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शनिवार, 20 नवंबर 2010

लघु कथा - शॉर्ट - कट !

लघु कथा

शॉर्ट - कट !

My Photoरेखा श्रीवास्तव

पंडित जी श्राद्ध करवा रहे थे कि जजमान के बड़े भाई का नौकर आया और बोला,  "पंडित जी, साहब बुलाये है।"

"आवत हैं, इ श्राद्ध तो पूरा करवाय दें।"

पंडित जी आश्चर्य में ! ‘आज तक तो कभी बड़े भाई ने कथा वार्ता भी नहीं करी, आज अचानक कौन सो काम आय गयो!’ 

पंडित जी तो इनके पिताजी के ज़माने से पूजा पाठ करवा रहे हैं सो सब जानते हैं। छोटे भाई और बड़े भाई दोनों विरोधाभासी है। एक सरकारी मुलाजिम - गाड़ी बंगले वाला और अमीर घराने की पत्नी वाला।  दूसरा अपने काम धंधे वाला - साधारण रहन सहन , पढ़ी लिखी पत्नी लेकिन बड़े घर की नहीं। सास ससुर के साथ ही रही और उनका बुढ़ापा संवार दिया।  दोनों में कोई मेल नहीं!

पंडित जी पहुंचे तो साहब ऑफिस के लिए तैयार।

"क्या पंडित जी, अब आये हैं आप मुझे तो ऑफिस कि जल्दी है।"

"श्राद्ध छोड़ कर तो आ नईं  सकत थे, खाना छोड़ कें  आय गए।"

"मैं भी श्राद्ध करवाना चाहता हूँ, बतलाइए कि क्या करना होगा?"

"जजमान श्राद्ध करवाओ नहीं जात, खुदई करने पड़त है। फिर जा साल तो हो नहीं सकत काये कि आजई तुम्हारे पिताजी के तिथि हती। माताजी की नवमी को होत है।"

"कोई ऐसा रास्ता नहीं कि सब की एक साथ ही हो जाए।"

"हाँ, अमावस है , वामें सबई पुरखा शामिल होत हैं।"

"उसी दिन सबकी करवा लूँगा एक साथ।"

"लेकिन व तो उनके लाने होत है , जिन्हें अपने पुरखन के तिथि न मालूम होय।"

"अरे एक ही दिन में निबटा दीजिये, ऑफिस वाले टोकने लगे हैं कि साहब आपके घर में श्राद्ध नहीं होता है। कुछ तो दिखाने के लिए भी करना पड़ता है। वैसे मैं इन सब चीजों को नहीं मानता।"

"पुरखों में १५ दिन तर्पण भी करौ जात है , तब श्राद्ध होत है।"

"आप शॉर्ट कट बतलाइये, इतना समय मेरे पास  नहीं रहता है।"

"शॉर्ट कट ये का होत है?"

"देखिये मैं छोटे की तरह से सालों अम्मा बाबू को नहीं झेल साकता था इसी लिए उनको छोटे ने रखा। इतना मेरे पास समय नहीं है और न मेरी पत्नी के पास। इस लिए सिर्फ श्राद्ध करवाना है, वह भी इस लिए कि ऑफिस वालों का चक्कर है, थोड़ा बुरा लगता है कोई टोकता है तो।"

"सही है जजमान तुम तो वई काम कर रहे हौ जो बड़े जन कह गए --

                     जियत न दीनो कौर, मारे उठाये चौरा”।

"इसका मतलब?"

"कछु नईं जजमान, अब अगले साल करिओ तौ सबरे पितर प्रसन्न हो जैहें।"

"इसी को शॉर्ट कट कह रहा था, कि पितर भी खुश और काम भी जल्दी हो जाये. "

               अच्छा पंडित जी अब चलता हूँ. अगले साल बुलवा लूँगा.

17 टिप्‍पणियां:

  1. अब यहाँ भी शोर्टकट ..इंसान का वश चले तो वोह भगवान् को भी धोखा दे- दे , लोक भाषा का प्रयोग करके आपने हर एक संवाद को जीवंत बना दिया है...शुभकामनायें

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  2. सब कुछ आजकल शॉर्टकट में ही चलाने, निभाने का ज़माना आ गया है। रिश्ते भी .... बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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  3. यह शॉर्ट कट भी केवल लोगों को दिखाने के लिए ...स्वार्थ कितना सिर चढ कर बोलता है ...अच्छी लघु कथा

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  4. शॉर्टकट में कहें तो लघुकथा बहुत अच्छी और शिक्षाप्रद है।

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  5. जियत न दीनो कौर, मारे उठाये चौरा.
    .
    रेखा जी ईहो एगो देसिल बयना हो गया... बहुत अच्छाब्यंग है और तथाकथित आधुनिकता का सच्चाई भी!!

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  6. आने वाला समय ऐसा ही होगा.. सशक्त लघुकथा..

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  7. रचना बेहद सुन्दर है …. उम्दा … शुभकामनाएं

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  8. कलयुग के सत्य को उजागर करती एक असरदार लघुकथा.

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