१४ सितम्बर को हर वर्ष हम हिंदी दिवस मनाते हैं। लोग इसके औचित्य पर सवाल भी उठाते हैं। यह दिवस ठीक वैसे ही मनाया जाता है जैसे कि हम स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस मानते हैं।सरकारी क्षेत्र में हिंदी दिवस मनाने की दायित्वपूर्ण परंपरा है जिसका निर्वाह किया जा रहा है। मैं इसके औचित्य पर बात नहीं कर रहा लेकिन बात हिंदी भाषा पर ही करना चाहता हूँ। साथ ही देश की अन्य भाषाओं पर भी करूँगा कि कैसे भाषा का विकास सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था के विकास के साथ जुड़ा है । आज शोर है कि हिंदी मर रही है। विडंबना है कि २४ घंटे हिंदी समाचार चैनल वाले भी इसे प्रचारित करते रहते हैं। लेकिन जिस तरह से हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार पिछले ए़क दशक में हुआ है, इतिहास में कभी नहीं हुआ! हिंदी अपना विस्तार ही कर रही है और करेगी भी। कारण भी साफ़ है। भारत की मजबूत होती अर्थव्यवस्था और हिंदी भाषी क्षेत्रों में बाजार की मौजूदगी। यही नहीं, जहाँ-जहाँ बाजार है वहां की भाषा बची रहेगी। भले ही बदले हुए स्वरुप में। आज देश में १.४ बिलियन (यानी १४ करोड़ ) से अधिक मोबाइल उपभोक्ता हैं जो कि दुनिया के कुल ए़क चौथाई से अधिक है और भारतीय मोबाइल बाज़ार देश की बढ़ती आर्थिक ताकत का द्योतक है। इतना बड़ा बाज़ार बिना हिंदी और स्थानीय भाषा के कैसे चल सकता है। आज मोबाइल बाज़ार में हिंदी का उपयोग और प्रभुत्व बढ़ा है, ना केवल कंटेंट के स्तर पर बल्कि ग्राहक सेवा के स्तर भी है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जितनी भी दूर संचार कंपनिया हैं उनके कस्टमर केयर हिंदी के साथ-साथ सभी प्रमुख भाषाओं में काम कर रही हैं। इस दिशा में काफी उल्लेखनीय रूप से काम हो रहा है। मोबाइल सेवा प्रदाताओं की ओर से मोबाइल में शैक्षिक, मनोरंजक सामग्री हिंदी के साथ-साथ स्थानीय भाषा में भी उपलब्ध है। इसे बाज़ार के साथ साथ भाषा की जीत के रूप में देखी जानी चाहिए। अभी कुछ दिन पहले हमने देश की ए़क प्रतिष्ठित ड़ी टी एच कंपनी के लिए सम्पूर्ण कस्टमर केयर मेनू हिंदी के साथ- साथ तेरह अन्य भाषाओं में उपलब्ध कराया है। पहले ऐसा नहीं था। ग्राहक सेवाकेन्द्रों पर सभी भाषाओं में जानकारी उपलब्ध हो रही है और इस दिशा में बाजार की सभी कंपनिया आगे आ रही हैं। कारण स्पष्ट है! बढ़ता बाज़ार साथ ही बाज़ार की भाषा ! बैंकिंग और बीमा के क्षेत्र में भी हिंदी के प्रयोग में क्रांतिकारी रूप से बदलाव आया है और हिंदी बहुत ही सहजता से प्रयुक्त हो रही है। यह स्थिति सरकारी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि निजी क्षेत्र के बैंक भी अपने ग्राहकों तक पहुँचने के लिए उनकी भाषा का रास्ता अपना रहे हैं। वह भाषा जो आसानी से समझी जाए, जो दिल के करीब हो वही भाषा बाज़ार बना सकती है, बाज़ार बढ़ा सकती है। तभी तो आईसी आई सी आई बैंक का कॉर्पोरेट पञ्च लाइन है : रखे ख्याल आपका ! अब समाचार पत्रों को ही देखते हैं। यदि बंगाली भाषी बाज़ार तक पहुचना है तो आनंद बाजार पत्रिका का कोई विकल्प नहीं। इसी तरह मलयाली भाषी बाज़ार तक पहुँचने के लिए मलयालम मनोरमा है। यदि दैनिक जागरण देश का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अखबार है और इसकी विज्ञापन दर काफी अधिक है तो कारण है इसकी बाज़ार तक पहुँच। ए़क दशक पूर्व तक स्थिति भिन्न थी। उदारीकरण अपने साथ कई बुराइयां लेकर आयी और