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बुधवार, 19 मई 2010

काव्य शास्त्र-१५

काव्य शास्त्र-१५
आचार्य परशुराम राय

आचार्य कुन्‍तक

आचार्य कुन्‍तक आचार्य राजशेखर के परवर्ती और आर्चा महिमभट्ट के पूर्ववर्ती है । इनका काल दसवीं शताब्‍दी का अन्तिम भाग माना जाता है । क्‍योंकि कुंतक ने अपने ग्रंथ वक्रोवित जीवित में आचार्य राजशेखर के नाम का उल्‍लेख किया है और आचार्य महिमभट्ट ने अपने ग्रंथ व्‍यक्तिविवेक में आचार्य कुन्‍तक का । आचार्य कुन्‍तक के पारिवारिक जीवन के विषय में प्रायः इतिहासकारों की प्रिय सामग्री का अभाव है ।

आचार्य कुन्‍तक का एक मात्र ग्रंथ वक्रोवित जीवित है और वे भारतीय काव्‍ययशास्‍त्र में वक्रोवित सम्‍प्रदाय के प्रवर्तक है । इनका यह ग्रंथ काव्‍यशास्‍त्र का बड़ा ही सशक्‍त ग्रंथ माना जाता है । आचार्य महिमाभट्ट आदि के अतिरिक्‍त अन्‍य आचार्यो ने भी इनकी प्रशंसा की है । आचार्य गोपाल भट्ट अपने ग्रंथ साहित्‍य सौदामिनी में इनकी प्रशंसा करते हुए लिखते हैं

वकानुर‍िञ्जनीमुक्तिं शुक इव मुखे वहन ।

कुन्तक क्रीडति सुखं कीर्तिस्‍फटिकपजरे ।।

वक्रोवितजीवित में कारिका, वृत्ति और उदाहरण है । आचार्य ने इसे चार उन्‍मेषों में विभक्‍त किया है । प्रथम उन्‍मेष में काव्‍य का प्रयोजन, लक्षण और अपने प्रतिपाद्य छः वक्रताओं का उल्‍लेख किया है । दूसरे उन्‍मेष में वर्ण विन्‍यासवक्रता, पदपूर्वाद्धवक्रता ओर प्रत्‍ययवक्रता इन तीन वक्रताओं का प्रतिपादन मिलता है । तीसरे में वाक्‍यवक्रता का विवेचन करते हुए अलंकारों का इसी के अंतर्गत अन्‍तर्भाव माना गया है । चौथे उन्‍मेष में शेष दो वक्रताओं अर्थात प्रकरणवक्रता और प्रबंधकर्ता का प्रतिपादन किया गया है ।

आचार्य कुन्‍तक अभिद्यावाद के समर्थक है । ये लक्ष्‍यार्थ और व्‍यंगार्थ का वाच्‍यार्थ में ही अर्न्‍तभाव होने की बात करते हैं ।

आचार्य महिमभट्ट

आचार्य महिमभट्ट का काल आचार्य कुन्‍तक के तुरंत बाद आता है ये आचार्य मुकुलभट्ट, धनंजय, भट्टनायक,कुन्‍तक आदि की तरह ध्‍वनि विरोधी आचार्य है । ये नयायिक है और इन्‍होंने ध्‍वनि के सभी रूपों का न्‍यायशास्‍त्र के अनुरूप अनुमान के अर्न्‍तगत अन्‍तर्भाव किया है ।

ये कश्‍मीरवासी थे । इनके पिता श्रीधैर्य और गुरू श्यामल थे । इन्‍होंने दो ग्रंथ लिखे- व्‍यक्तिविवेक और तत्‍वोक्तिकोश । इनमें दूसरा उपलब्‍ध नहीं है । इस ग्रंथ का उल्‍लेख व्‍यक्तिविवेक में स्‍वयं उन्‍होंने ही किया है । इनका केवल व्‍यक्तिविवेक ही मिलता है ।

व्‍यक्तिविवेक में कुल तीन विमर्श है । पहले विमर्श में ध्‍वनि-सिद्धांत का खंडन करके ध्‍वनि के सभी उदाहरणों का अनुमान में अन्‍तर्भाव दिखाया गया है । दूसरे विमर्श में काव्‍य-दोषों का निरूपण है । तीसरे में ध्‍वनि के 40 उदाहरणों का अनुमान में अन्‍तर्भाव दिखाया गया है । इन्‍होंने अनौचित्‍य को काव्‍य का मुख्‍य दोष कहा है । और इसे शब्‍दगत और अर्थगत या अन्‍तरंग ओर बहिरंग दो भागों में बांटा है । अन्‍तरंग अनौचित्‍य के अन्‍तर्ग रसदोषों को समाविष्‍ट किया गया है तथा बहिरंग अनौचित्‍य के पांच भेद विधेयाविमर्श प्रक्रमभेद, क्रमभेद, पौनरूक्‍त्‍य और वाच्‍यावचन बताए गए हैं । ानुर‍ि ‍त्र

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत महत्व पूर्ण जानकारी मिली है इस लेख से|बधाई
    आशा

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  2. बहुत महत्व पूर्ण जानकारी मिली है इस लेख से|बधाई !

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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