कबीरदास
- भक्तिधारा के महान कवि, समाज सुधारक
- 1398-1518
- बनारस के लहरतारा में जन्मे संत कबीर कवि और समाज सुधारक थे।
- कबीर भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे।
- उनका पालन-पोषण जुलाहा परिवार में हुआ।
- वे संत रामानंद के शिष्य थे।
- वे पढे-लिखे नहीं थे।
- उनकी रचनाएं उनके शिष्यों ने एकतित्र की थी।
- उन्होंने हिन्दू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढिवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया।
- कवीर की वाणी उनके मुखर उपदेश उनकी साखी, रमैनी, बीजक, बावन-अक्षरी,उलटबासी में मौज़ूद हैं।
- गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 200 पद और 250 साखियां हैं।
कबीरदास की रचनाओं के लिंक
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥
संत कबीर / परिचय
दोहावली भाग - 1
दोहावली ...भाग - 2
दोहावली ... भाग - 3
दोहावली ...भाग - 4
दोहवली ...भाग -- 5
दोहावली ॥भाग -- 6 और भाग - 7
दोहावली .... भाग - 8
दोहावली ....भाग - 9
दोहवली ....भाग 10
दोहावली .... भाग 11
दोहावली ...भाग -12
दोहावली भाग -- 13
दोहावली .... भाग --14
दोहावली ...भाग - 15
दोहावली ....भाग - 16
दोहावली ..... भाग - 17
दोहावली ....भाग - 18
दोहावली .... भाग - 19
दोहावली ...भाग - 20
संत कबीर / परिचय
दोहावली भाग - 1
दोहावली ...भाग - 2
दोहावली ... भाग - 3
दोहावली ...भाग - 4
दोहवली ...भाग -- 5
दोहावली ॥भाग -- 6 और भाग - 7
दोहावली .... भाग - 8
दोहावली ....भाग - 9
दोहवली ....भाग 10
दोहावली .... भाग 11
दोहावली ...भाग -12
दोहावली भाग -- 13
दोहावली .... भाग --14
दोहावली ...भाग - 15
दोहावली ....भाग - 16
दोहावली ..... भाग - 17
दोहावली ....भाग - 18
दोहावली .... भाग - 19
दोहावली ...भाग - 20
बहुत अच्छी प्रस्तुति. कबीर कोपधने से ही मन की गांठे खुल जाती है .
जवाब देंहटाएंआओ मानव जीवो बतलाता हु बदल जाता ह युग केसे रे,
जवाब देंहटाएंऔर आता ह अंडकार के उंदकर से नवयुग रे,
जिस जिस को मालुम ह वो वो वो जान लो रे,
आ ग्या समय एक याद आने का क्या क्या तुमने याद किया,
वो नही काम आना रे,
एक ही सवाल ह उसका क्या क्या याद ह तुमको रे,
बस यही तुम फंस जाई गा रे,
अब तो कर याद से तु सवाल,
वरना महायाद की एक याद मे तु भी गुम चला जायगा रे,
हे मानव कह रहा हु सच मगर केसे तु समझैगा रे,
ये तुज को ही मालुम होगा रे,
हम तो इतना जाने यही भासा को बास कर तुम समझता ह रे,
फिर किस का एन्तजार ह क्या ज्यादा बोलना सत्य का साक्षी ह रे,
अगर नही तो मानव जान ले कारण कोई भी हो रे,
मगर युग बदलने का कारण किसी एक मानव जीव के लिये नही होता रे,