बाज़ार का बेहिसाब विस्तार हुआ। लेकिन इस बेहिसाब विस्तार में हिंदी के साथ- साथ देश की अन्य भाषाओं को ए़क नयी जान मिली, भाषा सेजुड़े लोगों के लिए रोजगार के अवसर मिले । ऐसा हिंदी के साथ हो रहा है ये नयी बात नहीं है। दुनिया को पता है कि अंग्रेजी भाषा उपनिवेशवाद के जरिये विश्व भाषा बनी, विज्ञान की भाषा बनी। लेकिन वो दिन दूर नहीं जब अपने अर्थ जगत में बढ़ते भारतीय प्रभुत्व के कारण हिंदी को नयी पहचान मिलेगी। अपना देश बहु- भाषी है । ऐसे में सभी भाषाओं और भाषियों की अपनी- चिंताएं और अपने- अपने सरोकार भी हैं, क्योंकि भाषा ए़क सामाजिक विषय होने के साथ- साथ सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक विषय भी है। लेकिन जिस तरह से देश के भीतर ही आर्थिक आदान-प्रदान हो रहे हैं, यह दूरी ख़त्म होने को, बशर्ते कि राजनितिक आलेप ना चढ़ाया जाय। इसलिए, ज्यों- ज्यों भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होती जायेगी, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की पहचान देश और विश्व पटल पर और भी अधिक पुष्ट होगी। इसमें सरकार की भूमिका को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । |
बहुत अच्छे तरीक़े से आपने हिन्दी और अर्थव्यवस्था को समझाया है।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट लगी। पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आपकी बात सही है, एक दिन ऐसा आएगा जब हिंदी को वापस अपनी पहचान मिलेगी । हम सभी उसके लिए प्रयासरत हैं।
जबसे मैंने हिंदी में लिखना शुरू किया है, मुझे बहुत ख़ुशी की अनुभूति होती है और खुद पर गर्व भी होता है।
आपकी इस सुन्दर पोस्ट के लिए आपको नमन।
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बहुत सार्थक चर्चा ...जानकारी से भरपूर लेख ..हिंदी भाषा की प्रगति के लिए आशान्वित करता हुआ ..
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंsaargarbhit aalekh...!
जवाब देंहटाएंsubhkamnayen:
अरे हां, आपका इस ब्लॉग पर स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआज दुनिया के अन्य देशो मे एक पाठ्यक्रम मे शामिल किया जा रहा है हिन्दी को …………………आज ये विदेशों मे भी स्वीकार्य होती जा रही है बस अगर कहीं अपमान है तो सिर्फ़ अपने ही देश मे जहाँ के नेता अंग्रेजी मे बोलना अपनी शान समझते हैं मगर हिन्दी मे बोलना अपमान …………………अगर आज सही बढावा मिले तो हिन्दी का सिर गर्व से ऊँचा हो …………………वैसे आज हिन्दी की प्रासंगिकता किसी भी मायने मे कम नही है देखिये ना गूगल हो या अन्य साइटस सब मे हिन्दी का आपशन दिया जाने लगा है इसी से पता चलता है कि आज हिन्दी ने अपनी जडें कितनी मजबूत कर ली हैं और इसका भविष्य उज्जवल है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं@ZEAL
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका आना और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करना. आपने सही कहा है कि हिंदी को अपनी पहचान मिलेगी. भाषा के प्रति हमे कटिबद्ध होना ही चाहिए .
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
जवाब देंहटाएंहमारे प्रयासों से हिंदी को नई दिशा अवश्य मिलेगी
@ वंदना जी
जवाब देंहटाएंआपने हमारी बात को और आगे बढाया. हिंदी भविष्य की भाषा है .
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंराजभाषा ब्लॉग पर आपका स्वागत है. उम्मीद है आपके सहयोग से यह ब्लॉग समृद्ध होगा.
