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गुरुवार, 28 जनवरी 2010

आम आदमी की हिंदी प्रयोजनमूलक हिंदी के ज़रिए (भाग-५)



सृजनात्‍मक लेखन
   

अब बात करते हैं अनुवाद की। हालांकि साहित्‍य के अलावे ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में भी हिंदी का इतिहास कमज़ोर नहीं रहा है, अपितु ज्ञान-विज्ञान का हस्‍तांतरण मजबूत भाषा की विशेषता रही है। आज की तारीख में चिकित्‍सा, अभियंत्रण, पारिस्थितिकी, अर्थशास्‍त्र से लेकर विभिन्‍न भाषाओं से साहित्‍य का हिंदी में अनुवाद करने वालों की भारी मांग है। अनुवाद के संबंध में कहा जाता है कि कोई भी भाषा अपने आप में इतनी कंजूस होती है कि वो अपना सौन्‍दर्य दूसरी भाषा से बांटना नहीं चाहती। अतः यह पूर्णतः अनुवादक पर निर्भर करता है कि वह जिस भाषा से और जिस भाषा में अनुवाद कर रहा है उन भाषाओं पर उसका कितना अधिकार है और इन भाषाओं की अनुभूतियों में वह कितनी तारतम्‍यता क़ायम रख सकता है। एक सफल अनुवादक वही होता है जो अनुदित कृति में भी मूल कृति की नैसर्गिक अनुभूतियों को अपरिवर्तित रखे।
   
अब आते हैं भाषा विज्ञान पर । सूचना प्रोद्यौगिकी के चरम विकास ने विश्‍व को एक ग्‍लोबल विल्‍लेज बना दिया है। पूरी दुनिया में आज एक दूसरे को समझने की होड़ लगी हुई है। और इस एक-दूसरे को समझने में भाषाओं का अहम् स्‍थान है। हमारे संबंध सांस्‍कृतिक हों या व्‍यावसायिक, भाषाओं का महत्‍व सर्वथा है। अतः आज विभिन्‍न भाषाओं के बीच संबंध का अध्‍ययन भी ज़ोर-शोर से चल रहा है। अतः हर जगह भाषा-विज्ञानियों (linguisticians  &  philologists)  की मांग है। भारतीय भाषा-वैज्ञानिक भी किसी से कम नहीं हैं। अतः हिंदी भाषा का विकास, व्‍याकरण, दूसरी भाषाओं से इसका संबंध, देश, काल, इतिहास, भूगोल एवं अन्‍य भाषाओं का हिंदी पर प्रभाव व अन्‍य भाषाओं को हिंदी की देन आदि का वृहत अध्‍ययन सम्‍प्रति किसी भी तकनिकी शिक्षा से कम फलदायी नहीं है।
    अब बात करें सृजनात्‍मक लेखन की। आज बाज़ारबाद शबाब पर है। उत्‍पादक तरह-तरह से उपभोक्‍ताओं को लुभाने का प्रयास करते हैं। ऐसे में विज्ञापन की भूमिका महत्‍वपूर्ण हो जाती है। उत्‍पाद भौतिक हो इसके लिए उनके विज्ञापन में ऐसी सृजनात्‍मकता दिखाई जाती है कि उपभोक्‍ताओं पर उसका सीधा असर पड़े। दिवा-रात्री समाचार चैनल, एफ.एम. रेडियो और विज्ञापन एजेंसियों की बाढ़ ने रोजगार के ऐसे आयाम खोले हैं कि हिंदी के परम्‍परागत लेखकों के अलावे ऐसे लेखकों की मांग बेतहासा बढ़ी है जो किसी विषय को बिना लाग लपेट बेवाक और संक्षिप्‍त शब्‍दों में पूरी रचनात्‍मकता के साथ प्रस्‍तुत कर सके।
इंटरनेट पर भी हिंदी का अभूतपूर्व विकास हो रहा है। इंटरनेट पर हिंदी की कई वेबसाइटें हैं। हिंदी के कई अख़बार नेट पर उपलब्ध हैं। कई साहित्यिक पत्रिकाएं नेट पर पढ़ी जा सकती हैं। हिंदी में ब्लॉग लेखक आज अच्छी रचनाएं दे रहें हैं। भारत में इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यमों का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। यह देश की संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के विकास का स्पष्ट संकेत देता है।
-----  अभी ज़ारी है ....

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