ना ही वो धरती के लिया मानव और धरती तो उस कारण मे ह रे,
मगर एक मानव उस कारण को जान सकता ह रे,
देहसमय रहने तक ये मानव मे ताकत ह रे,
मगर मानव को उसी ताकत का गुमान ह रे,
उसको जीवन भर गुलाम बना कर रखता ह रे,
और देह छोड़ने के बाद उसी गुमान का नशा जब टूटता ह रे,
तो फिर एक बार ना सोने की कसम ही लेता ह रे,
और फिर आने के लिया रोता ह रे,
मगर आता उसी योनि मे ह रे,
जिस की याद उस याद मे बंद ह रे,
समय ना बेकार कर सोच क्या याद करना ह तुजको रे,
जो तु भूल गया कोन ह क्या तु जान गया रे,
अगर नही तो मरना ह क्या रे,
भाग जा के जान ले जब तक तुज को मालुम ह ये स्वासा ह रे,
इनसे ही कर सवाल क्या तुम हो रे,
होगी तो देगी जवाब बस तु जवाब याद करना छोड़ दे रे,
सब को मालुम करना ह तो मालुम करना छोड़ दे रे,
जो मालुम ना हो उस को मालुम कर दूसरों को समझाना छोड़ दे रे,
जो कहते ह समझा आ गया वो सब से आगे मरता ह रे,
जो मरता मानव जीव को देख कर डर कर भागता ह रे,
वही सवाल तलाश करता ह और मिलता भी उसको ही ह रे,
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
नही अब कोई जानन वाला
क्या आप जाग गये हो मानव,
अगर हा तो कैसे खुद को यकिन दिलाओगे रे,
आप एक आंख से देख रहे है या दो आँखों से रे,
कल्याण हो
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Jaidev Maharaj
Garib Sadhu Satya Ashram
Delhi 09911827345
पहला पन्ना या आखिरी पन्ना कहा से लिखु उस एक पल का सत्य समझ ही नही आता,
जवाब देंहटाएंक्या कुछ नही होकर चला गया उस एक पल मे,
सब बिगङकर बन गया या यु कहो बनकर बिगङ गया उस एक पल मे,
ना जाने कितना कुछ अपने अन्दर ही छुपा लिया उस एक पल ने,
क्या कहु कैसै समझाऊ उस एक पल को,
ना जाने कितने एक पल समा गये उस एक पल मे,
क्या समझाऊ उस पल की कहानी क्या समझाऊ उस की दास्ता,
जिसमे सब कुछ रूककर फिर शुरू हो गया,
उस एक पल मे ना जाने कितने एक–एक पल के टुकङे होकर समा गये,
फिर भी वो पल वही का वही रह गया,
उस पल मे ना जाने कितने ही पल समाकर गुम हो गये,
उस पल को खोजते-खोजते ना जाने कितने ही उस पल मे हमेशा के लिये गुम हो गये,
कल भी छुपा था आज भी छुपा है,
क्या है ऐसा उस पल के अंदर जिसमे न जाने कितने एक पल भी समाकर खो गए,
अब तुम ही बतलाओ ए मानुष उस पल का कैसे तुम्हे राज समझाऊ,
जिसमे एक-एक पल करके ना जाने कितने एक पल समा गए,
मगर सवाल फिर भी वही का वही है,
हम जानते उस एक-एक पल का आखिरी जवाब जहॉ तक है,
उस एक पल को पकङ पाते है या जाते देख पाते है,
नही ये जान पाते है क़्या हुआ उस आखिरी पल के बाद के पल मे,
ना जाने कितने एक आखिरी पल खो गऐ उस आखिरी पल के बाद के पहले पल को तलाश करने मे,
