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मंगलवार, 16 नवंबर 2010

इतिहास :: "ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता"

इतिहास

"ये फसल इसलिए उगाता हूँ कि क्‍योंकि इन्‍हें खा नहीं सकता"

मनोज कुमार

हड़प्‍पन काल से 1947 ई, भारत के स्‍वतंत्र होने तक के चार हजार वर्षों के इतिहास में देश पर अनेक विदेशी शासकों ने शासन किया। इस लिहाज से देखें तो अंगरेजों द्वारा यहां शासन करना किसी विदेशी द्वारा शासन कोई नई बात नहीं थी, किंतु ब्रिटिश शासन ने हमारी आर्थिक एवं सामाजिक व्‍यवस्‍था को जितना प्रभावित किया उतना किसी अन्‍य शासकों ने नहीं। अंगरेजों के अलावा अन्‍य जितने भी विदेशी शासक यहॉं शासन किए वे अपने शासित राज्‍य को अपना समझते थे, अर्थात प्रजा को अपनी प्रजा की तरह मानते थे और उनके विकास में ही अपने शासन का उत्‍कर्ष देखते थे। यहॉं तक कि उनकी संस्‍कृतियाँ यहाँ कि मूल सांस्‍कृतिक धारा से मिल कर नई सांस्‍कृतिक धारा को जन्‍म दीं जो आज भी भारत भूमि पर सदावाही नदियों की तरह प्रवाहित हो रही है। लेकिन अंगरेजों का शासक के रूप में भी उद्देश्‍य अर्थ दोहन मात्र था। उन्‍होंने भारतीयों को कभी भी अपनी प्रजा नहीं समझा। जिसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ की सांस्‍कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्‍यवस्‍था पूर्णरूपेण छिन्‍न-भिन्‍न हो गई। उपनिवेशवाद एवं साम्राज्‍यवाद के उद्देश्‍य की पूर्ति हेतु उन्‍होंने नई-नई नीतियों बनाकर पूंजीवाद स्‍थापित किया। इन नीतियों से सबसे अधिक क्षति यहाँ की कृषि को हुआ। अंगरेजों के शासन काल में कृषकों का इतना शोषण हुआ कि भारत के ही नहीं विश्‍व के इतिहास में शोषण का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। उनकी औपनिवेशिक नीतियों के कारण कृषि का वाणि‍ज्‍यीकरण हुआ एवं उसके कुपरिणाम कृषकों को झेलने पड़े।

अंगरेजों के भारत आगमन के पहले हमारे गांव आत्‍म-निर्भर हुआ करते थे। गांव के लोगों की आवश्‍यकता की सभी चीजों का उत्‍पादन एवं विनिमय गांव में ही होता था। फलतः गांव और शहर का संबंध सीमित था। हलांकि सामंती व्‍यवस्‍था थी, पर भूमि पर किसी व्‍यक्ति विशेष का स्‍वामित्‍व नहीं होता था। भूमि पर स्‍वामित्‍व पूरे कृषक समुदाय का था। जमीन न तो बेची जा सकती थी और न ही खरीदी जा सकती थी। लगान फसल का एक भाग होता था नकद मुद्रा के रूप में नहीं। शासक हमेशा भू-राज्‍स्‍व का निर्धारण एवं उसकी वसूली की व्‍यवस्‍था उत्‍पादन के आधार पर करते थे। जब ब्रिटिशों के रूप में पूँजीवादी व्‍यवस्‍था का भारत पर हमला हुआ तो तत्‍कालीन भारतीय सामंती व्‍यवस्‍थार उसका विरोध न कर सकी। साम्राज्‍यवादी अंगरेजों ने आत्‍मनिर्भर गाँवों के हृदय पर वार किया और जो चीजें व्‍यापारिक नहीं थी, जिनकी खरीद बिक्री नहीं होती थी, उन्‍हें भी व्‍यापारिक बना दिया। दूरगामी प्रभाव लिए यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन था।

