tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post5107296010538459627..comments2024-03-14T12:42:05.665+05:30Comments on राजभाषा हिंदी: चलिए अन्ना गाँव की ओरराजभाषा हिंदीhttp://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-43587482983529150262011-08-18T07:15:56.006+05:302011-08-18T07:15:56.006+05:30आपने यह सही लिखा है-
जानता वो नहीं है जो उनके साथ ...आपने यह सही लिखा है-<br /><b>जानता वो नहीं है जो उनके साथ जंतर मंतर पर थी या ई-मेल और फ़ोन के जरिये उनका साथ दे रही थी. जनता वो है जो आज भी दो जून की रोटी के लिए लड़ रही है. जनता वो है जिसके हिस्से का इंदिरा आवास पंचायत तक पहुच कर भी उस तक नहीं पहुचता. जनता वो है जिसे अपने मनरेगा की मजदूरी के लिए गाँव के मुखिया को आधी मजूरी देनी पड़ती है. सरकार न्यूनतम मजदूरी तय करती है और जिन्हें बारह घंटे काम करने के बाद भी वो मजदूरी नहीं मिलती है वे है जनता. </b><br /><br />जनता के बीच जाकर उससे जुड़ना और उसको शिक्षित करना मेहनत और धैर्य का काम है। अन्ना का आंदोलन अब देखिये आगे कहां किधर जाता है मामला।अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-8079053562129032462011-08-16T17:10:34.326+05:302011-08-16T17:10:34.326+05:30सचमुच बहुत बढिया और सामयिक मुद्दा बेहतरीन तरीके से...सचमुच बहुत बढिया और सामयिक मुद्दा बेहतरीन तरीके से उठाया आपने. फिलहाल मामला तो अब शुरु हुआ है, देखें क्या होता है.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-16506860258239398122011-08-12T14:52:27.117+05:302011-08-12T14:52:27.117+05:30जी बिल्कुल सच..
मेरा भी यही मानना है कि अन्ना का म...जी बिल्कुल सच..<br />मेरा भी यही मानना है कि अन्ना का मुद्दा सही है, पर तरीका गलत है। उनके साथ के लोग महत्वाकाक्षी हैं। <br />दरअसल देश भर से मिले समर्थन का ये तथाकथित सिविल सोसायटी गलत इस्तेमाल कर रही है। इन्हें अपना प्रस्तावित लोकपाल विल सरकार को सौंपना चाहिए था और किसी भी ड्राप्ट कमेटी में शामिल नहीं होना चाहिए था। सरकार इस कमेटी में राजनीतिक दलों के नेताओं को शामिल करती, जिनके जरिए बिल पर सहमति बनाने का प्रयास होता। पर अब इन्होने बहुत विरोधी पैदा कर लिए हैं। सरकार इनकी मांग मान भी ले तो संसद में बिल पास नहीं हो सकता।<br /><br />सार्थक लेखमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-382987346394062792011-08-09T23:31:30.137+05:302011-08-09T23:31:30.137+05:30arun ji ne acchha mudda uthaya aur us par acchha v...arun ji ne acchha mudda uthaya aur us par acchha vishleshan bhi kiya..baaki sab ne bhi apni soch shakti ke hisab se mudde par apne vichar diye...lekin mujhe samajh nahi aata...sab yahin blogs par hi sujhaav aur samasyaai bata rahe hain....koi anna tak pahunchne ki sochte tak nahi hain..vo anna us janmans tak kya pahuch kar samjhayenge....jab samjhe hue log hi unke sath nahi khade hain????<br /><br />dusri baat लोकतान्त्रिक देश में जब आपको किसी खास स्थल पर विरोध प्रदर्शन नहीं करने दिया जाय तो इस से बड़ी अलोकतांत्रिक बात और क्या होगी. bahut hi sharm ki baat hai har us voter ke liye jo aisi sarkar chun kar unhe ye fainsle sunane ka hak dete hain. <br /><br />vipaksh bhi isi thali ki chtti-batti hai isme koi do-rai nahi.