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शुक्रवार, 7 मई 2010

चिठियाना-टिपियाना संवाद - खूब सोच विचार कर कोई काम करना चाहिए

खूब   सोच विचार कर कोई काम करना चाहिए

 

चिठियाना क्यों भाई टिपियाना, बहुत दिनों से दिखे नहीं?
टिपियाना हा, भाई चिठियाना! एक ठो मुसीबत में फंस गए थे।
चिठियाना क्या हुआ था?
टिपियाना

अरे भाई, वही अपना टिपियाने की आदत से लाचार, चले गए एक ठो पोस्ट पर टिपिया आए।

चिठियाना क्या टिपियाए?
टिपियाना

ऊ त ठीके टिपियाए थे। कहा था, पढकर बहुत अच्छा लगा! मज़ा आ गया!

चिठियाना तो इसमें कुछ बुरा तो नहीं है।
टिपियाना

हां, लेकिन ऊ पोस्ट में लिखा था कि चिट्ठाकार की प्रेमिका उसे छोड़ दी है और उसका दिल टूट गया है, इसलिए वह उसकी याद में रो रहा है। बस क्या था ऊ चिट्ठाकार हाथ धो कर ही मेरे पीछे पड़ गया। हम त छुपे फिर रहे थे। पछता रहा हूं कि काहे ऐसा टिपियाए?

चिठियाना बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए।
टिपियाना मतलब?
चिठियाना

मतलब ई कि कोई काम करने के पहले ख़ूब सोच विचार लेना चाहिए। फिर वह काम करना चाहिए। इसी में भलाई है। निर्णय लेने में ज़ल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए।

टिपियाना

ई क्या कह रहे हो? मैं कोई चिट्ठा पढूं और वह अच्छा लगे तो भी अपनी प्रसन्नत दबाए रहूं, सोचकर टिपियाऊं।

चिठियाना हां।
टिपियाना

और अगर कोई चिट्ठा पढूं और वह अच्छा नहीं लगे तो भी अपनी प्रसन्नत दबाए रहूं, सोचकर टिपियाऊं।

चिठियाना हां!
टिपियाना वाह, ऐसा कैसे हो सकता है?
चिठियाना

देखो भाई जो व्यक्ति अच्छा कर्य हो या बुरा, उसके करने के पहले काफ़ी सोच-विचार करता है, निर्णय करने में ज़ल्दबाज़ी नहीं करता, उसी की प्रशंसा होती है।

टिपियाना अच्छा!
चिठियाना

हां। मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। एक थे महर्षि गौतम। उनका एक पुत्र था। वह था तो बहुत ज्ञानी पर कोई भी काम करने के पहले काफ़ी देर तक सोच-विचार करता था। इस कारण से लोग उसे आलसी और मंदबुद्धी समझते थे।

टिपियाना हूं, अच्छा!
चिठियाना

एक दिन महर्षि गौतम की पत्नी से एक भारी अपराध हो गया। जब ऋषि को इस अपराध का पता चला तो वे क्रोध से आग बबूला हो गये। उन्होंने अपने बेटे को कहा कि तू इस कुलक्षणी मां को मार डाल। यह आज्ञा दे वे वन में चले गये।

टिपियाना अच्छा। फिर?
चिठियाना

अपनी आदत के अनुसार पुत्र बहुत देर तक सोच-विचार करता रहा। एक ओर पिता की आज्ञा थी, पिता की आज्ञा पालन करना बेटे का परम धर्म था। दूसरी तरफ़ मां थी, उसका वध करना तो परम पाप है, पुत्र तो मां की रक्षा करता है। उसके सामने दुविधा थी। क्या करे? एक ओर मां जो उसकी जन्मदाता है उसका वध तो दूसरी ओर पिता की आज्ञा की अवहेलना। वह बहुत देर तक सोच-विचार में ही लगा रहा।

टिपियाना फिर क्या हुआ?
चिठियाना

इधर वन में गौतम ऋषि का गुस्सा ठंडा पड़ा तो उन्हे एहसास हुआ कि वो क्या कर आए हैं! वे सोचने लगे मेरे गुस्से ने मेरा विवेक छीन लिया। मेरी पत्नी तो निर्दोष है। अकारण ही उसकी जान चली गई होगी। वह तो पतिव्रता और धर्मपरायण स्त्री है। उसके वध का पाप तो मुझे ही लगेगा। इससे कौन मुझे उद्धार करेगा?

टिपियाना हां, पर अब पछताते होत क्या…
चिठियाना

पर उन्हें अपने पुत्र के स्वभाव का ख़्याल आया और वे तुरत घर की ओर लौट चले। देखा पत्नी जीवित है और पुत्र विचारमग्न! उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। बोले, बेटा आज तेरे देर तक सोच-विचार कर निर्णय लेने के स्वभाव ने हम सभी को बचा लिया।

टिपियाना भाई तूने मेरी आंखें खोल दी। मैं इस बात पर ध्यान रखूंगा।
चिठियाना

चलो, सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते।

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