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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार .......भाग -चार - कर्दम ऋषि

कर्दम ऋषि को ब्रह्माजी का मानसपुत्र माना जाता है। ब्रह्मा जी के अंश से कर्दम मुनि हुए। वे प्रजापतियों में गिने जाते हैं। उन्‍हें ब्रह्माजी ने आदेश दिया था कि तुम प्रजा की सृष्टि करो। योग्‍य संतान प्राप्‍त हो इसके लिए उन्‍होंने कठोर तपस्‍या की। गुजरात अहमदाबाद के निकट प्रसिद्ध तीर्थ स्‍थल है बिन्‍दुसार। यही ऋषि कर्दम की तपोभूमि है। इस तप से प्रसन्‍न हो शब्‍दब्रतरूप स्‍वयं नारायण अवतरित हुए। कर्दम ऋषि की तपस्‍या और साधना को देखकर भगवान की आंखों से आनन्‍द के आंसू गिरे। उससे बिन्‍दु सरोवर पवित्र हो गया।

भगवान ने कर्दम ऋषि से कहा “चक्रवर्ती सम्राट मनु, पत्‍नी शपरूपा के साथ अपनी पुत्री देवहूति को लेकर तुम्‍हारे ज्ञान आश्रम में आएंगे। उसका पाणिग्रहण कर लेना। ”

कालान्‍तर में वैसा ही हुआ। सबसे पहले मनु ( स्वयंभू मनु ) और उनकी पत्नी शतरूपा ब्रह्मा जी के अलग अलग दो भागो से प्रगट हुए। इनकी तीन बेटिया हुई। आकूति , प्रसूति और देवहूति। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति से हुआ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति से हुआ। ये वही दक्ष हैं जो माता पार्वती के पूर्वजन्म में उनके पिता थे और भगवान् शिव के पार्षद वीरभद्र ने जिनका यज्ञ विध्वंश किया था।

कर्दम मुनि का विवाह मनु जी की तीसरी बेटी देवहूति से हुआ। राजकुमारी देवहूति ने कर्दम ऋषि के साथ उस तपोवन में रहकर पति की सेवा करती रही। राजपुत्री होने का जरा भी उन्‍हें अभिमान नहीं था। कर्दम ऋषि काफी प्रसन्‍न एवं संतुष्‍ट हुए। उन्‍होंने पत्‍नी देवहूति को देवदुर्लभ सुख प्रदान किया।

परम तेजस्वी दम्पति के गृहस्‍थ धर्म में पहले नौ कन्याओं का जन्म हुआ। इन नौ कन्याओं का विवाह ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न नौ ऋषिओं से हुआ ।

(1) कला - मरीचि ऋषि के साथ विवाहित

(2) अनुसूया - अत्रि ऋषि के साथ विवाहित

(3) श्रद्धा - अड्गिंरा ऋषि के साथ विवाहित

(4) हविर्भू - पुलस्‍त ऋषि के साथ विवाहित

(5) गति - पुलह ऋषि के साथ विवाहित

(6) क्रिया - क्रत्तु ऋषि के साथ विवाहित

(7) ख्‍याति - भृगु ऋषि के साथ विवाहित

(8) अरूंधति - वशिष्‍ठ ऋषि के साथ विवाहित

(9) शान्ति देवी - अथर्वा ऋषि के साथ विवाहित

कर्दम ऋषि ने सन्‍यास लेना चाहा तो ब्रह्माजी ने उन्‍हें समझाया कि अब तुम्‍हारे पुत्र के रूप में स्‍वयं मधुकैटभ भगवान कपिलमुनि पधारने वाले हैं। प्रतीक्षा करो।

कर्दम एवं देवहूति की तपस्‍या के फलस्‍वरूप भगवान श्री कपिलमुनि उनके गर्भ से प्रकट हुए।

बाद में पिता के वन चले जाने के पश्‍चात कपिलमुनि ने अपनी माता देवहूति को सांख्‍यशास्‍त्र के बारे में जानकारी दी और उन्‍हें मोक्षपद की अधिकारिणी बनाया।

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