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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

दोहवाली ..... भाग .....6 और ...7



जन्म  --- 1398
निधन ---  1518


समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए 51

हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय

जो जन मार्ग जाने, सो तिस कहा कराय 52

कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा जाय

एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय 53

वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल

बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल 54

कली खोटा जग आंधरा, शब्द माने कोय

चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय 55

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति होय

भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय 56

जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय

सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय 57

साधु ऐसा चहिए ,जैसा सूप सुभाय

सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय 58

लगी लग्न छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय

मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय 59

भक्ति गेंद चौगान की, भावे कोई ले जाय

कह कबीर कुछ भेद नाहिं, कहां रंक कहां राय 60

घट का परदा खोलकर, सन्मुख दे दीदार

बाल सनेही सांइयाँ, आवा अन्त का यार 61

अन्तर्यामी एक तुम, आत्मा के आधार

जो तुम छोड़ो हाथ तो, कौन उतारे पार 62

मैं अपराधी जन्म का, नख-सिख भरा विकार

तुम दाता दु: भंजना, मेरी करो सम्हार 63

प्रेम बड़ी ऊपजै, प्रेम हाट बिकाय

राजा-प्रजा जोहि रुचें, शीश देई ले जाय 64

प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय

लोभी शीश दे सके, नाम प्रेम का लेय 65

सुमिरन में मन लाइए, जैसे नाद कुरंग

कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्रान तजे तेहि संग 66

सुमरित सुरत जगाय कर, मुख के कछु बोल

बाहर का पट बन्द कर, अन्दर का पट खोल 67

छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार

हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार 68

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग

तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग 69

जा करण जग ढ़ूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि

परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं 70


क्रमश:

दोहवाली --- भाग –1 / भाग – 2 /भाग – 3 /भाग – 4 / भाग 5 /

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