ठूंठमनोज कुमार |
कल रात वर्षा हुई ख़ूब हुई ज़ोर-ज़ोर से मूसलाधार मेरे घर के सामने की सड़क बेलेवेडियर रोड के किनारे एक बड़ा पेड़ था तन कर खड़ा।
गिर पड़ा बेचारा! असहाय सा। कुछ देर बाद ... उसके तने काट दिए गए सड़क साफ़ हो गई आवाजाही बहाल हो गई सड़क के किनारे बच रहा ठूंठ बस! |
SUNDAR RACHNA
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
thoonth ped ke bahane aapne jiwan darshan de diya hai.. hum sab eak din toonth hi ho jayenge jarurat khatm ho jane ke baad... behad shashakt rachna ...
जवाब देंहटाएंkavita achhi lagi
जवाब देंहटाएंkavita achhi lagi
जवाब देंहटाएंगहरे भावों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंयह मार्मिक है , हम इंसान इसे जानने की कोशिश भी नहीं करते कि यह पेंड जीवित होते हैं इनमें भी जान और संवेदना है ! शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंयही जीवन है....हम लोग भी ठूंठ बन आवाजाही को रोक देते हैं ....और ऐसे ठूंठ को हटा कर ज़िंदगी की आवाजाही बहाल हो जाती है ..मार्मिक प्रस्तुति
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जवाब देंहटाएंमनोज जी ठूँठ के बहाने आपने जीवन के कटु सत्यों पर अच्छा खासा प्रकाश डाला है।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
ठूँठ के माध्यम से बहुत ही गहरी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंgahare bhav........vastavik chitran
जवाब देंहटाएंकई बार हमारा दिमाग ठूंठ बन जाता है। नए विचारों को आने नहीं देते, और पूराने विचार को रास्ता नहीं मिलता निकलने का.....
जवाब देंहटाएंमार्मिक चिन्तन!
जवाब देंहटाएंसही जीवन दर्शन ! जीवन कभी रुकता नहीं।
जवाब देंहटाएंपेड़ की नियति में एक दिन ठूंठ बनना लिखा है.
जवाब देंहटाएंPedka thoont zindagee kee baharon ka khandhar ho mano..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!! बधाई।
जवाब देंहटाएंमन की संवेदनाओं को चित्रित करती अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअगर इस ठूँठ की जड़ अभी बाक़ी है,
जवाब देंहटाएंतो देखना -
कुछ समयांतराल में ही इसकी शक्ति!
फूट पड़ेंगी -
अनेकों टहनियाँ इसके घायल हुए जिस्म से
और चल पड़ेंगी फिर से पेड़ बनने की दिशा में!
Smriti ke roop men vriksh ka thoonth jabtak rahega bana rahega
जवाब देंहटाएंjindagi ka ek katu satya bahoot hi gahri anbhuti ke sath...........
जवाब देंहटाएंbahoot achchhi lagi
charch manch ka bhi dhanyabad .....itni achchhi kavita uplabdh karane ke liye
यही तो विडम्बना है. आजीवन फल-फूल और छाँव देने वाले पेड़ (प्रतीक) के गिर जाने पर भी कोई हमदर्दी नहीं उसके जिस्म के टुकड़े कर रस्ते से हटा दिया गया. मतलब परस्ती पर बहुत ही तीक्ष्ण व्यंग्य है. शैली सरल है. धन्यवाद !
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