों के विचारों का विरोध भी किए । इन य़थार्थवादी नाटकों ने समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं शोषित और पीड़ित जनमानस के अतर्मन में समाज की व्यवस्थाओ के प्रति बढ़ते दंश को अदभाषित करने की शैली एवं अंदाज को सही परिप्रेक्ष्य में वरीयता दी जिसके कारण इन नाटकों के वर्चस्व को नकारा नही जा सका । अशिक्षित जनता के मध्य इन नाटकों का व्यापक प्रभाव पड़ा । लक्ष्मीनारायण मिश्र का नाटक 'संयासी' अपने समय का बहुच्रर्चित नाटक रहा है । इस बार का पोस्ट बहुत ही ज्ञानपरक लगा । इस विधा पर आपके पोस्ट का मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है । <br /><br />सादर।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.com