हिंदी और मराठी सगी बहनें हैं लेकिन उनमें वही अंतर है जो गंगा और गोदावरी में है या फिर पश्चिम घाटी और विन्द्य पर्वतमालाओं में । कुसुमाग्रज की कविताओं में केवल मराठी संवेदना नहीं है बल्कि भारतीय कविता का मूल स्वाभाव निहित है। उनकी कवितायें जहाँ खांटी भारतीय परंपरा की कविता है वही आधुनिक कविता के भाव भी हैं। भारतीय पारंपरिक कविता का मूल स्वाभाव है- गति... लय... लहर... नाद । और यही कुसुमाग्रज की कविताओं का भी मूल स्वाभाव था। वर्तमान काल में पश्चिमी काव्य परम्परा जिसतरह भारतीय कविताओं में पैठ कर रही है, कुसुमाग्रज की कविताओं में अपनी काव्य परम्परा को बचाए रखा। कुसुमाग्रज धरती के कवि थे। आम जन के कवि थे। वे 'भारतीय स्वप्न' के कवि थे। उनकी कविता में भाव प्रधान है। बौद्धिक जटिलता से दूर उनकी कविता में नाटकीयता, दृश्यात्मकता, व्यंग्य, पाखण्ड का खंडन, लोक कथा गायकों सा विस्तार उनकी कविता की विशेषताएं हैं । उनके कविता संग्रह में प्रमुख थे... जीवन लहरी (1933), विशाखा(1942), किनारा (1952), मराठी माटी (1960), हिमरेषा (1964), छंदोमयी (1982), मुक्तायन (1984), पाथेय (1990), महावृक्ष (1994), मारवा (1999)। उन्होंने कालिदास रचित मेघदूत का मराठी भाषांतर भी किया था। कुसुमाग्रज जी का जन्म पुणे में १९१२ में हुआ था। १७ वर्ष की आयु से ही उनकी कवितायेँ प्रकाशित होने लगी थी। कविता लेखन के लिए उन्होंने अपना उपनाम कुसुमाग्रज रखा जबकि गद्य एवं पटकथा लेखन के लिए अपना मूल नाम शिरवाडकर ही रखा। 'नट सम्राट' नाटक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था और १९९४ में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। कुसुमाग्रज केवल कवि नहीं थे बल्कि समय समय पर सामाजिक गतिविधियों को भी दिशा दी , जैसे कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश में सहयोग, आदिवासी बच्चों की पढाईके साथ साथ काव्य एवं ललित कला बोध हेतु काम, नासिक में 'ग्रन्थ यात्रा 'का आयोजन और सरकारी कामकाज में अंग्रेजी की बजाय मराठी और हिंदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास। सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में उनकी संलिप्तता से उनकी संवेदनशीलता, भावानुभूति एवं उनका विशाल दृष्टिकोण सामने आता है. कुसुमाग्रज जी की कुछ अनुदित कवितायें प्रस्तुत हैं । |
एक अनमोल धरोहर हैं यह सहित्य जो हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं. साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ ने इनका अनुवाद कर इनकी उपलब्धता क एक नया विस्तार दिया है... कुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी चुनिन्दा कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ....इस जानकारी के लिए आभार ..बहुत अच्छी जानकारी पाठकों तक पहुंचाई
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी की कवितायें पढ्वाने के लिये धन्यवाद उनको विनम्र श्रद्धाँजली।
जवाब देंहटाएंऐसी शख्सियत जिनका आपने हम सबको परिचय दिया एवं उनकी कविताओं को पढ़वाने का बहुत-बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपकी इस प्रस्तुति पर अभी बस एक नजर डाली है। बाद में आराम से देखूंगा। पर दो तीन बातें सामने आईं।
जवाब देंहटाएंकवि हमेशा रहता 'है' वह कभी 'था'या'थे' नहीं होता। उसकी लिखी रचनाएं भी हमेशा जीवित रहती हैं इसलिए उसके संग्रह भी 'थे' नहीं 'हैं'। अत: आपकी इस पोस्ट को इस नजरिए से संपादित करने की जरूरत है। और तब अधिक जब वह राजभाषा हिन्दी के ब्लाग पर लगी है।