जँहा भी एक पल को खोज के देखा तो अगले पल के होने का अहसास दे गया,
आखिरी एक पल जहॉ तक तलाश किया एक पल को, वो एक पल बढता ही चला गया,
जहॉ तक भी उस पल मे उस एक पल की तलाश की, ना जाने कितना बडा लगा,
मगर ना जाने कितने एक-एक पल आगे जाके देखा,
उस पल के होने का एहसास तो मिला मगर वो पल फिर भी ना मिला,
अब मानुष सोच रहा कैसे करू तलाश, उस एक पल के बाद के पल का रहस्य क्या है,
उस एक पल के बाद का आश्चयॅ, वो पल ना मिले ना सही ये तो पता चले क्या है,
उस एक आखिरी पल के बाद घटने वाले पहले पल का रहस्य,
यही सोचकर दिया कदम बढाऐ, उस आखिरी पल मे फिर भी रहस्य का रहस्य ही रह गया,
आखिरी पल भी मिल गया और उसके बाद का पहला पल भी मिल गया,
मगर फिर तलाश अधुरी की अधुरी रह गयी,
उस आखिरी एक पल और पहले एक पल के बीच वो पल फिर रह गया,
कैसे करू तलाश कैसे देखु उस पल को जो दोनो के बीच आया तो सही मगर आकर चला गया,
देखकर भी नही देखा वो पल आया भी और आकर चला भी गया,
अगर ए मानुष तु मानता है ये सवाल है,
तो दोनो के बीच ठहर जा, वही तुझे वो पल मिलेगा,
जिसमे गति दिखाई देती है मगर होती नही,
यही वो फैसले की घङी है जब तुझे उस पल मे फैसला करना है,
जो दोनो के बीच तु खङा है यही सवाल है यही जवाब है, ना समझे वो अनाङी है,
आखिरी पल मे फैसला कर ले रूककर बीच मे जाना है,
फिर जो तु देखना चाहे वही पल पहला पल हो, ये फैसला तु बीच मे खङा होकर कर ले,
जिस पल को तु चुन ले, वही तेरा पहला पल हो,
इस घाटी मे उतरने को कितने है बेताब,
मगर जान ले ए मानुष कितना आसान और कितना मुश्किल है,
ये आखिरी पल और पहले पल के बीच पल का स्थान,
उस पल पर पहुचने के वास्ते तुझे होना होगा दुर आखिरी और पहले पल से,
दोनो की दुरी को बॉटना होगा, बॉटते ही दुरी दोनो के बीच की हो जाएगा तु दोनो के बीच,
वही खङे होकर तुझे लेना है फैसला कौन सा हो तेरा अगला पहला पल,
जान ले तु खङा नही होगा और खङा भी होगा, जब तु होगा खङा उन दोनो पल के बीच,
होगा सभी एक-एक पल मे, मगर दोनो पलो को बॉट देना होगा तुझे बीचो-बीच,
टुट जाएगा नाता तेरा सबसे कुछ पल कहो या वो एक पल जिसमे तु होगा सभी से दुर,
वही जाकर लेना होगा अगले पहले पल कहा होना चाहता है तु,
नही कर सकेगा जब तक तु ये सब करना है बैकार,
नही कभी ये जान सकेगा दोनो एक पल के बीच का सच,
और किसी भी तरह ना तु समझ पाएगा उस पल का सच,
जो पहुचेगा वही जान पाएगा उस पल का सच,
वो भी इतना ही वो एक आखिरी पल भी था और ये पहला पल भी है,
फिर भी गुप्त रह जाएगा वो दोनो के बीच,
छुट गया वो पल पकङ लो उसको,
जिसे पकङकर पार उतर गये साधु सन्त और फकिर,
मानुष देखता रह गया वो निकल गये बीचो-बीच बे रॅग !!
