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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

उदात्त काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है :: काव्य लक्षण-14 (पाश्‍चात्य काव्यशास्त्र-2)

उदात्त काव्य

भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है

::

काव्य लक्षण-14 (पाश्‍चात्य काव्यशास्त्र-2)

यूनानी काव्यशास्त्र में अरस्तू के बाद जो सबसे आदर के साथ याद किए जाते हई वो हैं लांजाइनस। उन्होंने “पोरिइप्सुस” की रचना की थी। इसका अर्थ है काव्य में उदात्त तत्व। उनका मानना है कि काव्य का प्राण-तत्व है उसका उदात्त तत्व।


काव्य की अंतर्वस्तु (कन्टेन्ट्स) और अभिव्यंजना (एक्सप्रेशन) दोनों में ही उदात्त तत्व की सही व्याप्ति से ही रचना उत्कृष्ट बनती है। उनका कहना था कि महानतम कवियों की रचना में औदात्य अभिव्यंजना का उत्कर्ष देखने को मिलता है। उदात्त भाषा क प्रभाव श्रोता के मन पर ही नहीं उसके भावों के रूप में भी पड़ता है। उदात्त सिद्धि रचना के समूचे ताने-बाने पर होनी चाहिए। प्रकृति ही सृजन-शक्ति का मूल है। कला इसके सौंदर्य का ही रूप है। उनका यह भी कहना था कि अपने से पहले के महान कवियों का न सिर्फ़ अनुकरण करना चाहिए वरन उनसे स्पर्धा भी रखनी चाहिए।
इस प्रकार लांजाइनस का काव्य लक्षण बनता है -

उदात्त काव्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है। उदात्त महान आत्मा की प्रतिध्वनि है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. काव्य की अंतर्वस्तु (कन्टेन्ट्स) और अभिव्यंजना (एक्सप्रेशन)

    सही निर्देश देती आपकी यह रचना निश्चय ही सहायक होगी....आभार

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  2. सार्थक प्रस्तुति- साधुवाद!
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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