देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!" |
कवि कोकिल विद्यापति के लेखिनी की बानगी, "देसिल बयना सब जन मिट्ठा !" दोस्तों हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सोंधी महक तो है ही, अप्रतीम साहित्यिक व्यंजना भी है। जिस भाव की अभिव्यक्ति आप सघन प्रयास से भी नही कर पाते हैं उन्हें स्थान-विशेष की लोकभाषा की कहावतें सहज ही प्रकट कर देती है। लेकिन पीढी-दर-पीढी अपने संस्कारों से दुराव की महामारी शनैः शनैः इस अमूल्य विरासत को लील रही है। गंगा-यमुनी धारा में विलीन हो रहे इस महान सांस्कृतिक धरोहर के कुछ अंश चुन कर आपकी नजर कर रहे हैं करण समतीपुरी। |
देसिल बयना (1) 'नयन गए कैलाश ! कजरा के तलाश !!' मतलब आधारविहीन उपयोगिता।देसिल बयना – (2) 'न राधा को नौ मन घी होगा... !' -- किसी कार्य के लिए अपर्याप्त सामर्थ्य या संसाधनहीनता |
गंगा, कमला, बागमती, कोशी और गंडक के प्रसस्त अंचल तिरहुत में एक कहावत है, "जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!" अब भी कहावत है तो यूँ ही नहीं है ! कैसे बनी कहावत... क्या है इसका मतलब... यह सब जानने के लिए आपको चलना पड़ेगा मेरे साथ रेवाखंड ! तिरहुत के गण्डकी पुर में एक मनोरम गाँव है, रेवाखंड ! उसी गाँव में एक किसान रहता है! उसने एक कुत्ता और एक गधा पाल रक्खा था ! वो अपने जानवरों को बहुत प्यार करता था। जानवर भी अपने मालिक को बहुत चाहते थे। एक दिन किसान की घरवाली कुत्ते को खाना देना भूल गयी! कुत्ता नाराज़ हो गया! संयोग से उसी रात किसान के घर में कुछ चोर घुस आये ! पर नाराज़ कुत्ता बोला ही नहीं! गधे ने उसे भौंकने को कहा तो उसने जवाब दिया कि उसे खाना नहीं मिला है इसीलिए वह काम नहीं करेगा. लेकिन गधे ने सोचा, "अगर शोर नहीं किया तो मालिक के घर चोरी हो जायेगी। सो वह खुद जोर-जोर से ढेंचू ढेंचू करने लगा। दिन भर का थका मांदा किसान सो रहा था। बेचारा चिढ कर उठा और गधे को दे दना दन... दे दना दन... पीट दिया। गधा चुप हो गया। सुबह किसान सो कर उठा तो घर का सारा सामान गायब पा कर उसे समझते देर न लगी कि रात गधा क्यूँ ढेंचू ढेंचू कर रहा था। लेकिन अब उसे गुस्सा कुत्ते पे आया ! अगर कुत्ते ने भौंका होता तो चोरी भी नहीं होती और बेचारे गधे को मार भी नहीं पड़ती ! गुस्से में बौखलाया किसान वही रात बाला डंडा उठाया और कुत्ते पर भी दोहरा बजा दिया। गधा समझ नहीं पाया लेकिन आप तो समझदार हो ! तो समझे कि नहि ??? अजी !
हा... हा... हा... … !!! चित्र आभार गूगल सर्च |
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बढियां -पशु पक्षियों के माध्यम से कही गयी कितनी ही कहानियां हमें जीवन की अमूल्य सीखें दे जाती हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी बात आपने लिखी है . बात सही भी है .