--------------------------------------------------------------------------
क्या बात हुई तुम ही तो दुखी बता रहे थे नशा माग रहे थे अब इस से बड़ा नशा और क्या बोलु नशा तो उस का करो फिर चाहे जो करके हो मगर नशा उस महा का ही होगा फिर तो नशे का आनंद ह वरना सब बेकार
जवाब देंहटाएंये नशे का मामूली अंश हे मे तो उस नशा का कह रहा हु जिस नशा से ये जन्म ले रहा ह
"शायरी इक शरारत भरी शाम है, हर सुख़न इक छलकता हुआ जाम है, जब ये प्याले ग़ज़ल के पिए तो लगा मयक़दा तो बिना बात बदनाम है"
Yr bor met kr koi mest se sayeri bheg
चोरी के स्ब्दो स क्या say something our सच
Kya bat h
Dil khus kr dita
चलो आज का सत्संग हो ज्ञ
"एक हम है की खुद नशे में है, एक तुम हो की खुद नशा तुम में है।"
नशा ही तो जानना ह क्या ह
Nesha pyar h nesha dosti h nesha he ant h
ये नशे का मामूली अंश हे मे तो उस नशा का कह रहा हु जिस नशा से ये जन्म ले रहा ह
"तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है, खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है, फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ दर्दे दिलवालों, यहाँ दर्द-ऐ-दिल की दावा पिलाई जाती है"
महा नशा !!! महा दशा !!! महा शक्ति !!! महा वेदी !!!! महा लक्ष्मी !!! महा कुमारी !!! महा
Yr bor met kr good night
Sara nesa utar diya
क्या बात हुई तुम ही तो दुखी बता रहे थे नशा माग रहे थे अब इस से बड़ा नशा और क्या बोलु नशा तो उस का करो फिर चाहे जो करके हो मगर नशा उस महा का ही होगा फिर तो नशे का आनंद ह वरना सब बेकार
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
महाराज के परणाम साधु ही सत्य है
जवाब देंहटाएंसाधना ही सत्य है
साधने पर लक्ष्य ही सत्य है
लक्ष्य साधने मे किया कर्म भी सत्य होता है
अगर वो मानव कल्याण के लिए हो
लक्ष्य पर पहुचने पर मानव ही अवतार कहलाता है
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मित्र और जाने अजुबे भी जिस अजुबे के सामने बोने लगते है
कलिक अवतार के आने का वक्त आ गया है क्या
पढें और गहनता से हर मानव विचार करे
खास कर वो जरूर जो दानवों का त्रिपुर बनाने मे जाने अनजाने भी साथ दे रहा है
मानव रूपी जीव का व धरती का दोहन दानवोँ के लिए बदं कर दो
और दानव राजा ये आखिरी चेतावनी समझेँ
अपनी त्रिलोक विजय की मिथ्या कामना को त्याग कर शिवशक्ति के शरणागत हो
बुलबुले की चाहत छोड दे इसमे मानव का ही नही दानवोँ का भी विनाश तय है
इस देह मात्र को अधिक आयु देने मात्र से तुम्हारा कल्याण नही होगा
और ना ही एक आकाशगंगा से निकलने मे
कितनी बार समझाया शब्द और ऊर्जा आकाशगंगा मे अलग हो ही नही सकते
और अगर तुम आकाशगंगा से बाहर आ भी गये तो तुम्हारी भी ताकत आधी ही हो जाएगी
फिर तुम्हे अपनी ताकत की ऊर्जा की पुर्ती के लिए किसी न किसी आकाशगंगा मे फिर से आना होगा
मगर वो आकाशगंगा कौनसी होगी इसका चुनाव तुम कैसे करोगे
क्योकि आकाशगंगाओ के बाहर तुम्हे कोई भी आकाशगंगा दिखाई ही नही देगी
आकाशगंगाओ की समय चेन भी तो है ना
कौन सी आकाशगंगा किस समय चेन पर होती है क्या वो एक है
तो अब तुम ही सोचो तुमको इसमे से क्या चाहिए
विश्वगुरू हिन्दुत्व हिन्द मे सतयुग का आगमन !!!!!!!!!!!!!!
