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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

कहानी ऐसे बनी– 6 -"बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?"

कहानी ऐसे बनी– 6

"बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?"

हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सोंधी महक तो है ही, अप्रतीम साहित्यिक व्यंजना भी है। जिस भाव की अभिव्यक्ति आप सघन प्रयास से भी नही कर पाते हैं उन्हें स्थान-विशेष की लोकभाषा की कहावतें सहज ही प्रकट कर देती है। लेकिन पीढी-दर-पीढी अपने संस्कारों से दुराव की महामारी शनैः शनैः इस अमूल्य विरासत को लील रही है। गंगा-यमुनी धारा में विलीन हो रहे इस महान सांस्कृतिक धरोहर के कुछ अंश चुन कर आपकी नजर कर रहे हैं करण समस्तीपुरी।

रूपांतर :: मनोज कुमार

मित्रों ! हम आपका स्वागत कर रहे हैं कहानी ऐसे बनी शृंखला के साथ। इस शृंखला में यूँ तो हमेशा आपको अपने गाँव घर ले जाते रहे हैं लेकिन सोचा इस बार आपको माया नगरी मुंबई की सैर करा दें।

बचपन में बाबा एक कहावत कहते थे, "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?" हम ने कहा, "बाबा ! यह कौन बड़ी बात है ? बिल्ली पकड़ कर आप लाइए घंटा तो हम  बाँध ही  देंगे !!" तब बाबा ने हमें इस कहाबत का किस्सा सुनाया। आप भी पहले यह किस्सा सुन लीजिये फिर मुंबई चलेंगे।

हमारे गाँव मे एक थे धनपत चौधरी! उनका एक बड़ा-सा खलिहान था। उस में अनाज-पानी तो जो था सो था ही, ढेरो चूहे भरे हुए थे। खलिहान में कटाई-खुटाई के मौसम ही लोग-बाग़ जाते थे वरना वहाँ चूहाराज ही था। चूहे दिन-रात कबड्डी खेलते रहते थे। धनपत बाबू ने एक मोटी बिल्ली पाल रखी थी। वह बिल्ली दिन-दोपहर कभी भी चुपके से खलिहान में घुस जाती थी और झट से एक चुहे का 'फास्ट-फ़ूड' कर के आ जाती थी।

एक दिन चूहों ने मीटिंग बुलाई। उसमें यह कहा गया कि यार हम लोग इतने चूहे हैं और बिल्ली एक … फिर भी कमबख्त जब चाहती है तब हम लोगों को अपना शिकार बना लेती है... कुछ तो उपाय करना पड़ेगा। मसला तो बहुत गंभीर था। सो बहुत देर तक 'भेजा-फ्राई' के बाद बूढा चूहा बोला, "देखो बिल्ली से हम लोग लड़ तो नहीं सकते लेकिन बुद्धि लगा के बच सकते हैं। क्यूँ न बिल्ली के गले में एक घंटी बाँध दी जाए ?? इस तरह से जब बिल्ली इधर आयेगी घंटी की आवाज़ सुन कर हम लोग छुप जायेंगे।"

अरे शाब्बाश....!!!! सारे चूहे इस बात पर उछल पड़े। लगा कि जीवन वीमा ही हो गया। लेकिन चूहों का सरदार बोला, 'आईडिया तो सॉलिड है पर बिल्ली के गले मे घंटी बांधेगा कौन ?'

बूढा चूहा तो सबसे पहले पीछे हट गया। जवान भी और बच्चे भी ! कौन पहले जाए मौत के मुंह में ... ? कौन घंटी बांधे...? थे तो सब चूहे... ! सो रोज अपनी नियति पर मरते रहे। समझे... !

फिर बाबा ने हमें समझाया कि निरंकुश अत्याचारी के खिलाफ जब किसी मे चुनौती लेने कि हिम्मत न हो तो कहते हैं, "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे?" लेकिन क्या बताएं.... समय के साथ यह कहावत और इसका मतलब सब धुंधला होता जा रहा था। लेकिन धन्य हो माया-नगरी ! एक बार फिर यह कहावत चल पड़ी।

