कविता क्या है? |
कविता क्या है? इसकी प्रेरणा कहां से आती है? कविता लिखने से पहले, या लिखते वक़्त या पढते वक़्त कभी सोचा है आपने?
कल मुझसे मेरी श्रीमती जी ने पूछ दिया। बोलीं बड़े कवि बने फिरते हो, बताओ कविता क्या है? और यह क्यों की जाती है? मैं सोचने लगा कविता रचने, सृजन कहूं तो ज़्यादा उपयुक्त होगा, का उद्देश्य क्या है? इसका प्रयोजन क्या है? न मैं साहित्य का विद्यार्थी रहा हूं, और न ही कवि। बस यूं ही कभी-कभार, कुछ भाव मन में उठे, तो उन्हें लिपिबद्ध कर दिया और देखा तो लगा कविता हो गई। पर श्रीमती जी के पूछे इस प्रश्न से मन में विचार-मंथन शुरु हो गया।
कवि अपनी बाते शब्दों में कहता है। शब्द और अर्थ जब मिलते हैं तो काव्य का सृजन होता है। शब्द में अपार शक्ति होती है। शब्द शक्ति ही काव्य सृजन में अन्तर्निहित अर्थ को व्यक्त करने का साधन है। इसी से अर्थ का बोध होता है।
काव्य एक व्यापक शब्द है जिसके अंतर्गत पूरा सृजनात्मक साहित्य आता है। नाटक को दृश्य काव्य कहा गया है। वैसे काव्य के और भी भेद हैं, जैसे गद्य काव्य, पद्य काव्य, चंपू काव्य, आदि। बल्कि यों कहें कि हमारी सृजनात्मक अभिव्यक्ति का आरंभ काव्य के रूप में ही हुआ तो ग़लत नहीं होगा। आदि काल से ही हमारे सुख-दुख के मनोभावों की अभिव्यक्ति का माध्यम कविता ही बनी रही। इस संदर्भ में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा यथार्थ गतिशील और परिवर्तनशील है। यह हमारे सृजन को प्राभावित करता है।
अभिनव गुप्त के ’ध्वन्यालोक लोचन’ में कहा गया है कि
“कवनीयं काव्य”
अर्थात कवि-कर्म एक शाब्दिक निर्मिति है। कवि शब्द ’कु’ धातु में अच प्रत्यय (इ) जोड़कर बना है। ’कु’ का अर्थ है व्याप्ति, सर्वज्ञता। यानी कवि द्रष्टा है, स्रष्टा है, संपूर्ण है, सर्वज्ञ है। जहां न पहँचे रवि, वहां पहुँचे कवि। ऐसा व्यक्ति अपनी अनुभूति में सब कुछ समेटने की क्षमता रखता है।
तो इस कवि द्वारा जो सृजन होता है उसके मूल में मनवीय संवेदना सक्रिय तो रहेगी ही। हां बदलते युग और परिवेश में मानवीय संवेदना भी बदलती रहती है। इस आधुनिक युग में काव्यचिंतन की दिशा पहले की तुलना में काफी बदल गई है। पुराने संस्कारगत संबंधों में भी बदलाव परिलक्षित है।
रघुवीर सहाय के काव्य संकलन “सीढ़ियों पर धूप में” की भूमिका में कवि-चिंतक अज्ञेय ने कहा है
“काव्य सबसे पहले शब्द है। और सबसे अंत में भी यही बात बच जाती है कि काव्य शब्द है।”
इससे बाहर कुछ है क्या? शब्द का ज्ञान, उसकी अर्थवत्ता की सही पकड़, ही सर्जकों से सृजन करवाती है। ध्वनि, लय, छंद सभी इसी से निकलते हैं, इसी में समाहित होते हैं। जगदीश गुप्त ने एक बार नई कविता पर चल रही बहस के संदर्भ में कहा था,
“कविता में नवीनता की उत्पत्ति वस्तुतः सच्ची कविता लिखने की आकांक्षा से ही उत्पन्न होती है। … जो कथन सृजनत्मकता तथा संवेदनीयता से रहित हो उसे किसी स्तर पर कविता नहीं कहा जा सकता।”
यदि जगदीश गुप्त की मानें तो,
“कविता सहज ’आंतरिक अनुशासन से युक्त अनुभूति-जन्य सघन लयात्मक शब्दार्थ है जिसमें सह-अनुभूति उतपन्न करने की यथेष्ट क्षमता निहिय रहती है।”
वहीं लक्ष्मीकान्त वर्मा कहते हैं,
“कविता अत्मपरक अनुभूति की रागात्मक अभिव्यंजना है।”
जो भी हो इतना तो तय है कि आजकल की कविता अत्यंत जटिल अनुभवों को अत्यंत सहज और सर्वग्राह्य रूप में व्यक्त करती है। साथ ही वह उसमें सार्वजनीन सत्य का असल तत्व निकालती है। हां, मैं यह कह सकता हूं कि कविता हमारी जटिल संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है। पर इन्हें यानी हमारी जटिल संवेदनाओं को सम्प्रेषणीय बनाना है। यह सिर्फ़ भावनाओं का प्रवाह नहीं बुद्धि-प्रेरित व्यापार है। हमारी भावनाओं को हमारे परिवेश और उसमें घटने वाली बातें प्रभावित करती हैं। तो हम पाते हैं कि आज का कवि अपने परिवेश के साथ द्वंद्वमय स्थिति में है। इसीलिए अनुभूति की जटिलता है, संवेदनाओं का उलझाव है।