त्रिलोक विजेता विश्वगुरू शिव को नमनः
महाराज के पर्णाम
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जलती ज्योत तेरी बिन तेल बिन बाती,
जवाब देंहटाएंजागे दिन रैन और राती,
आए नही जाए नही फिर भी हर जगह दरशाए,
पल मे कर दे उजयारा ना समझ आए,
हर मय के प्याले की हर बुंद मे तु है,
जिन्दगी की आस मे तु है मौत के आगोश मे तु है,
तु हर कण मे हर साँस मे तु,
क्या लिखु तेरे लिए हर लिखे शब्द की स्याही मे तु,
लिख तो दु मगर लिखा न जाए तु,
जीवन के हर अहसास मे है तु,
जिन्दगी को देखु तो मौत का अहसास है तु,
मौत को देखु तो हर जगह जगमगाता उजयारा है तु,
समझ तो लु मगर समझ ना आए,
देख तो लु मगर देखा न जाए जान तो लु मगर जाना न जाए तु,
क्या है कह तो दु मगर कहा न जाए,
बस यही कहु तु नशा है जो चढाये ना चढे,
चढे तो उतारा न जाए,
दिखाई न दे तो दिखा भी दु समझ न आए तो समझा भी दु,
पर क्या करू ऐ मुसाफिर तुमने तो कसम खाई है मर जाने की,
हर रास्ता बन्द करके तु बैठा है और सोचता है दरवाजा ही नही है
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
गंध रूपी सागर पाने को जल रहा, विरह ज्वाला मे मृगा जीव रे,
जवाब देंहटाएंना ही कोई दिखता है रे, ना ही कछु समझ आये रे,
भागा-भागा फिर रहा रे जीवन यु ही गवाऐ रे,
बचपन खो दिया गंध को महक समझ के मानुष रे,
आई जवानी और भरमाया गंध को महक समझकर गोते खाई रे,
उठी विरह ज्वाला जब गंध की, फिरे डोलता पागल की तॉहि रे,
नही मिली वो अरश से फरश तक फिर भी फिरे ढोलता उसके पिछे मानुष रे,
गंध की विरह ज्वाला जला रही पल-पल, जब लग ढोलता रहा मन के आकाश मे,
छाया रहा अधेंरा आँखो के सामने, एक तरफ दिखे रे चन्दा दुजी और सुरज आकाश मे,
थक हारकर जब वो बैठा, देखा पलभर आकाश मे,
क्या दिन क्या रात कहु, होता एक ही दिन आकाश मे,
पलभर के लिए सब ठहर गया, ठहर गया आकाश रे,
नही गति थी नही थी ध्वनि, सब ठहर गया आकाश मे,
पल मे ही आया सामने एक दुजा आकाश रे,
खुदी ही बनकर आया अपना सरजनहार रे,
गुँज उठा शखंनाद ठहरे हुये आकाश मे,
बिखर गये विणा के रंग, हो गया जीव के जीवन का आगाज रे,
बह चली धार बन जीवन का आधार रे,
अब तक चली थी राह अकेली,
चलते-चलते अपनी ही परछाई, कब हो गयी राही ज्ञात रहा नही मानुष रे,
फिर राही के संग हो चली राह, पकङ उंगली राही की राह लेके चली रे,
मिलाय दिया बाकी राही से, भुल गया फिर राह को राही रे,
राही खो गया दुजे राही मे, भुल गया फिर मंजिल अपनी रे,
भुल गया उस राह को मानुष रे, अब खङा-खङा पुछे ये सवाल रे,
सभी से पुछे खुद से ना पुछे सवाल रे,
पुछ खुद से तु सवाल मिल जाएगा हर जवाब रे,
देख पलटकर दिख जाएगा तुझको तेरा मुकाम रे,
ना सवाल रहेगा ना जवाब रहेगा रे,
जो रहेगा वो तु खुद ही रह जाएगा !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
हर आवाज मे एक ग़ुंज है हर लय मे एक ताल है,
जवाब देंहटाएंहर सास मे एक जीवन है हर चाहत मे एक नफरत है,
हर ज़िंदगी मे एक मौत है हर शब्द मे एक शब्द है,
हर शब्द मे एक विचार है हर विचार मे एक ख्याल है,
हर ख्याल मे एक ख्वाब् है हर ख्वाब मे एक सच और एक झुठ है,
हर सच का एक झुठ है हर झुठ का एक सच है,
हर जीव का एक जीवन है हर जीवन का एक अन्त है,
हर अन्त का भी एक अन्त है पैदा होना जीवन की शुरूआत है या अन्त की शुरूआत है,