हालांकि मुंबई मे तो चालीस साल से बिल्ली के गले मे घंटी बाँधने का प्लान हो रहा है... और दो-चार बिल्लियां तो पूरे देश में फैली हुई है.... लेकिन वही बात... कि उनके गले में घंटी बांधे कौन....? उस दिन तो टीवी पर समाचार का फुटेज देख कर बाबा का किस्सा सोलहो आने याद आ गया हमें। अरे वही बड़का खलिहान था... भला नाम उसका विधान सभा रखा हुआ था.... वहाँ भी बहुत सारे चूहे भरे हुए थे.... किस्म-किस्म के ! वहीं पर बिल्ली भी कान खरा कर के घात लगा रही थी। जैसे ही एक चूहा 'हिन्दी' में बोला...... बस हो गया 'हर-हर महादेव' ! फिर चूहों की मीटिंग बैठी.... लेकिन सवाल वही कि "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे ?"खलिहान के मालिक धनपत बाबू तो अब रहे नहीं... लेकिन उनका मोख्तार बिल्ली को चार साल तक खलिहान मे घुसने पर रोक लगा दिया है...!!' चलो चूहों को कुछ तो राहत मिली.... लेकिन बिना घंटी बांधे कैसे काम चलेगा.... खलिहान मे नहीं तो खेत मे मरेगा.... आखिर चूहा बन कर बैठे रहने से कब तक निर्वाह होगा... रोज-रोज मरने से बचना है तो बिल्ली के गले मे घंटी तो बांधना ही पड़ेगा... !!"

9 टिप्‍पणियां:

  1. करण जी जो जादू आप देसिल बयना में करते हैं वह ठेठ हिंदी में नहीं आ पा रहा है.. ये कारन भी हो सकता है कि हमे आपकी देशज भाषा पसंद आ गई है.. आज की कथा अच्छी है.. सच कहा आपने कि देश भर में बिल्ली फैले हैं और उन्हें घंटी बंधना ही होगा..

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  2. कहानी कैसे बनी का किस्सा तो बढ़िया कहा ..आज की भाषा के रूप में ..सौलिड है .. :)

    पर असली कहानी तो आगे की है ...चूहे भी हर जगह हैं और बिल्ली भी ....आज कल चूहे बिल्ली बनने की कोशिश में हैं ....बाकी सब कीड़े मकौड़े ...

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  3. कहावत के ज़रिये जो बात कहनी चाहि सच में उसे कहने के लिए जिस भी भाव का सघन प्रयास करते तो शायद इतनी प्रभावशाली ना हो पाती.

    हर जगह यही निरंकुश अत्याचारी बिल्ली ही तो बने हुए हैं और बाकी सब लोग चूहे.

    लेकिन आगे की कथा यूँ थी कि ..

    बूढ़े चूहे ने जुगत लगायी और एक प्लान सुझाई. प्लान ये कि एक दिन दौड प्रतियोगिता रखी जाये. और जान बूझ कर बिल्ली को जिताया जाये. पुरूस्कार स्वरुप एक घंटी विजेता के गले में बाँधी जाये और उसे उनका मुखिया करार दिया जाये और साथ ही साथ विजेता को उस दिन उसका मन पसंद भोज कराया जाये. तो ये सब जब चूहों में तय हो गया और बिल्ली रानी को इस प्रतियोगिता के लिए न्योता दिया गया. जान-बूझ कर जिताने वाली बात छुपा कर बाकी सब बाते बिल्ली को बता दी गयी. बिल्ली तो पुरूस्कार की बाते सुन और मन पसंद भोजन की बात सुन खुश हो गयी और सहर्ष ही ये न्योता स्वीकार कर लिया. अगले दिन बिल्ली को जिताया गया और घंटी बाँध दी गयी .....और चूहों की जान बच गयी.(हा.हा.हा.)
    तो जनाब ऐसा ही कुछ करना पड़ेगा और इन अत्याचारियों को किसी चाणक्य नीति से खतम करना पड़ेगा.

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  4. मजेदार तरीके से आपने
    इस कहावत का रहस्य
    समझाया ...
    आभार ...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति........

    अनामिका जी का भी आभार जो उन्होने पूरी कहानी से अवगत कराया.

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  6. मनोज जी,
    ये कहानियाँ कालजयी हैं. और हर युग में इनकी सचाई साबित करने वाले अनेकानेक उदाहरण मिलते रहेंगे. करण जी ने जिस तरह इसे वर्त्तमान से जोड़ा है वह सराहनीय है. राजभाषा ब्लॉग और भी रोचक होता जा रहा है और हम इसकी सफलता की कामना करते हैं.

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  7. कहानी तो सही है। मुझे लगता है ये घन्टी कभी नही बन्ध पायेगी। बिल्लियाँ ऐसे ही मौज उडाती रहेंगी। धन्यवाद।

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  8. बिल्ली के गले में घंटी बांधने की कहानी को आज के परिप्रेक्ष्य से जोड कर आपने बढिया मोड दिया है इन बिल्लियों के गले में घंटी तो बांधनी ही पडेगी चाहे चालाकी से ही क्यूं न हो । बल्कि घंटी क्यूं रस्सी का फंदा क्यूं नही ।

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