जैसे-जैसे जीवन जटिल हुआ है, काव्य में भी जटिलता बढी है। पर हम पाते हैं कि आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। आज कविता हमें रिझाती नहीं हैं। वह हमें खिजाती हैं। हमारा चैन तोड़ देती हैं।
ऐसा लगता है कि कविता का युग समाप्त हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण है बौद्धिक सन्निपात से ग्रसित कविताओं की बहुतायात। यह बात तय है कि जहां कविताएँ बौद्धिक होगी, वहां वे शिथिल होगी। कविता की निर्मिति इसी जीव जगत से होती है। यदि कविता कुछ ही परिष्कृत बौद्धिक लोगों को प्रभावित या आकृष्ट करती है तो कही-न-कही कविता कमजोर अवष्य है। कविता की व्याप्ति इतनी बड़ी हो कि वे जन समान्य को समेट सकें।
"कविता की व्याप्ति इतनी बड़ी हो कि वे जन समान्य को समेट सकें"
जवाब देंहटाएंशिक्षाप्रद आलेख के लिए आभार
यह शोध परक आलेख आपके सहज शास्त्रीय शब्दों से और भी निखर गया है. इसमें मैं भी एक परिभाषा मिलाना चाहूँगा,
जवाब देंहटाएं'कविता परिपूर्ण क्षणों की वाणी है !' -- सुमित्रानंदन पन्त
सुन्दर आलेख ! लेकिन आरम्भ में आप एक शब्द 'औपचारिक' लिखना भूल गए. ये होना चाहिए था, "न मैं साहित्य का 'औपचारिक'विद्यार्थी रहा हूं.........., "
हा..हा...हा..हा.... !
धन्यवाद !!!
जिस कविता का समापन कविता के अंतिम अक्षर ता से हो, उसे कविता और उसकी संपन्नता माना जाना चाहिए। मैं प्रमाणित करता हूं कि यह मेरा मौलिक विचार है।
जवाब देंहटाएंमनोज जी आपने बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया है..
जवाब देंहटाएंइस पर मैं कुछ यूँ कहूँगी..
सबसे पहले तो कविता क्या है? ...इसी का जवाब मेरे विचार से ये है की....ह्रदय के ऊपर जमे हुए हमारे कलुष, ईर्ष्या, द्वेष इत्यादि जो विकार होते हैं उनको हटाने और ह्रदय को इन विकारों से मुक्त और निर्मल करने के लिए जिन शब्दों का विधान किया जाता है वो शब्द कविता कहलाते हैं.
--इस से आपको कविता का प्रयोजन भी पता चल गया होगा.
अब आपकी दूसरी बात पर चलते है.
काव्य एक व्यापक शब्द है जिसके अंतर्गत पूरा सृजनात्मक साहित्य आता है। ...
मेरे विचार से...बाह्य या आंतरिक समाज में घटित होने वाली घटनाओं एवं परिवर्तनों को देखकर जो हमारे ह्रदय में आवेग उत्पन्न होते हैं अर्थार्थ समस्त चराचर क्षेत्र के मार्मिक तथ्यों को शब्दों में ढालना कविता रूप हो सकता है और इसीलिए कहा गया है की किसी देश के बाहरी हाल तो हम इतिहास से जान सकते हैं...लेकिन उस समय के आंतरिक भाव उस समय की कविताओ से जाने जा सकते हैं.अतः उस समय अगर ह्रदय उल्लसित होगा तो खुशी की कविताये मानव ह्रदय गायेगा..और इसी प्रकार दुखी मन की छाया भी स्पष्ट रूप से उस समय के कविता सृजन से जनि जा सकती है.
और इसीलिए ये जरुरी नहीं होता की जटिल संवेदनाये ही कविता की उत्पत्ति का कारन हो सकती हैं.
आभारी हू ,यह साइट मुझे सबसे अच्छा लगा ,साफ़ सुथरी है ,धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस सबके बाद भी प्रश्न तो बही है कविता क्या है
जवाब देंहटाएंfffffffff
जवाब देंहटाएंकविता जीवन की वह दशा हैं जिसमे अस्तित्व अन्तर्मुखी हुआ जीवन की यथार्थ चेतना से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करता हैं ओर यह स्थिति छोटे बड़े रूप मे हर व्यक्ति भोगता हैं ऐसे मे कविता जीवन बन जाती हैं अनुभूति की गहनता विवश हुई शब्दमय होकर कविता बन जाती हैं ।
जवाब देंहटाएंछगन लाल गर्ग।