उपयोगी लेख ! महत्वपूर्ण जानकारी और वस्तुपरक आकलन ! धन्यवाद !!!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंprose me bhi haath saaf he.photo bhi nayaa.kyaa baat he
जवाब देंहटाएंprose me bhi haath saaf he.photo bhi nayaa.kyaa baat he
जवाब देंहटाएंअरुण जी, बहुत अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंवैसे तो भारतीय साहित्य की प्रांजलता, विविधता में एकता और सरसता, भारतवर्ष जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में प्रचलित विभिन्न भाषाओं के अमूल्य योगदान में निहित है, फिर भी जन सामान्य द्वारा बोली, पढ़ी और लिखी जाने वाली भाषा हिन्दी को ही केन्द्रीय सरकार ने राजकाज की भाषा का दर्ज़ा प्रदान कर उसे एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
कैसी विडंबना है कि विदेशों में हिन्दी को विश्वभाषा का सम्मान प्राप्त है और भारत में उसे राजभाषा का सम्मान दिलाने के लिए कठोर नीतियां अपनानी पड़ती है। पश्चिमी देशों के लोग हिन्दी को अपनाकर भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को जानना और समझना चाह रहे हैं और हम हैं कि विदेशी चकाचौंध के मोह से मुक्त नहीं हो पा रहे।
स्वाभाविक रूपसे इस बहुभाषी देश में उसे ही राजकाज की भाषा मानकर इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। हर वर्ष हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके सरकारी विभा़ग अपने को भाषा और संचार की मुख्य धारा से जोड़ता है। सरकारी संस्थाओं का ज्यों-ज्यों आम जनता से संपर्क बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों उन पर हिंदी का दबाव भी बढ़ता जाएगा। जैसे-जैसे आम जनता की पहुंच प्रशासन के गलियारों में बनती जाएगी हिंदी के लिए अपने आप जगह बनती जाएगी। हिंदी क्षेत्र पर अगर बाजार का दबाव है तो बाजार पर भी हिंदी की जबर्दस्त दबाव है। आज बाजार हिंदी की अनदेखी कर ही नहीं सकता।
अरुण जी, बहुत अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंवैसे तो भारतीय साहित्य की प्रांजलता, विविधता में एकता और सरसता, भारतवर्ष जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में प्रचलित विभिन्न भाषाओं के अमूल्य योगदान में निहित है, फिर भी जन सामान्य द्वारा बोली, पढ़ी और लिखी जाने वाली भाषा हिन्दी को ही केन्द्रीय सरकार ने राजकाज की भाषा का दर्ज़ा प्रदान कर उसे एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
कैसी विडंबना है कि विदेशों में हिन्दी को विश्वभाषा का सम्मान प्राप्त है और भारत में उसे राजभाषा का सम्मान दिलाने के लिए कठोर नीतियां अपनानी पड़ती है। पश्चिमी देशों के लोग हिन्दी को अपनाकर भारत की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को जानना और समझना चाह रहे हैं और हम हैं कि विदेशी चकाचौंध के मोह से मुक्त नहीं हो पा रहे।
.....क्रमशः.....
स्वाभाविक रूपसे इस बहुभाषी देश में उसे ही राजकाज की भाषा मानकर इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। हर वर्ष हिंदी दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करके सरकारी विभा़ग अपने को भाषा और संचार की मुख्य धारा से जोड़ता है। सरकारी संस्थाओं का ज्यों-ज्यों आम जनता से संपर्क बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों उन पर हिंदी का दबाव भी बढ़ता जाएगा। जैसे-जैसे आम जनता की पहुंच प्रशासन के गलियारों में बनती जाएगी हिंदी के लिए अपने आप जगह बनती जाएगी। हिंदी क्षेत्र पर अगर बाजार का दबाव है तो बाजार पर भी हिंदी की जबर्दस्त दबाव है। आज बाजार हिंदी की अनदेखी कर ही नहीं सकता।
जवाब देंहटाएं@ मनोज कुमार
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज जी.. आपने मेरे आलेख की प्रशंशा में पूरा ए़क सारगर्भित आलेख रच दिया जो कि मूल आलेख से कहीं अधिक सारगर्भित और विचारनीय है. आपने सच कहा है कि ... "हिंदी क्षेत्र पर अगर बाजार का दबाव है तो बाजार पर भी हिंदी की जबर्दस्त दबाव है। आज बाजार हिंदी की अनदेखी कर ही नहीं सकता।...." वास्तव में हिंदी भविष्य की भाषा है और आने वाले समय ने हिंदी और हिंदी जानने वालो का समय है.. अपना स्नेह और मार्गदर्शन बनाये रखें.
अरूण जी आपने सही कहा है कि वास्तव में हिंदी भविष्य की भाषा है और आने वाले समय ने हिंदी और हिंदी जानने वालो का समय है!
जवाब देंहटाएंभारत के रीति-रिवाज, धर्म संस्कृति और प्राचीन भारत दर्शन विदेशियों को हिंदी सीखने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसके अलावा भारतीय साहित्य और साहित्यकारों, कवियों की अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी विदेशियों में हिंदी के प्रति ललक पैदा करती है।
हिन्दी की स्थिति पहले से बेहतर होती जा रही है.... बहुत अच्छी खबर दी है आपने...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी" का क्लिक कोड अपने ब्लॉग पर लगाया हैं?
