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सोमवार, 5 अप्रैल 2010

काव्यशास्त्र - 4

नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि

- परशुराम राय

भारतीय साहित्यशास्त्र पर उपलब्ध ग्रंथों के साक्ष्यों पर दृष्टि डालने पर यह निर्विवाद सत्य है कि इस परम्परा के आदि आचार्य भरतमुनि ही हैं और इनका एकमात्र ग्रंथनाट्यशास्त्रही मिलता है। वैसे नाम से यह केवल नाट्य विषयक ग्रंथ लगता है, किन्तु यह अनेक कलाओं का विश्वकोष है। क्योंकि आचार्य भरतमुनि के अनुसार न ऐसा कोई ज्ञान है, न शिल्प, न कोई ऐसी विद्या, न कला, न योग और नंही कोई कर्म है जो नाट्य में न पाया जाता हो-

न तज्ज्ञानं न तच्छिल्पं न सा विद्या न सा कला।

नासौ योगो न तत्कर्म नाट्येडस्मिन यन्न दृश्यते।।

भरतमुनि के काल के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वान तो इन्हें काल्पनिक व्यक्ति मानते हैं, यथा डॉ. मनमोहन घोष। लेकिन अनेक साक्ष्यों के आधार पर यह निर्विवाद सत्य है कि आचार्य भरतमुनि एक ऐतिहासिक पुरुष हैं और इसका उल्लेख मत्स्यपुराण में भी मिलता है। कहा जाता है कि स्वर्गलोक में लक्ष्मी स्वयंवर का मंचन आचार्य भरतमुनि ने किया था, जिसमें प्रसिद्ध अप्सरा उर्वशी लक्ष्मी का अभिनय करते समय महाराज पुरुरवा को देखकर उन पर मोहित हो गयी और अभिनय करना भूल गयी थी। इस पर भरतमुनि ने कुपित होकर दोनों को शाप दे दिया था। महाकवि कालिदास नेविक्रमोर्वशीयम्में इस घटना का संकेत करते हुए आचार्य भरतमुनि का उल्लेख किया हैः-

मुनिना भरतेन यः प्रयोगो भवतीष्वष्टरसाश्रयः प्रयुक्तः।

ललिताभिनयं तमद्य भर्ता मरुतां द्रष्टुमनाः सलोकपालः।।

इसके अतिरिक्त भट्टोद्भट, भट्टलोल्लट, भट्टशंकुक भट्टनायक, अभिनवगुप्त, कीर्तिधर, राहुल, भट्टयंत्र और हर्षवार्तिक जैसे उद्भट आचार्यों ने नाट्यशास्त्र पर टीकाएँ लिखीं। इन सबको देखकर यह कहना असंगत होगा कि नाट्यशास्त्रके प्रणेता भरतमुनि एक काल्पनिक व्यक्ति हैं। हालाँकि उक्त टीकाकार आचार्यों का उल्लेख विभिन्न काव्यशास्त्रों तथा इस ग्रंथ पर उपलब्ध एक मात्र आचार्य अभिनवगुप्त की टीका अभिनवभारतीमें मिलता है, अन्य उक्त आचार्यों की टीकाएँ आज अनुपलब्ध हैं। यही नहीं अभिनवभारतीटीका मूल रूप में पूरी उपलब्ध नहीं है। जो मिला है, वह भी काफी अशुद्ध है। आचार्य विश्वेश्वर सिद्धांतशिरोमणि (काव्यप्रकाश के हिन्दी-व्याख्याता) ने तो यहाँ तक लिखा है कि अभिनव भारती की उपलब्ध प्रति पढ़कर स्वर्ग से आकर स्वयं आचार्य अभिनवगुप्त भी उसे नहीं समझ सकते। विदेशी विद्वानों ने भी नाट्यशास्त्र की खण्डित प्रतियाँ लेकर प्रकाशित करने का अदम्य प्रयास किया इनमें फेड्रिक हाल, जर्मन विद्वान हेमान, फ्रांसीसी विद्वान रैग्नो एवं इनके शिष्य ग्रौसे आदि का नाम उल्लेखनीय है। आचार्य विश्वेश्वर सिद्धांत-शिरोमणि ने अभिनवभारतीका यथासम्भव पाठ संशोधन कर नया संस्करण प्रस्तुत किया और सम्पादन भी किया, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय की हिन्दी अनुसंधान परिषदने प्रकाशित किया है।

ऐतिहासिक दृष्टि के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है, यथा- व्यक्ति का जन्म-काल, पैतृक पृष्ठभूमि, शिक्षा-दीक्षा आदि, भरतमुनि के विषय में उन सबका अभाव है। उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर अटकलें लगाते हुए अधिकांश विद्वान सहमत हैं कि भरतमुनि का जीवन काल विक्रमपूर्व 500 वर्ष से प्रथम विक्रमशताब्दी के बीच ही रहा है।

इनके द्वारा विरचित नाट्यशास्त्र में 6000 श्लोक हैं। इसीलिए इसका एक नाम षट्साहस्त्री संहिताभी है। किन्तु शायद इसके पूर्व इसमें 12000 श्लोक रहे होगें, क्योंकि द्वादशसाहस्त्री संहितानाम का भी उल्लेख भरतनाट्यशास्त्रके लिए मिलता है। आचार्य शारदातनयकृतभावप्रकाशननामक ग्रंथ में इस सम्बन्ध में निम्नलिखित श्लोक आया हैः-

एवं द्वादशसाहस्त्रैः श्लोकैरेकं तदर्धतः।

षड्भिः श्लोकसहस्त्रैर्यो नाट्यवेदस्य सग्रंहः।।

यहाँनाट्यशास्त्रके लिएनाट्यवेदशब्द का प्रयोग किया गया है। आचार्य शारदातनय नेद्वादशसाहस्त्री संहिताके रचयिता वृद्ध भरत को और षट्साहस्त्री संहिताके रचयिता आचार्य भरत को माना है।

नाट्यशास्त्र उपलब्ध संस्करणषट्साहस्त्री संहितामें 36 अध्याय हैं, जबकि निर्णयसागर द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण में 37 अध्याय दिए गए थे। वैसेनाट्यशास्त्रके प्रचीन टीकाकार आचार्य अभिनवगुप्तपाद ने इसमें 36 अध्यायों का ही उल्लेख किया है।

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