1757 ई में प्‍लासी की लड़ाई के बाद इंग्‍लैंड की ईष्ट इंडिया कंपनी का बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर कब्‍जा हो गया। इसे हम भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की स्‍थापना मान सकते हैं। 1765 ई. में कंपनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के भू-राजस्‍व प्रशासन का भार भी मिल गया। धीरे-धीरे उन्‍होंने अपनी इस पकड़ को और सुदृढ़ करने के प्रयास की ओर ध्‍यान देना शुरू किया तो प्राचीन काल से चले आ रही कर प्रणाली को बढ़ाने के लिए साथ साथ नए नए करों की गुंजाइश को खोजने का प्रयास करने लगे। भू-राजस्व उस समय उनका एकमात्र सबसे बड़ा आय का स्रोत था। सबसे पहले उन्‍होंने बोली लगाने की प्रथा शुरू की और उच्‍चतम बोली लगाने वाले को भूराज्‍स्‍व का अधिकार देने लगे। इस व्‍यवस्‍था के कारण परंपरागत जमींदारों के साथ साथ नए बनिए जमींदार वर्गों ने ऊँची बोली लगाकर राज्‍सव वसूली का अधिकार पा लिया। ये वर्ग भूमि को एक निवेश का साधन समझते थे। उससे मुनाफा कमाना इनका उद्देश्‍य बन गया। अंगरेजों के लिए राजस्व इकट्ठा करने के नाम पर वे न सिर्फ किसानों से अत्‍यधिक मांग करते थे बल्कि उसकी पूर्ति के लिए कठोर तरीके भी अपनाते थे। अधिक कर निर्धारण एवं नए जमींदारों की धन-लिप्‍सा के शोषण का खेतिहरों को शिकार होना पड़ा।

ब्रिटिश भू-राजस्‍व -व्‍यवस्‍था के बड़े दूरगामी परिणाम हुए। पहला राजस्‍व की दर ऊँची होने के कारण कृषि एवं कृषकों का विकास नहीं हो पाया। इस नई व्‍यवस्‍था ने गरीब कृषक वर्ग को और गरीब बनाया। कृषि व्‍यवस्‍था में ऐसे बदलाव लाए गए जिससे अंगरेजों के लिए भारतीय कृषकों का शोषण सरल हो गया। दूसरे, पहले से चली आ रही मान्यताएं एवं व्‍यवस्‍थाओं का विखंडन हुआ। जमीन पर निजी स्‍वामित्‍व को बढ़ावा दिया गया ताकि व्‍यक्तिगत कर निर्धा‍रण किया जा सके। इस तरह व्‍यक्तिगत कर अदायगी की प्रथा शुरू हुई। तीसरे, पारंपरिक सामाजिक व्‍यवस्‍था में बुनियादी परिवर्तन आया। भू-राजस्‍व के बंदोबस्‍त के कारण समाज में एक ऐसे कुलीन वर्ग का उदय हुआ जो अंगरेजों के हितों की पूर्ति में उनके सहायक बने। ये जमींदार वर्ग किसानों से मनमानी रकम वसूल कर निश्चित राशि सरकार को देता था और अपने लिए काफी मुनाफा कमाता था। चौथे, आर्थिक व्‍यवस्था एवं कर भुगतान के तरीके में परिवर्तन आया। पहले लगान खड़ी फसल का एक भाग होता था, और इसका निर्धारण फसल की पैदावार के अनुसार हर साल अलग-अलग होता था। किन्‍तु अब भूमि के टुकड़े के आधार पर लगान निर्धारण होने लगा। फसल अच्‍छी हो या बुरी "कर" की राशि निश्चित होती थी। लगान का भुगतान फसल के बजाए नकद कैश में किया जाता था , जिसका किसान के पास सदा अभाव रहता था। परिणाम यह हुआ कि कर देने के बाद जो कुछ किसान के पास बचता था उससे उसका जिन्‍दा रहना भी दुभर हो जाता था। मुद्रा में कर देने के लिए उसे फसल बेच देनी पड़ती थी। अपने जीवन निर्वाह और भू-राजस्‍व के नकद भुगतान के लिए किसानों को महाजन से कर्ज लेना पड़ता था। विपत्ति के समय, जमींदार का कर चुकाने के लिए, या कर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूमि को गिरवी रखा जाता था या बेच दिया जाता था। फलतः भूमि के दाम बढ़ने लगे। रेहन में दी गई जमीन, साहूकारों के हाथों से शायद ही कभी वापस आती थी। सूद चुकाने में ही जीवन बीत जाता था, मूल तो ज्‍यों का त्‍यों पड़ा रहता था। ऋण या लगान न चुका सकने की स्थिति में भूमि पर साहूकार कब्‍जा कर लेते थे या यूँ कहें कि किसानों को भूमि से बेदखल कर दिया जाता था। इस तरह जो किसान, पहले, पहले मालिक होता था जमीन का, अब धीरे-धीरे विवशता में अपने जीवन यापन के लिए दूसरे की जमीन जोतने वाला खेतिहर मजदूर बनने को मजबूर हो जाता था। ग्रामीण संगठन के ढांचे में आई यह दरार साबित करती थी कि भारतीय सामाजिक और आर्थिक जीवन पर कितनी बड़ी चोट थी यह। जो जमीन पहले पूरे गांव की मिलकियत थी उसे अलग अलग लोगों में बाँट दिया गया। अंगरेजों की औपनिवेशिक आर्थिक नीतियाँ, भू-राजस्‍व की नई प्रणाली और उपनिवेशवादी प्रशासनिक एवं न्‍यायिक व्‍यवस्‍था ने किसानों की कमर तोड़ दी।