ना देख़े तो ज़ीवन क़ी शुरूआत है देख़े तो अन्त की शुरूआत है,
जानकर भी अंजान है देख़े तो क़्या देखे हर किसी से पहचान है,
वक़्त वो सय्य् है पत्ता-पत्ता जिसका गुलाम है,
जानते है जीवन नही है फिर भी जीवन के गुलाम है,
हर जीवन का अन्त है फिर भी न जाने क़्या गुमान है,
भीङ मे खुद को देख कर सबको अपना बना बैठा है,
भुल गया हर किसी से अनजान है,
फिर भी ये कैसा गुमान सोचता है हर सय् उसकी गुलाम है !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कलयुग ने जब पहला पग धरा धरती पर धुरी दुरी हो गई,
जवाब देंहटाएंदुरी फिर दिश हो गई,
दिश घुम रही मुरत मे,
मुरत घुम रही सुरत मे,
सुरत घुम रही शिशे के दिल मे,
शिशे के दिल मे एक वक़्त देखकर सो गई,
आखँ खुली जब चारो ओर सुरत हो गई,
सब को देखा सा लगता है,
सब कुछ सुना सा लगता है,
पर नही समझ अब आता है,
कैसै खुद को माफ करू कैसे खुद को समझाऊ,
जो दिखे जो सुनता है वही यहाँ सब हो रहा है,
सुरत-सुरत मिलकर सुरॅती से सुरॅती मे खोई पङी है,
सुरॅती मे बह रहा मुरती का जल,
मुरती जल मे जीव घुम रहा,
जीव खोए गया मुरती जल की लहरो मे,
मुरती जल की लहरो मे जब-जब दुरी अवरूध हुई,
तब-तब जीव भी अनुरूध होता है !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मानव बन जोगी कर रहा तलाश गली-गली,
जवाब देंहटाएंबनाकर मन्दिर मस्जिद और शिवालय ढुड रहा एक शिव को,
एक-एक करके अनेक शिवों मे ढुड रहा एक शिव को,
कहा मिलेगे कैसे मिलेगा क्यु मिलेगा यह मालुम नही किसी को,
बोल-बोलकर थक गया जयदेव सभी को, नही सुनने वाला नही कोई लहने वाला,
खुद ही नाम रखे खुद सज्ञां दे रहा मानव, फिर खुद ही अपने को भी भुल गया मानव,
भुल गया मानव भुल गया शिव की सुरत भुल गया वो मुरत,
बस मन मे ये मान लिया अब शिव नही है आ सकता क्योकि कलयुग है चल रहा,
हम पापी है हमको नही मिलेगा अब महादेव,
बस कर सकते उसकी पुजा-वन्दना और जप-तप और वैराग,
धिरे-धिरे भुल गया जप-तप और वैराग लगा पुजने पत्थर मानकर भगवान,
नही किसी को रहा यकिन पत्थर मे भी हो सकते है भगवान,
बस यही यकिन कैसे तु करेगा ये फैसला तु ही करता है इंसान,
इसी फैसले को तेरे बदलने लेकर मुरत का आवरण लेकर आता है भगवान,
एक-एक कर कहता है सब कोई-कोई सुनता है इंसान,
सुनकर भी कुछ नही मथं पाते मुरख इंसान,
क्योकि मानव ने मान लिया अब कलयुग है, मानव रूप मे अब नही आ सकते भगवान,
धरम गुरूओ ने चला दई कलयुग की चाल,
संभल ले मानव कलयुग की भी अन्त वैला चली आई है,
फिर क्यु मान रहा कलयुग की, मारेगा तुझको भी जाते-जाते ये कलयुग,
अब तो रूककर सुन घोर अधेंरा जिस और तु जा रहा,
रूककर सुन ले मत भाग अ मानव,
-----------------------------------------------------------------------------------
सब को मालुम हे ये ख्वाब है
जवाब देंहटाएंमगर फिर भी वो तो हर रात दिखावे के लिए सोता है
वैसे वो जाग रहा है बस कुछ आराम के लिए आखों को झपका लेता है
वरना तो वो जानता है ये ख्वाब है बस वो बात अलग है
की मौत वाले ख्वाब पर मेरा बस नही है
बाकी मुझको मालुम है ये एक ख्वाब है
बस सब इसी विचार के बरमाण्डं मे सो रहे है
मगर कोई भी जानता नही ह भारत वर्ल्ड गुरु बनेगा केसे !
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!