जवाब देंहटाएंयही है भारत, जहाँ सहजता से हम अपने जीवन को समझ लेते हैं, बहुत ही श्रेष्ठ जानकारी।
जवाब देंहटाएंकरण जी सुबह सुबह देसिल बयना पढ़ कर मजा तो आ गया.. लेकिन आपके पिछले अंको की तुलना में कमजोर है.. आंचलिकता का जो प्रवाह आपके पिछले अंको में था वह गायब लग रहा है... कहानी का जो ताना बना आप बुना करते थे वो भी थोडा कमजोर पड़ गया है... जो ब्रांड इमेज आप सृजित कर रहे थे उसमे थोड़ी कमी आयी है.. आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे...
जवाब देंहटाएंदोबारा मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यह पोस्ट.
जवाब देंहटाएंमनोज जी.. सब्से पहिले तो अपसे छमा मांगना चाहते हैं कि पता नहीं काहे हम राजभासा प”ई जोड़ नहीं..तेसर बात ई कि एही कामना करते हैं कि ई काम में आपको सफलता मिली.
जवाब देंहटाएंदेसिल बयना त खैर करन जी के कलम का ऊ करिस्मा है जिसका सुख कोई सब्द में नहीं बयान कर सकता है... एक तो कहावत का छोटा सा बयान, उसपर महल तैयार करना कहानी का जिससे उसका अर्थ को चार चाँद लग जाए... हम त केतना बार कोसिस किए कि हम भी ऐसने लिखें.. लेकिन ईमानदारी से बोलते हैं, हमरे मन से आवाज आया “जिसका काम उसी को साजे, और कोई को डंटा बाजे”
एक बहुत सार गर्भित कहानी |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सटीक कहानी के माध्यम से कहावत को समझाया है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र (भाग-1) – काव्य का प्रयोजन, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपुर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र (भाग-1) – काव्य का प्रयोजन, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
न गधा कभी कुत्ता बन सकता है और न कुत्ता ही गधा . प्रयास पिटवाएगा ही . बहुत सुन्दर लघु कथा .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। कहानी के माध्यम से आपने कितनी सुंदर बात कही है। जिसका जो काम है उसी को करने देना उचित है।
जवाब देंहटाएंbahoot achchhi seekh............
जवाब देंहटाएंbut gadhe ne apni chhamta se badhkar kam kiya aur usko ye inam....
बहुत बढिया सीख दी।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
हा.हा.हा....बहुत अच्छी तरह से समझ गए जी. और बिलकुल नहीं भूलेंगे इस कहावत को अब तो.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी बोध कथा। अरविन्द जी ने सही कहा है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसबसे बढिया तो लगा ऊ कुकुर जो झूला झूल रहा है। इसका यह मतलब नहीं कि देसिल बयना का यह अंक अच्छा नहीं लगा। वह तो बहुत अच्छा लगा और जो कहावत है वह तो बहुत ही बढिया है। आपने कहानी के माध्यम से उसे समझाया भी है बहुत अच्छी तरह।
जवाब देंहटाएंआभार।
अच्छी प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी बात आपने लिखी है!
जवाब देंहटाएंदेसिल बयना पढ़ कर मजा तो आ गया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। कहानी के माध्यम से आपने कितनी सुंदर बात कही है।
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहाहाहाहाहा....पर सरकारे आली क्या इस कहावत को हर जगह लागू करें। पुलिस अपना काम न करे। नेता अपना काम न करे.....तो जो उनपर उंगली उठाता है क्या वो गधा है...
जवाब देंहटाएंऔऱ हां ये महाश्य जो झूल रहे हैं ये कौन हैं?
sundar prastuti!
जवाब देंहटाएंkahawaton ke peeche ki kahaniyon ko jan'na hamesha hi prernaspad aur gyaanvardhak hota hai...
subhkamnayen:)
इस छोटी सी सुंदर कहानी के माध्यम से अपने इतनी सुंदर बात कही है ..........आभार ...
जवाब देंहटाएंएक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
कहानी बढिया है । इसी तरह की एक कहावत गुजरात में भी है, जेनो काम तेनो थाय बीजो करे सो गोतो खाय ।
जवाब देंहटाएंआज तक तो यही सुना था कि जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंका बाजे लेकिन ये डंडा बाजे पहली बार सुना।
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