काव्य अर्थ का रमणीय शाब्दिक प्रतिपादन है।
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पाश्चात्य काव्यशास्त्र की चर्चा के क्रम में हमने देखा कि “कविता क्या है?” इस पर वहां निरंतर वाद-विवाद होता रहा। शुरु में दो गुट थे, मनोविश्लेषणवादी और मार्क्सवादी। मनोविश्लेषणवादी मानते थे कि “कला कला के लिए” है जबकि मार्क्सवादी का कहना था कि “कला जीवन के लिए” है। ये दोनों दो ग्रुपों-गुटों में बंटे रहे। कालांतर में एक और गुट आया। वह था न्यू क्रिटिसिज़्म अर्थात् नयी समीक्षा ग्रुप। इस ग्रुप के विद्वानों का मानना था कि “कविता एक शाब्दिक निर्मित है”। अर्थात् कविता शब्द है और अंत में भी यही बात बचती है कि कविता शब्द है। जब हम भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य लक्षण पर विचार कर रहे थे तो हमने पाया था कि आचार्यों ने काव्य को “शब्दार्थ रूप” माना था। इस चर्चा के आधार पर हम पाते हैं कि काव्य लक्षण का पूरा रूप है “काव्य अर्थ का रमणीय शाब्दिक प्रतिपादन है।” पश्चिम के विद्वानों ने काव्य लक्षण में, हालाकि शब्द और अर्थ की महिमा के महत्व को पहचाना तो ज़रूर, पर उन्होंने “शब्दार्थ” का बहुत गहराई से विवेचन नहीं किया है। |
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जानकारी देता सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद छुट्टियाँ मना कर लौटी हूँ। पिछली पोस्ट पढूँगी । शायद बहुत सी अच्छी पोस्ट्स पढने से रह गयी हैं । धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंआपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अमूल्य निधि है!....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंaapki posten sahitya ke kashka si lag rahi hain.. bahut sunder.. eak do udaharan bhi dete to achha lagta aur kasha complete ho jati
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंइसे पढकर नई जानकारी मिली।
जवाब देंहटाएंजानकारी देता सुन्दर लेख!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अलेख।
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