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-83201143949366519382011-08-09T23:28:38.283+05:302011-08-09T23:28:38.283+05:30अपने देश में समर्थन के मत में तब्दील न होने की सुद...अपने देश में समर्थन के मत में तब्दील न होने की सुदीर्घ परम्परा है। अन्ना को चुनाव लड़ने की ज़रूरत नहीं है,मगर भ्रष्ट जनता भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कोई ठोस मुहिम छेड़ पाएगी,संदेह है।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-39790735040341250912011-08-09T22:20:20.737+05:302011-08-09T22:20:20.737+05:30अरुण जी बहुत ही सही समय पर आपने इस मसले को उठाया ह...अरुण जी बहुत ही सही समय पर आपने इस मसले को उठाया है। लगभग सत्तर साल पहले इन्हीं दिनों बापू की अगुआई में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के लिए तब के बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में देश के शीर्ष नेता जुटे थे। करो या मरो का नारा बुलंद हुआ। ब्रिटिश सरकार से लोहा लेने के बुलंद हौसले के साथ साथ सिर्फ़ एक आधार था- व्यापक जनसमर्थन। जिस सख्स ने आवाज़ लगाई थी, उसने अपना होमवर्क किया था सही मायने में। गांव-गांव घूम-घूम कर उसने लोगों तक अपनी बात पहुंचाई थी।<br /><br />दौर बदल चुका है। अपना राज है। लेकिन वाजिब हक़ की लड़ाई के लिए छटपटाहट लोगों में आज भी बनी हुई है। जन-समर्थन के लिए होमवर्क नहीं हो रहा। एस.एम.एस. से जनसमर्थन नहीं जुटते। जनता की भावना की नुमाइंदगी जंतर-मंतर से मंतर फ़ूंककर नहीं आने वाले। आज़ादी के दूसरे संघर्ष का नाम काफ़ी नहीं है। गांधीवादी रास्ते पर चलना इतना आसान भी नहीं है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-68429053289495379832011-08-09T21:33:29.916+05:302011-08-09T21:33:29.916+05:30लोग कैसे कह रहे हैं कि-
1.लोकपाल विधेयक के अधिनिय...लोग कैसे कह रहे हैं कि-<br /> 1.लोकपाल विधेयक के अधिनियम बनने के बाद भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। इसे रोकने के लिए Prevention of Corruption Act,1984 भी बना था। उसका प्रत्यक्ष परिणाम हम सबके सामने ही है।<br />2.हम किस लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं जहाँ शांतिपूर्ण रूप से प्रदर्शन करने वाले निरीह बच्चों, महिलाओं एवं सोये हुए लोगों को पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया।<br />3.उस लोकतंत्र का क्या होगा जब हमें सरकार की नीतियों के विरूद्ध अपनी आवाज उठाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी ।<br />कहना तो बहुत है लेकिन मैं अपनी लेखनी को यही विराम देता हूँ। सार्थक पोस्ट।<br />धन्यवाद।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-49035506162734589762011-08-09T19:27:24.875+05:302011-08-09T19:27:24.875+05:30बहुत ही संतुलित और भावनाओं में बहकर नहीं बल्कि यथा...बहुत ही संतुलित और भावनाओं में बहकर नहीं बल्कि यथार्थ के धरातल पर लिखी गयी पोस्ट!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-33451641634893890212011-08-09T16:37:55.963+05:302011-08-09T16:37:55.963+05:30जो गाँव की ओर नहीं जा सकता है वह देश में जन नेतृत्...जो गाँव की ओर नहीं जा सकता है वह देश में जन नेतृत्व नहीं कर सकता...बिल्कुल सहमत!!