दूसरी बात पोस्ट में वर्तनी की अशुद्धियां हैं। एक ही वाक्य में शब्दों का दोहराव है।
तीसरी बात कविताओं के अनुवादक का नाम मुझे नजर नहीं आया।
यह आपको निरुत्साहित करने के लिए बल्कि इस काम को गंभीरता से करने के आग्रह के साथ लिख रहा हूं। इस पहल के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
कुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ....जानकारी के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंhttp://sudhirraghav.blogspot.com/
कुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी कविताएँ त अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंअपने जो भाषाएँ जानने की बात कही है तो बताना चाहूंगी की मुझे गुजराती भाषा लिखनी बोली और पढनी आती है जबकि मैं यू पी की रहने वाली हूँ और अब दिल्ली में रह रही हूँ तो कुछ दिन में पंजाबी भी सीख लुंगी
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी का परिचय अपने आप में बहुत महत्व
जवाब देंहटाएंरखता है |महत्वपूर्ण जानकारी के लिए बधाई |
आशा
कुसुमाग्रज...मराठी साहित्य का एक चमकता सितारा था!...मैने आप की बहुत सी कविताएं पढी है!....मनोजजी!...आपने बहुत सुंदर ढंग से यहां कुसुमाग्रज जी की रचनाएं प्रस्तुत की है...धन्यवाद एवं बधाई!
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!
जवाब देंहटाएंएक अनमोल धरोहर की चर्चा कर आपने हमें बहुत अच्छी और रोचक जानकारी दी। कुसुमाग्रज की अनुदित कविताओं की प्रस्तुति ने हमारा काफ़ी ज्ञान वर्धन किया।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
कवि कुसुमाग्रज जी की कविताए बहुत अच्छी लगी । बिल्कुल सही बात कही है आपने कि .........
जवाब देंहटाएंहिंदी में कवि कुसुमाग्रज जी का अनुवाद पढ़ना भी किसी अनुभव से कम नहीं ।
anuvaad bahutachchha laga| isake saath mool rachanaye hotee to aurbhi aanand aataa!!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत पोस्ट के लिये आपका आभार.अच्छी जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंजाते जाते गाऊंगा मैं
जवाब देंहटाएंगाते गाते जाऊँगा मैं
जाने पर भी नील गगन में
गीतों में रह जाऊँगा मैं
बहुत अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद !
ब्लॉग पर उनके बारे में इतनी वृहत् चर्चा शायद पहली बार हुई है। आभार।
जवाब देंहटाएंकुसुमाग्रज जी को पढने की उत्कंठा जगा दी आपने।
जवाब देंहटाएं@सम्वेदना के स्वर
जवाब देंहटाएं@संगीता स्वरुप
@ निर्मला कपिला
@ sada
@संजय भास्कर
@राजेश उत्साही
@सुधीर
@रचना दीक्षित
@Asha
@ डा. अरुणा कपूर
@ZEAL
@मनोज कुमार
@रीता
@संध्या
@बूझो तो जानें
@शमीम
@अशोक बजाज
@शिक्षामित्र
@कुमार राधारमण
कुसुमाग्रज पर आलेख पर मेरा उत्साह बढाने के लिये बहुत बहुत आभार !
बहुत अचछा लगा कुसुमाग्रज की हिंदी में अनुवादित कविताएँ पढ कर । कुसुमाग्रज जी को पढा है इसीसे और आनंद आया आपका कविताओं का चयन बहुत अच्छा लगा । मूल कविताएं देते तो और भी अच्छा रहता ।
जवाब देंहटाएंsundar aalekh!
जवाब देंहटाएंparichay karane ke liye aabhar!
मराठी कवि से हमारा परिचय कराने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअरुण जी, ये जो चार कविताएँ आपने उद्धृत की हैंं वे मेरे अनुवाद संग्रह आनन्दलोक से ली हैं (और पहले हिमप्रस्थ में भी प्रकाशित हुई थीं) इतना भी तो लिख देते।
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