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रविवार, 1 अगस्त 2010

काव्य सत्य और काव्य-सौंदर्य के सिद्धांतों तथा निर्धारित उपबंधों के अधीन जीवन की अलोचना का नाम काव्य है। :: काव्य लक्षण-15 (पाश्‍चात्य काव्यशास्त्र-3)

काव्य सत्य और काव्य-सौंदर्य के सिद्धांतों तथा निर्धारित उपबंधों के अधीन जीवन की अलोचना का नाम काव्य है। :: काव्य लक्षण-15 (पाश्‍चात्य काव्यशास्त्र-3)

अरस्तू की काव्य की परिभाषा विषयगत या वस्तुपरक (objective) थी। इसके बावज़ूद भी वह विवादों से अछूती नहीं रही। बाद के आचार्यों ने प्रकृति और अनुकरण को काव्य का अनिवार्य लक्षण माना। जैसे ड्राइडन ने काव्य लक्षण को पारिभाषित करते हुए कहा,
"
काव्य भावपूर्ण तथा छंदोबद्ध भाषा में प्रकृति का अनुकरण है।”

आगे चलकर मैथ्यू आर्नल्ड ने कहा,
”काव्य सत्य और काव्य-सौंदर्य के सिद्धांतों तथा निर्धारित उपबंधों के अधीन जीवन की अलोचना का नाम काव्य है।”

इस परिभाषा में आलोचना शब्द को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि अलोचना संपूर्ण जीवन की समीक्षा है।

कुछ लोगों का कहना है कि आर्नाल्ड का काव्य लक्षण अति-व्याप्ति दोष से ग्रसित है। वे यह भी कहते हैं कि इसकी पारिभाषिक शब्दावली इसे बोझिल बनाती है।

इस परिभाषा में दो बातें ग़ौर करने वाली है। पहला यह कि आर्नल्ड की परिभाषा का जीवन अरस्तू के प्रकृति का पर्याय है। दूसरी बात यह कि इनकी आलोचना अरस्तू के अनुकरण के समान है।

इस परिभाषा में प्रयुक्त काव्य-सत्य कला का राग है। यह मानव हृदय की भावना और अनुभूति का सत्य है।

साथ ही काव्य-सौंदर्य वस्तु और रूप और विषय और अभिव्यंजन के सामंजस्य पर बल देता है। उदात्तता, संयम और सांस्कृतिक उन्नयन से ही सौंदर्य में रमणीयता और दीप्ति आती है।

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