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शनिवार, 27 नवंबर 2010

पुस्तक चर्चा :: गांधी जी का “हिंद स्‍वराज”

पुस्तक चर्चा

गांधी जी का “हिंद स्‍वराज”

मनोज कुमार

सन् 1909 में गांधी जी ने हिंद स्‍वराज्‍य पुस्‍तक लिखी थी। उन्‍होंने यह पुस्‍तक इंग्‍लैंड से अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर लिखी थी। जब उनका एक हाथ थक जाता था तो दूसरे हाथ से लिखने लगते थे। यह पुस्तक संवाद शैली में लिखी गई है। हिंसक साधनों में विश्‍वास रखने वाले कुछ भारतीय के साथ जो चर्चाएं हुई थी उसी को आधार बनाकर उन्‍होंने यह पुस्‍तक मूलरूप से गुजराती में लिखी थी। दिसंबर 1909 में ‘इंडियन ओपिनियन’ में गुजराती में यह पुस्तक प्रकाशित हुई। जनवरी १९१० में इसका पुस्तकाकार रूप प्रकाशित हुआ। बाद में इसका अंग्रेजी व हिंदी में अनुवाद हुआ।

माना तो यह जाता है कि गांधी जी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी। हिंद स्‍वराज्‍य गांधीवाद को समझने की कुंजी है। गांधी जी उन दिनों जो कुछ भी कर रहे थे, वह इस छोटी सी किताब में बीजरूप में है। गांधी जी को ठीक से समझने के लिए इस किताब को बार बार पढ़ना चाहिए। दरअसल यह पाश्चात्य आधुनिक सभ्यता की समीक्षा है। साथ ही उसको स्वीकार करने पर प्रशनचिह्न भी है। इसमें भारतीय आत्मा को स्वराज, स्वदेशी, सत्याग्रह और सर्वोदय की सहायता से रेखांकित किया गया है।

इस पुस्‍तक की प्रस्‍तावना में गांधी जी लिखते हैं -

“जो विचार इस पुस्‍तक में रखे गए हें, वे मेरे हैं और मेरे नहीं भी हैं। वे मेरे हैं, क्‍योंकि उनके अनुसार आचरण करने की मुझे आशा है। वे मेरे अंतर में बस-से गए हैं। वे मेरे नहीं है, क्‍योंकि सिर्फ मैंने ही उन्‍हें सोचा हो, सो बात नहीं। ये विचार कुछ किताबों को पढ़ने के बाद बने हैं। दिल के भीतर मैं जो महसूस करता था, उसका इस किताब में समर्थन किया है।”

गांधी जी यह भी कहते हैं,

“यह पुस्तक सिर्फ़ देश की सेवा करने का और सत्य की खोज करने का और उसके मुताबिक बरतने का है। इसलिए अगर मेरे विचार ग़लत साबित हुए तो उन्हें पकड़ रखने का मेरा आग्रह नहीं है। अगर वे सत्य साबित हों तो तो दूसरे लोग ही उनके मुताबिक बरतें, ऐसा देश के भले के लिए साधारण तौर पर मेरी भावना होगी।”

इस पुस्तक में जिस विधा का उपयोग किया गया है वह प्रश्नोत्तरी का है। उन्होंने अपने को संपादक और पाठक के रूप में विभाजित किया। हरसंभव प्रश्न वे अपने-आप से पूछते हैं और उसका जवाब भी देते हैं। यह आत्म-संयम और संतुलन की एक कठिन प्रक्रिया है।

गांधी जी को लगता था कि हिंसा से हिंदुस्‍तान के दुःखों का इलाज संभव नहीं है। उन्‍हें आत्‍मरक्षा के लिए कोई अलग और ऊंचे प्रकार का शस्‍त्र काम में लाना चाहिए। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रिका के सत्‍याग्रह का प्रयोग 1907 में ही शुरू कर दिया था। इसकी सफलता से उनका आत्‍मविश्‍वास बढ़ा था।

यह पुस्‍तक द्वेषधर्म की जगह प्रेमधर्म सिखाती है। हिंसा की जगह आत्‍मबलिदान में विश्‍वास रखती है। पशुबल से टक्‍कर लेने के लिए आत्‍मबल खड़ा करती है। उनका मानना था कि अगर हिंदुस्‍तान अहिंसा का पालन किताब में उल्लिखित भावना के अनुरूप करे तो एक ही दिन में स्‍वराज्‍य आ जाए। हिंदुस्‍तान अगर प्रेम के सिद्धांत को अपने धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्‍वीकार करे और उसे अपनी राजनीति में शामिल करे तो तो स्‍वराज स्‍वर्ग से हिंदुस्‍तान की धरती पर उतरेगा। लेकिन उन्हें इस बात का एहसास और दुख था कि ऐसा होना बहुत दूर की बात है।

इस पुस्तक में गांधी जी ने आध्यात्मिक नैतिकता की सहायता से हमारी अर्थनैतिक और सैनिक कमजोरी को शक्ति में बदल दिया। अहिंसा को हमारी सबसे बड़ी शक्ति बना दी। सत्याग्रह को अस्त्र में बदल दिया। सहनशीलता को सक्रियता में बदल दिया। इस प्रकार शक्तिहीन शक्तिशाली हो गया।

