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रविवार, 18 जुलाई 2010

काव्यशब्दोsयं गुणालंकार संस्कृतयोः शब्दार्थयोर्वर्तर्ते।

08102009151मनोज कुमार

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काव्य शब्द में है या अर्थ मे? भामह ने तो कहा था “शब्दार्थो सहितौ काव्यम”। आचार्य वामन को इससे कोई आपत्ति नहीं थी। परन्तु उनके मन में यह प्रश्‍न तो था ही कि क्या सामान्य शब्द और अर्थ ही काव्य हैं?

वामन का मनना था कि शब्दालंकार और अर्थालंकार से युक्त काव्य शब्दार्थ काव्य है। अपने काव्यालंकार सूत्र में उन्होंने कहा था

काव्यशब्दोsयं गुणालंकार संस्कृतयोः शब्दार्थयोर्वर्तर्ते। वचनोsत्र गृह्यते।

हालाकि वे यह मानते थे कि अलंकार तत्व के कारण ही काव्य ग्राह्य होता है, किन्तु वे “सौंदर्यमलंकारः” की भी बात करते हैं।
“काव्यः शोभायाः कर्तारो धर्मा हुणाः।”

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम पाते हैं कि वामन ने काव्य की ग्राह्यता को सौंदर्य से जोड़ दिया। वामन के अनुसार दोष-रहित, सगुण, सालंकार शब्दार्थ काव्य है। विद्वानों का मानना है कि वामन न तो काव्य का शास्त्रीय लक्षण ही कर पाए न अलंकारवादियों की कतार में बैठ सके। जहां एक तरफ़ रसवादी गुण का संबंध रस से जोड़ते हैं वहीं दूसरी तरफ़ वामन गुण का संबंध अर्थ और शब्द से जोड़ते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो वामन ने दण्डी के मार्ग को नए ढ़ंग से विस्तार दिया और अलंकार से आगे गुण की चर्चा की।

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