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-54003777567225135452011-08-09T15:33:52.427+05:302011-08-09T15:33:52.427+05:30इतना तो है अन्ना का मुद्दा कमजोर पड रहा है शायद उत...इतना तो है अन्ना का मुद्दा कमजोर पड रहा है शायद उतनी बुलन्दी से अब अन्ना भी अपनी बात नही रख पा रहे कारण क्या है उसका हम लोग चाहे कितना विश्लेषण कर लें मगर जब तक जनता मे जागृति नही आयेगी अपने हक के लिये जनता खुद लडना नही सीखेगी कोई अन्ना कुछ नही कर सकता । बापू के साथ भी देश की सारी जनता का समर्थन था तभी देश आज़ाद हो पाया और आज भी उसी दौर से गुजर रहा है देश मगर अभी क्रांति की लहर जनमानस के लहू तक नही पहुंची है जिस दिन बच्चे बच्चे के दिल और दिमाग मे ये बात आ जायेगी देश का भविष्य खुद-ब-खुद सुधर जायेगा।<br />वैसे अरुण जी आपने काफ़ी गंभीर मुद्दा उठाया है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-84661733179855237792011-08-09T13:32:14.882+05:302011-08-09T13:32:14.882+05:30बहुत राजनीति की बातें नहीं जानती ..पर इतना तो ज़रू...बहुत राजनीति की बातें नहीं जानती ..पर इतना तो ज़रूर है कि जनता संशय में आ गयी है ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-71040558875299643592011-08-09T12:54:15.127+05:302011-08-09T12:54:15.127+05:30अन्ना ने अत्यधिक जिद पकड़ ली इसलिए वे मौका हाथ से ख...अन्ना ने अत्यधिक जिद पकड़ ली इसलिए वे मौका हाथ से खो बैठे . क्योंकि भारतीय संविधान में <br /><br /> संशोधन की पूरी सुविधा है @ विजय माथुर - दो लाख गबन वाली बात पची नहीं . यदि ऐसा होता<br /><br /> तो राम देव की तरह इन्हें भी C B I के शिकंजे में ले लेतीगिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-12219373531694516152011-08-09T12:06:17.619+05:302011-08-09T12:06:17.619+05:30पहली बात तो यह कि 'राजनीति' यथानाम राज करन...पहली बात तो यह कि 'राजनीति' यथानाम राज करने की नीति है और इतिहास साक्षी है कि इस प्रकार के आंदोलन जीवित रखने के लिये विकट जीवट चाहिये। <br />विजय माथुर साहब जो कह रहे हैं उससे बेहतर कुछ कह पाते अगर वे इस आंदोलन के औचित्य पर विश्लेषण प्रस्तुत करते। <br />भ्रष्टाचार विश्वव्याप्त रोग है इसलिये देश-विशेष की बात ही करना बेकार है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार का चयन जनता करती है या कुछ और इसे देखा जाये तो स्पष्ट है कि राजनीति एक बड़ा जुआघर है। किसी दल की प्राथमिक सदस्यता प्राप्त करने से राजनीति में भ्ररूटाचार करने योग्य पद पाने तक की दौड़ में कई दम तोड़ देते हैं। ऐसी मारा-मारी वाली स्थिति में भ्रष्टाचार तो अंतहीन होगा ही। <br />ऐसा भी नहीं है कि सभी राजनीतिज्ञ भ्रष्ट हैं। ऐसा भी नहीं कि जो स्वच्छ हैं वे जनता में प्रिय नहीं।<br />हॉं अधिकॉंशत: वोट का माहौल खींचने में नोट का प्रभाव स्पष्ट है। <br />जहॉं मीडिया में समाचार का आधा समय इसी बात में जाता है कि 'ये समाचार हम सबसे पहले आपके पास लाये हैं' वहॉं आप सही वोट का माहौल बनाने में मीडिया से भी अपेक्षा नहीं रख सकते। <br />कुल मिलाकर देखा जाये तो अभी स्वच्छ राजनीति की स्थिति का समय भारतवर्ष में तो नहीं आया है। अभी समय है। <br />अन्ना हजारे के लिये बेहतर होता कि कुछ शुरूआत तो होने देते और फिर सिद्ध करते कि लोकपाल और बेहतर कैसे हो सकता है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-15488267170304791152011-08-09T12:01:40.503+05:302011-08-09T12:01:40.503+05:30@ डॉ. यादव