गांधी जी के स्‍वराज के लिए हिंदुस्‍तान न तब तैयार था न आज है। यह आवश्‍यक है कि उस बीज ग्रंथ का हम अध्‍ययन करें। सत्‍य और अहिंसा के सिद्धांतों के स्‍वीकार में अंत में क्‍या नतीजा आएगा, इसकी तस्‍वीर इस पुस्‍तक में है ।

मशीनी सभ्‍यता ने जिस तरह पृथ्वी के पर्यावरण को नष्‍ट किया है उसका परिणाम आज सामने है। आर्थिक साम्राज्‍यवाद ने विश्‍व में गैर बराबरी को और भी बढ़ाया है जिसके कारण विश्‍व में हिंसा का आतंकवाद बढ़ा है। ऐसी स्थिति में, हिंद स्‍वराज में जैसी सभ्‍यता व राज्‍य की कल्‍पना की गई है वह सम्‍पूर्ण विश्‍व के सामने विकल्‍प के रूप में है, जिसे आजमाया जाना चाहिए। ‘हिन्द स्वराज’ के द्वारा गांधी जी ने हमें आगाह किया है कि उपनिवेशी मानसिकता या मानसिक उपनिवेशीकरण हमारे लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। उन्होंने हिन्द स्वराज के माध्यम से एक ‘भविष्यद्रष्टा’ की तरह पश्चिमी सभ्यता में निहित अशुभ प्रवृतियों का पर्दाफ़ाश किया।

‘हिन्द स्वराज’ में उन्होंने पाश्चात्य आधुनिकता का विरोध कर हमें यथार्थ को पहचानने का रास्ता दिखाया। ग्राम विकास इसके केन्द्र में है। वैकल्पिक टेक्नॉलोजी के साथ-साथ स्वदेशी और सर्वोदय को महत्व दिया सशक्तिकरण का मार्ग दिखाया। उनके इस मॉडेल के अनुसरण से एक नैतिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और शक्तिशाली भारत का निर्माण संभव है।

गांधी जी मूलतः एक संवेदनशील व्यक्ति थे। वे अपने सिद्धांतों की कद्र करने वाले भी थे। उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता को, परंपरागत भारत के समर्थक होने के बावजूद भी, अच्छी तरह पढा, समझा और फिर उसका विवेचनात्मक खंडन भी किया। उनके सामने यह बात स्पष्ट थी कि भारतीय-आधुनिकता सीमित होते हुए भी प्रभावी है। वर्तमान आर्थिक विश्वसंकट में गांधी जी की यह पुस्तक विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो उठी है। हालाकि कुछ खास वर्ग के लोग सोचते हैं कि गांधी जी देश को सौ वर्ष पीछे ले जाना चाहते हैं। लेकिन आज भारत हर संकट को पार कर खड़ा है। 1945 में गांधी जी के इस मत को कि देश का संचालन ‘हिंद स्वराज’ के माध्यम से हो, नेहरू जी ने ठुकरा दिया था। नेहरू जी का मानना था कि गांव स्वयं संस्कृतिविहीन और अंधियारे हैं, वे क्या विकास में सहयोग करेंगे। लेकिन आज भी हम पाते हैं की भारत रूपी ईमारत की नींव में गांव और छोटी आमदनी के लोग हैं। गांधी जी का ‘हिंद स्वराज’ इस वैश्वीकरण के दौर में भी तीसरी दुनिया के लिए साम्राज्यवादी सोच का विकल्प प्रस्तुत करता है।

गांधी जी ने अप्रैल १९१० में यह पुस्तक टॉल्सटॉय को समर्पित की तो उन्होंने जवाब में गांधी जी को लिखा था,

“मैंने तुम्हारी पुस्तक बहुत रुचि के साथ पढी। तुमने जो सत्याग्रह के सवाल पर चर्चा की है यह सवाल भारत के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण है”।

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी नयी विधा बहुत पसन्द आयी. साधुवाद.

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  2. राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी के 'हिंद-स्वराज' पर ब्लॉग के माध्यम से लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए आपको बहुत -बहुत धन्यवाद. गांधी जी की यह छोटी -सी किताब सौ साल हो जाने के बावजूद आज भी हमारे देश के लिए प्रासंगिक और प्रेरणादायक है. आपका आलेख सराहनीय और विचारणीय है. बधाई .

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  3. आपके इस लेख को पढ़ कर गाँधी जी का हिंद स्वराज के बारे में जानने की उत्त्कंथा प्रबल हो गयी है ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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  4. बेहतरीन...... इस पुस्तक के बारे में सुना है ..... पढने का बहुत मन है.... आपने कुछ अंश साझा किये आभार ........साधुवाद...

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  5. पुस्तक के बारे में सुन्दर चर्चा की गयी है....
    आभार!

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  6. ग्यानवर्द्धक पोस्ट है इस पुस्तक के कुछ अंश भी अगर अगली पोस्ट्स मे पडःावा सकें तो कृपा होगी। शुभकामनायें।

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  7. ज्ञानवर्धक आलेख्…………आभार्।

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  8. आपके पधारने का धन्यवाद... आप हिन्दी अनुवादक भी हैं और हिन्दी समर्थक भी. फिर भी आपका रोमन लिपि में अपने मनोभाव व्यक्त करना कुछ कमी का अहसास करवा गया ।

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