ये आसमान और मेरे अरमान दूरी दोनों की एक जितनी सम्भव जब - जब आसमान तक निगाह उठी अरमानों का रेला सामने चला आता है। ये तारे और मेरी चाहतें दोनों की एक जितनी संख्या सम्भव जब - जब तारे गिनने की कोशिश की मेरी चाहतों का ढेर लग जाता है। ये नदिया और मेरी कल्पनाएँ दोनों का स्वभाव एक जैसा सम्भव जब - जब लहरों को गिनना चाहा मेरी कल्पना का समुद्र सामने आ जाता है । तुम और मैं , मैं और तुम एक जैसे सम्भव जब भी तुम तक पहुँचने की कोशिश की मेरा " मैं " मेरे सामने आ जाता है| संगीता स्वरुप |
jabardast bahut hi sunder
जवाब देंहटाएंआपको पढना एक सुखद अहसास होता है . कल्पनाओ के लोक में विचरण करते हुए भी पांव धरती पर होते है और . क्या लिखूं ?
जवाब देंहटाएंआज तो बडी ही ज़बरदस्त रचना लिखी है……………गज़ब के भाव और अहम का चित्रण बखूबी किया है……………बहुत पसन्द आई।
जवाब देंहटाएंओह हो आज तो एक एक शब्द हकीकत सा लिख डाला है और चित्रों का साथ उन्हें और भी प्रभावी बना रहा है .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये रचना.
क्या बात है? बहुत खूबसूरती से तुलना कर गयी और भावों को उतर दिया सबके दिल में.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
ये नदिया और मेरी कल्पनाएँ
जवाब देंहटाएंदोनों का स्वभाव एक जैसा सम्भव
जब - जब लहरों को गिनना चाहा
मेरी कल्पना का समुद्र सामने आ जाता है ।
aapki soch paripakw kahun yaa tarashi hui
वाह वाह वाह ! कमाल के साम्य ढूंढ निकाले आज तो संगीता जी ! बेहद खूबसूरत पन्क्तियाँ हैं ! आज लगता है सबके जज़्बात आपकी कलम से कागज़ पर उतर आये हैं ! बहुत ही सुन्दर रचना है ! बधाई और शुभकामनायें स्वीकार करिये !
जवाब देंहटाएंचारों कवितायें चित्रों के अनुरूप ,अर्थपूर्ण हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये रचना
जवाब देंहटाएं"मेरे मैं" की बात अच्छी लगी.सच क्यों ये जब तब आगे आ ही जाता है. कब नियंत्रण करना सीख पायेगे
चारो कवितायेँ सुन्दर हैं... छोटी कविता लेकिन बहुत प्रभावपूर्ण.. खास तौर पर अंतिम कविता...
जवाब देंहटाएंमानवीय वासनाओं का अन्तरिक्ष बनाते हुए , सुखद अनुभूति
जवाब देंहटाएंतुम और मैं , मैं और तुम
जवाब देंहटाएंएक जैसे सम्भव
जब भी तुम तक पहुँचने की कोशिश की
मेरा " मैं " मेरे सामने आ जाता है|
ehsas aur aham ka sunder mishran....
ये नदिया और मेरी कल्पनाएँ
जवाब देंहटाएंदोनों का स्वभाव एक जैसा सम्भव
जब - जब लहरों को गिनना चाहा
मेरी कल्पना का समुद्र सामने आ जाता है ।
...wah!waah!...kyaa baat hai!
अद्भुत सामंजस्य स्थापित किया है प्रकृति और मानव हृदय की भावनाओं के मध्य... और अंत में एक कड़वा सच!! बहुत अच्छी प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंतुम और मैं , मैं और तुम
जवाब देंहटाएंएक जैसे सम्भव
जब भी तुम तक पहुँचने की कोशिश की
मेरा " मैं " मेरे सामने आ जाता है|
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सभी शब्दचित्र सशक्त और सुन्दर हैं!
bahut sundar.
जवाब देंहटाएंएक ही तार में पिरोए चारों खंड सार्थक हैं ,केन्द्रीय भाव की गहनता द्योतित करते हुए.
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
चारो कवितायेँ सुन्दर हैं...
जवाब देंहटाएंॐ नमः सिवाय
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की आपको शुभकामनायें