आपने सही कहा है कि अन्ना की टीम गाँव की...@ डॉ. यादव<br />आपने सही कहा है कि अन्ना की टीम गाँव की ओर का रुख नहीं कर सकती और जो गाँव की ओर नहीं जा सकता है वह देश में जन नेतृत्व नहीं कर सकता. यदि आपने ने संयुक्त समिति में सरकार के नुमायिन्दो को प्रभावित नहीं कर सके तो वह विफलता है. इस मुद्दे को नए सिरे से उठाना होगा. पूरी रणनीति के साथ.अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-89411849022541837902011-08-09T11:53:35.875+05:302011-08-09T11:53:35.875+05:30@ उत्साही जी
बहुत दिनों बाद आप मेरी किसी रचना पर आ...@ उत्साही जी<br />बहुत दिनों बाद आप मेरी किसी रचना पर आये हैं. अच्छा लगा. आपके मत से पूरी तरह सहमत होते हुए कहना चाहता हूँ कि जनता के बीच जाने का तात्पर्य इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाना. अगले चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा होने वाला है. सरकार अभी अन्ना के दवाब से निकल आई है. आज भी देश के सभी समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर खबर है कि अन्ना की टीम को बुरारी मैदान अनशन के पसंद नहीं आया. दिल्ली पुलिस दो दिनों में वैकल्पिक स्थान सुझाएगी. यह सब प्रायोजित सा नहीं लगता क्या. इस से सत्याग्रह की गंभीरता ख़त्म हो रही है. संसदीय व्यवस्था में विरोध का भी अपना महत्व है. इमर्जेंसी के बाद बहुत कुछ तो नहीं बदला लेकिन राजनीतिक चेतना तो जनमानस में आई ही. अन्ना ने जिस तरह से इस मुद्दे को उठाया था.. एक और क्रांति और आन्दोलन का शक्ल दे सकते थे इसे लेकिन लगता नहीं है कि ऐसा हुआ है. यदि वे जनसमर्थन नहीं जुटाते हैं तो उनके इस आन्दोलन से भारतीय लोकतंत्र को लाभ से अधिक हानि ही होगी.... आगे सभी होने वाले आन्दोलन के समक्ष एक असफल आन्दोलन की परछाई खड़ी रहेगी. अब भी बहुत कुछ नहीं बिगड़ा है. १६ अगस्त से दिल्ली में अनशन की बजाये वे पद यात्रा पर निकले.. आम जनता के बीच अपनी बात रखें.... सरकार और अपने लोकपाल बिल के बीच तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कर जनता को जागरूक करें. दिल्ली का मोह छोड़ें अन्ना.अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-3322835895437822802011-08-09T11:36:45.391+05:302011-08-09T11:36:45.391+05:30बहुत सुन्दर...सही फरमायाबहुत सुन्दर...सही फरमायाचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-76508864356315406822011-08-09T10:12:59.237+05:302011-08-09T10:12:59.237+05:30वास्तविकता यह है कि अन्ना साहब खुद दो लाख गबन के घ...वास्तविकता यह है कि अन्ना साहब खुद दो लाख गबन के घपले मे कोर्ट से बीमारी के नाम पर बचते फिर रहे हैं। उनमे नैतिक बल कहाँ है?वह तो कारपोरेट घरानों के दम पर उनके हित मे जनता की मूल-भूत समस्याओं से ध्यान हटाने का आंदोलन चला रहे हैं। उन्हें जनता से मतलब क्या है?अमीर और भ्राष्टाचार के समर्थक ही अन्ना की पीठ पर हैं।vijai Rajbali Mathurhttps://www.blogger.com/profile/01335627132462519429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-37766947672213559112011-08-09T09:49:33.823+05:302011-08-09T09:49:33.823+05:30रोचक जानकारी ! ब्लॉगप्रहरी एग्रीगेटर पर प्रकाशित...रोचक जानकारी ! <a href="http://blogprahari.com" rel="nofollow">ब्लॉगप्रहरी एग्रीगेटर </a> पर प्रकाशित लिंक के माध्यम से यहाँ पहुँचना हुआ. <br />आश्चर्य है कि आपने ब्लॉगप्रहरी का लोगो अपने ब्लॉग पर नहीं लगाया है. जबकि अन्य छोटे -मोटे लिंक्स दिख रहे हैं .