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शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

नवगीत :: अगहन में

गीत विधा में समय संगत बदलाव होते रहें हैं। ‘प्रयोगवाद’ के नाम पर हिंदी कविता में काफ़ी फेर बदल हुआ। छंदमुक्त कविताओं के लिखने का प्रचलन बढा। एक बात तो स्पष्ट है कि छंदों वाली कविता से ही छंदमुक्त कविता की धारा फूटी। पर गीत के रूप में भी कविता की धारा प्रवाहित होती रही और छ्ठे दशक में यह नवगीत के रूप में उभरी। समयानुसार इसमें काव्यशिल्प बदला। नये सामाजिक, अर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक परिवेश, मनुष्य की जैवकीय विसंगति, विडंबनाओं को नवगीत ने ग्रहण किया। नई कविता से एक अलग पहचान इसने बनाई, और यह इसके छंद को अपनाए रहने के कारण हुआ। हां, परंपरागत छंद को तोड़कर नया छंद विधान विकसित हुआ। अगहन मास शुरु हो चुका है। ऐसे में मुझे श्यामनारायण मिश्र जी का एक नवगीत याद आ रहा है, तो वही पेश है आज ...

अगहन में

Sn Mishra

श्याम नारायण मिश्र

 

अगहन में।

 

चुटकी भर धूप की तमाखू,

बीड़े भर दुपहर का पान,

दोहरे भर तीसरा प्रहर,

दाँतों में दाबे दिनमान;

मुस्कानें अंकित करता है

फसलों की नई-नई उलहन में।

 

सरसों के छौंक की सुगंध,

मक्के में गुंथा हुआ स्वाद,

गुरसी में तपा हुआ गोरस,

चौके में तिरता आल्हाद;

टाठी तक आये पर किसी तरह

एक खौल आए तो अदहन में।

 

मिट्टी की कच्ची कोमल दीवारों तक,

चार खूंट कोदों का बिछा है पुआल;

हाथों के कते-बुने कम्बल के नीचे,

कथा और किस्से, हुंकारी के ताल;

एक ओर ममता है, एक ओर रति है,

करवट किस ओर रहे

ठहरी है नींद इसी उलझन में।

17 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर बिम्बो से लैस
    बहुत सुन्दर

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  2. एक ओर ममता है, एक ओर रति है,
    करवट किस ओर रहे
    ठहरी है नींद इसी उलझन में।

    बहुत सुन्दर!

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  3. बेहतरीन रचना शृंखला की एक और ख़ूबसूरत कड़ी..

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  4. साहित्य के इतिहास पर नजर पड़े बहुत दिन हो गये ।नवगीत विधा को दुबारा पढ़ना अच्छा लगा। आभार

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  5. बहुत ही सुन्दर बिम्बों से सजी ..अगहन की सारी खूबियों को समेटे हुए ..सुन्दर प्रस्तुति

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  6. वाह क्या बिम्ब हैं ...बहुत ही सुन्दर रचना.

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  7. सभी बिम्ब एक से बढकर एक और गीत भी गज़ब का है…………बेहद उम्दा।

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  8. सरसों के छौंक की सुगंध,

    मक्के में गुंथा हुआ स्वाद,

    गुरसी में तपा हुआ गोरस,

    चौके में तिरता आल्हाद;



    बेहतरीन और ख़ूबसूरत रचना .

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  9. बड़ी ही प्यारी स्थितियों का रेखांकन है ! यह भी स्पष्ट है कि ये सुख ग्राम्यजीवन में हैं , यानी सर्जना के सुख !

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  10. आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

    http://charchamanch.uchcharan.com
    .

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  11. सुन्दर बिम्बों के प्रयोग से गीत अपने उत्कर्ष पर आसीन है।

    आभार,

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  12. बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

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  13. सरसों के छौंक की सुगंध,

    मक्के में गुंथा हुआ स्वाद,

    गुरसी में तपा हुआ गोरस,

    चौके में तिरता आल्हाद;
    सुन्दर नये बिम्बों से सजी सवरी रचना। दिल को छू गयी। ग्राम्यजीवन के सुख दुख का अनोखा संगम। धन्यवाद।

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  14. बहुत अच्छी रचना है। जो जिया,उसी को अभिव्यक्त करता कवि-मन। प्रायः हर वाक्यांश की विशद् व्याख्या संभव।

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