ज़ारी ……

23 टिप्‍पणियां:

  1. भूखे नंगे अंग्रेजों के पास आज जो अपार वैभव दिखायी दे रहा है वह सब भारत की लूट से बना है। उन्‍होंने ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी का निर्माण ही इसलिए किया था कि वे इण्डिया से व्‍यापार कर सके और कुछ सम्‍पन्‍न और सभ्‍य बने। लेकिन यहाँ आकर उनकी आँखे फटी रह गयी जब उन्‍होनें भारत की सुदृढ़ ग्राम व्‍यवस्‍था को देखा। यदि इण्डिया सम्‍पन्‍न नहीं होता तो अंग्रेज अपनी कम्‍पनी का नाम ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी क्‍यों रखते? मैं भी पूर्व में इस संदर्भ के दो तीन आलेख पोस्‍ट कर चुकी हूँ। आपका आलेख हमारे अंग्रेजीदा लोगों की शायद आँखें खोल दे।

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  2. बढ़िया प्रस्तुति -बधाई !

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  3. सराहनीय पोस्ट , इतिहास का सच पुनः याद दिलाने के लिए बधाई स्वीकार करें . हमें अतीत से हमेशा सबक लेते रहना चाहिए .

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  4. सराहनीय पोस्ट , इतिहास का सच पुनः याद दिलाने के लिए बधाई स्वीकार करें . हमें अतीत से हमेशा सबक लेते रहना चाहिए .

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  5. अंगरेजों की औपनिवेशिक आर्थिक नीतियाँ, भू-राजस्‍व की नई प्रणाली और उपनिवेशवादी प्रशासनिक एवं न्‍यायिक व्‍यवस्‍था ने किसानों की कमर तोड़ दी।

    अंग्रेजों के पास केवल एक गुण था की कैसे दूसरों पर राज किया जा सके ....आये थे व्यापार करने और मालिक बन कर बैठ गए ...और हम हैं की आज तक उनका गुणगान कर रहे हैं ...बहुत अच्छी पोस्ट ...

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  6. जानकारी परक पोस्ट्……………सार्थक आलेख्।

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  7. एक नई दृष्टि मिलती है आपके आलेख से ... इतिहास को देखने के लिए भी ....

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  8. bahut sundar aitihasik prastuti..
    ...kasha aapka aalekh padhkar aaj ke angrejinuma sakhsiyat kuch sabak le lete!
    ...ithas se kuch n kuch sabak to milta hi hai... aapka pryas sarhaniya hai.... aabhar

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  9. @उदय जी,ज़ील जी, वंदनाजी
    आप लोगों को यह पोस्ट पसंद आया। हमारी मेहनत सफल हुई।

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  10. @ पी एन सुब्रमणियन जी
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

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  11. @ पी एन सुब्रमणियन जी
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

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  12. @ पी एन सुब्रमणियन जी
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

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  13. @ पी एन सुब्रमणियन जी
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

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  14. @ पी एन सुब्रमणियन जी
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

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  15. @ अजित गुप्त जी
    बिल्कुल सही कहा। ड्रेन ऑफ़ वेल्थ पर कभी और बातें करेंगे। इस आलेख शृंखला में हम कमर्शियलाइज़ेशन ऑफ़ एग्रीकल्चर तक सीमित रखेंगे अपनी बात।
    आपके आलेख हम पढेंगे।
    यदि लिंक दे देतीं तो सुविधा होती।

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  16. @ अमृता तन्मय जी
    आपसे सहमत कि हमें अपने इतिहास से भी सबक लेते रहना चाहिए।

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  17. @ संगीता जी
    अपने सही कहा कि आए थे व्यापार करने और यहां का ऐसा शोषण का दौर चलाया कि हमारी सारी व्यवस्था ही चौपट कर दिया।

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  18. @ अरुण जी
    आपके शब्द अनमोल हैं हमारे लिए।

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  19. @ कविता जी
    आपकी प्रेरक बातें अभिभूत कर गई।

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  20. एक नयादृष्टिकोण दिया है आपने इतिहास को देखने का! यह विषय बड़ा नीरस लगता था मुझे,पर आपने मेरे विचार बदल दिए हैं!!

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  21. आपके लेख ने हमारे इतिहास का संक्षिप्त में काफी कुछ ज्ञान करा दिया और लेख के अंतिम भाग ने होरी किसान की याद दिला दी.

    बहुत अच्छी प्रस्तुति...आगे भी इंतज़ार रहेगा...देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ.

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