काव्य लक्षण – 10::वाक्यं रसात्मकं काव्यम् |
आचार्य विश्वनाथ के बारे में आप पढ चुके हैं (लिंक यहां है)। इनका ग्रंथ 'साहित्यदर्पण' काव्यशास्त्र का बड़ा ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रंथ है। वे रसवादी आचार्य हैं। काव्य लक्षण की परिभाषा करते हुए उन्होंने कहा था, “ वाक्यं रसात्मकं काव्यम्”। अर्थात् रसयुक्त वाक्य काव्य है। आचार्य विश्वनाथ ने ’काव्यत्व’ के लिए ’रसत्व’ का आधार ग्रहण किया। उनके अनुसार गुण, अलंकार, वक्रोक्ति, ध्वनि आदि सभी रस के पोषक हैं। आचार्य विश्वनाथ का मानना था कि रसात्मक वाक्य में शब्द और अर्थ दोनों समाहित हैं। रसात्मक एक कठिन अवधारणा है। इसे समझना सहज नहीं है। आचार्य विश्वनाथ ने भामह के “शब्दार्थौ सहितौ काव्यम” के स्थान पर “ वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” का प्रयोग किया। वाक्य में काव्य शरीर तथा रसात्मक में काव्य की आत्मा समाहित है। रसात्मकता के आधार पर प्रतिपादित काव्य लक्षण की इस परिभाषा के आधार पर हम कह सकते हैं कि काव्यात्मा और काव्यात्मकता दोनों में रस का महत्व है। |
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सुन्दर लेख...
जवाब देंहटाएंमनोज भाई . अति उत्तम आलेख ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी,साखी ब्लाग पर आकर मेरी कविताओं पर अपनी महत्वपूर्ण राय दर्ज करें।
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार! ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंविचार युक्त लेख
जवाब देंहटाएंरसात्मक वाक्य ही काव्य है
जवाब देंहटाएं8827172288 मेरा व्हाट्सएप नंबर है यदि मुझसे किसी प्रकार की वार्तालाप करना चाहते हैं तो इस नंबर पर मुझे व्हाट्सएप कर सकते हैं
जवाब देंहटाएंशानदार व ज्ञानवर्धक लेख।
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