काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है::काव्य लक्षण-13 (पाश्चात्य काव्यशास्त्र-1) |
पाश्चात्य काव्यशास्त्र की शुरुआत प्लेटो से होती है। प्लेटो का काल है 427 ई.पूर्व से 347 ई.पूर्व का। हालाकि प्लेटो ने काव्य की परिभाषा देने की कोशिश नहीं की पर इस पर विवेचना अवश्य किया। उनके मतानुसार काव्य प्रकृति का अनुकरण है और प्रकृति सत्य का अनुकरण। प्लेटो की विवेचना में अनुकरण का अनुकरण है। इस तरह यह सत्य से दूर हो जाता है। अरस्तु ने भी काव्य की परिभाषा नहीं की, किन्तु जो विचार व्यक्त किए उसके आधार पर काव्य लक्षण का निर्धारण किया जा सकता है।
प्लेटो के शिष्य थे अरस्तु। उन्होंने अपने ही गुरु के विचारों का तर्कों के आधार पर खंडन किया। उन्हें लगा कि प्लेटो की विवेचना में अनुकरण का अनुकरण है। इस तरह यह सत्य से दूर हो जाता है। अरस्तु ने भी काव्य की परिभाषा नहीं की, किन्तु जो विचार व्यक्त किए उसके आधार पर काव्य लक्षण का निर्धारण किया जा सकता है।
अरस्तु का मानना था कि काव्य एक कला है। कवि अनुकर्ता है। उनके अनुसार यह अनुकरण नकल न होकर पुनर्सृजन है। काव्य प्रकृति का अनुकरण है। यह अनुकरण सृजनात्मक प्रेरणा का अनुक्रम या सिलसिला है। इस प्रकार अरस्तु के अनुसार काव्य लक्षण का निर्धारण इस प्रकार होता है, “काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है।”डॉ. नगेन्द्र का भी यही मानना था कि काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है। आधुनिक शब्दावली में अगर कहें तो “काव्य भाषा के माध्यम से अनुभूति और कल्पना द्वारा जीवन का पुनःसृजन है।”(चित्र : आभार गूगल खोज) |
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sundar post !
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।
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