जवाब देंहटाएंहमारीवाणी एक निश्चित समय के अंतराल पर ब्लाग की फीड के द्वारा पुरानी पोस्ट का नवीनीकरण तथा नई पोस्ट प्रदर्शित करता रहता है. परन्तु इस प्रक्रिया में कुछ समय लगता है. हमारीवाणी में आपका ब्लाग शामिल है तो आप स्वयं क्लिक कोड के द्वारा हमारीवाणी पर अपनी ब्लागपोस्ट तुरन्त प्रदर्शित कर सकते हैं.
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एक प्रशंसनीय पोस्ट सार्थक लेखन हेतु बधाई
जवाब देंहटाएंsaarthak aalekh, shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंइस लेख को पढ़ कर आशावादी मन बना...की कहीं तो किसी ने मन, सिद्धह करने की कोशिश की अपनी बात से की हिंदी का प्रचार हो रहा है..हिंदी अपनी पहचान बना रही है....वर्ना अब तक इस तथ्य को कोई नहीं मानता था. बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंइला प्रसाद जी ने ईमेल के माध्यम से अपने विचार प्रकट किये:
जवाब देंहटाएं"आपके ब्लॉग पर आपका आलेख पढ़ा | एक सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए धन्यवाद | किन्तु जिस तरह हिंदी के शब्दों को अंग्रेजी द्वारा स्थापन्न किया जा रहा है , अखबारों में ,दूरदर्शन पर, क्या वह हिंदी के क्रियोलीकरण का प्रयास नहीं है ? आपने उस बिंदु को नहीं उठाया ? अनावश्यक अगरेजी के प्रयोग से बचने की आवश्यकता है वरना बाजार हमारी भाषा को लील जाएगा | यह अतीत में दूसरे देशों में हो चुका है और वर्त्तमान में कई अन्य देश इस दिशा में सतर्क हैं | भारत में भी हिंदी और सभी भारतीय भाषा भाषियों को इस दिशा में सावधान होने और स्वभाषा के प्रयोग के प्रति आग्रही होने की जरुरत है |
धन्यवाद
इला "
behtareen aalekh..
जवाब देंहटाएंहिंदी और अर्थव्यस्था पर आपका आलेख बहुत ही सटीक है . लेखन का पैनापन कविता के साथ साथ लेख में भी है. लेखक की प्रतिभा का एक और पहलू देखने को मिला. ठीक कहा आपने आज हिंदी अर्थ की रीढ़ बन चुकी है. इसकी उपेक्षा करके किसी कंपनी का बाजार में ज्यादा समय तक टिके रहना असंभव है .
जवाब देंहटाएंअर्थव्यवस्था के क्षेत्र में हिन्दी काफी प्रगति की है और करती रहेगी । लेकिन शिक्षा के क्षेत्र और नौकरी के क्षेत्र में हिन्दी की उपेक्षा बरती जाती है । इससे सुनकर मेरे को बहुत दुख लगता है.. हमारे देश में माता-पिता अपने बच्चे को शुरु से हिन्दी माध्यम के वजाय अंग्रजी माध्यम के स्कुल में भर्ती किये जा रहै है ये तो गलत है... यही से हमारा देश बहुत बड़ा गलती कर रहा है । हम लोगों को इस मुद्दे पर बिचार करना चाहिए.. जब तक बच्चो में मातृभाषा के माध्यम से किसी वस्तु या विषय के प्रति समझ नही बढ़ेगा । क्या ये बच्चे हमारे देश को आगे बढ़ाऐगें । नही ना । इसलिए अपने बच्चे को नर्सरी से 12 वी तक हिन्दी माध्यम में शिक्षा देनी चाहिए । साथ ही अंग्रेजी ज्ञान के लिए स्पोकन इंग्लिश, शब्दकोश का ज्ञान देना जरुरी है । ताकि अनुवाद करके अंग्रेजी शब्द को समझने में दिक्कत न हो । ऐसा होना चाहिए । उदा. के लिए चीन, जापान और अन्य देश के बच्चे को देख लो.. कैसे आगे बढ़ रहे है । नये-नये टैक्नालॉजी का विकास कर रहे है । भारत सिर्फ अपने बच्चों नौकरी और प्रतियोगिता के आधार पर अपनी क्षमता आंकलन करती है । व्यवहार की दृष्टि से हासिल आया जिरो है..।
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