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-41635330570051591942011-08-09T09:21:59.510+05:302011-08-09T09:21:59.510+05:30विश्लेषण तक एक हद तक सहमत हूं। पर विकल्प शायद यह...विश्लेषण तक एक हद तक सहमत हूं। पर विकल्प शायद यह भी नहीं है कि आप गांव में जाएं। जनता में जाने का मतलब चुनाव में खड़े होना ही होगा। यह हम सबको समझना पड़ेगा। क्योंकि हमारी संसदीय व्यवस्था ही एक मात्र हथियार है किसी भी व्यवस्था को बदलने के लिए। अगर देश की पूरी जनता भी संसद के सामने एकत्रित हो जाए तो वह क्या करेगी। या तो आप अपने संविधान को पहले नष्ट कर दीजिए और फिर नए सिरे से शुरू कीजिए। <br />*<br /><br />जो लोग शासन में बैठी पार्टी को कोसते रहते हैं, वे भूल जाते हैं कि जो विपक्ष में बैठे हैं, वे भी उसी थैली के चट्टे-बट्टे हैं। और सबसे मजेदार बात यह है कि जिस आम जनता के नाम पर सियापा कर रहे हैं, उसी आम जनता के वोट से वो वहां पहुंचे हैं। <br />*राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-64879627902062223092011-08-09T09:16:04.919+05:302011-08-09T09:16:04.919+05:30मनोज जी,
नमस्कार,
आपके इस ब्लॉग को भी "सिटी ज...मनोज जी,<br />नमस्कार,<br />आपके इस ब्लॉग को भी <a href="http://cityjalalabad.blogspot.com/p/blog-page_7265.html" title="अपने लिंक को देखने के लिए कलिक करें / View your blog link " rel="nofollow">"सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"</a>के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|tips hindi mehttps://www.blogger.com/profile/01058993784424803727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5455274503155889135.post-74385591420753736012011-08-09T08:50:51.405+05:302011-08-09T08:50:51.405+05:30अरुण चंद्र रॉय के लेख पर टिप्पणी
अरुण जी ने अच्छा ...अरुण चंद्र रॉय के लेख पर टिप्पणी<br />अरुण जी ने अच्छा विश्लेषण किया है। परंतु मुझे नहीं लगता है कि लोकपाल विधेयक के अधिनियम बनने के बाद भी भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। मैं आजकल उत्तर प्रदेश के गाँव में हूँ और बहुत लोगों से बात की है। मुद्दा चुनाव और निजी हित है। एक ही परिवार में चार भाइयों में मतैक्य नहीं है और सभी में खींच-तान है। महिलाओं की भूमिका कुछ ज़्यादा ही विघटनकारी लगती है। जिसके चार बच्चे हैं उनका बुढ़ापा खराब हो रहा है। अतः गाँवों की हालत तो बहुत ही खराब है। अपने वर्तमान, शहरी पृष्ठभूमि वाले साथियों के साथ अन्ना जी का गाँव का रुख का करना संभव नहीं है। गाँव में युवकों को एक जुट करने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश के गावों में अतिशीघ्र, जन तांत्रिक नेतृत्व वाला (गुंडा तत्व वाला नहीं) संगठन बनाना और गाँव की समस्याओं को जोड़कर संघर्ष करना ज़रूरी है। लोकपाल बिल अगर पास भी हो गया तो उससे गाँव वाले कतई प्रभावित नहीं होंगे। गाँव वाले तो छोटे भ्रष्टाचार ते प्रभावित हैं और ऐसे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल अधिनियम नहीं बल्कि भ्रष्टाचार निरोधी संघर्ष संगठनों की ज़रूरत है। लोकपाल अधिनियम बन भी जाए तो कोई परवाह नहीं। उसे बदला भी जा सकता है।डॉ. दलसिंगार यादवhttps://www.blogger.com/profile/07635372333889875566noreply@blogger.com