अरुण जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कुछ दिनों पूर्व उनसे उनकी कविता पर बातें कर रहा था तो उनसे पूछ बैठा इतनी गंभीर गहन काव्य की रचना के प्रेरणास्रोत कौन है। तो अरुण जी अपना एक संस्मरण सुनाने लगे, जब उनकी मुलाक़ात बाबा नागार्जुन से हुई थी और उन्हें उन्होंने अपनी एक कविता भेंट की थी। तब बाबा ने अपने करकमलों से उन्हें शुभकामना देते हुए कहा था कि इतनी अच्छी समीक्षा मेरे उपन्यास की किसी ने नहीं की है। बाबा ने भारतीय परम्पराओं का पालन अपनी रचनाओं में करने के साथ-साथ शोषण विरोधी व सर्वहारा के पक्ष की बात की, यही हमे अरुण की रचनाओं में मिलती है। नागार्जुन की तरह ही अरुण भी मानवीय अनुभूतियों के कवि हैं। हमने अरुण जी से आग्रह किया था कि अपनी उस कविता को राजभाषा हिन्दी के लिए दें। उन्होंने हमारा आग्रह माना। हम उनके आभारी हैं। तो आज पेश है अरुण जी की वही कविता – “बाबा”। …. ….. ….मनोज कुमार
“बाबा नागार्जुन अप्रैल १९९२ में धनबाद (अब झारखण्ड) आये थे. मेरी बहुत इच्छा थी कि बाबा से मिलू .. बहुत डर भी रहा था कि बाबा मिलेंगे कि नहीं. मेरे पास कुछ था नहीं अर्पित करने को उन्हें. बस कुछ कवितायें और उनके उपन्यास का अध्यनन था मेरे पास. तुरंत बारहवी किया था और साथ ही 'बाबा बटेसरनाथ' पढ़ रहा था. उस उपन्यास के कथानक और चरित्रों का मन पर गहरा छाप था. सोचा इन्ही चरित्रों पर एक कविता लिख कर ले चालू बाबा के पास. लगभग बीस वर्ष बाद अभी बाबा नागार्जुन का यह जन्मशताब्दी वर्ष है. मेरे पास फिर कुछ नहीं है अर्पित करने को उन्हें.. उस कविता के अतिरिक्त जिसे बाबा ने अपने मोटे मेग्निफायिंग लेंस से पढ़ा था और अपने कांपते हाथों से टिप्पणी भी की थी... अपने साथ रहने का अनुरोध भी किया था लेकिन मेरा दुर्भाग्य.... प्रस्तुत है कविता "बाबा" .. ” अरुण चन्द्र रॉय
याद नहीं तुम्हे
वही जय किशुन
राउत का बेटा
जिसे तुमने बताया था
अपना अतीत
उसका और उसके पूर्वजों का किस्सा
तुमने ही तो समझाया था
जय किशुन को मुक्ति-मार्ग
और पाकर तुम्हारा अदृश्य वरदहस्त
संघर्षशील हो गया था, वह.
तुमने ही तो उसके अंग अंग में
संघर्ष का बीज बोया था
वही 'जय किशुन ' हूँ, मैं
बाबा.
तुम तो सिखा गए मुझे
'टुनाई पाठक' और
'जय नारायण झा' से मुक्ति का मार्ग
और मैंने वह पाया भी था.
किन्तु आज फिर
असंख्य टुनाई और जयनारायण
हो गएँ हैं पैदा और
फिर रहे हैं हाथों में उठाये
शस्त्र-अस्त्र .
तुमने जिस टुनाई पाठक और जय नारायण झा की
चर्चा सुनायी थी
वह तो गैरमजरुआ जमीन
हथियाना चाहता था
लेकिन आज का टुनाई और जयनारायण
मेरी और अपनी माओं की कोख पर
चाहता है ग्रहण लगाना.
वह पाठक तो
बेवा कर गया अपनी बहिन को भी
और तुम्हारा वह जयनारायण
अपने ही भाइयों के खून से रंगे हुए है हाथ
क्योंकि अभी भी
जिंदा है 'भीम झा'
वह बहरूपिया है
भेष बदल लिया है उसने
अब तो खाखी वर्दी भी पा ली है
सच कहता हूँ
वह अब भी जिंदा है
और उतना ही क्रूर है
बाबा.
तुमने ही तो संतोष दिया था कि
छट गया है अँधेरा
सूर्य पुनः प्रकाशित हो उठा है
तुमने ही तो कहा था
जीत मेरी होगी
बस मेरी.
किन्तु तुम क्या जानो मेरा दर्द
उस समय तो गोरे, फिरंगी
लूटते थे हमें
किन्तु आज तो
हमारा 'जीवनाथ' , अपना 'वीरभद्र'
हत्यारा बना बैठा
बाबा.
आज मैं बिल्कुल अकेला हूँ
मेरा जीवनाथ छूट गया है
बहुत पीछे
और हो गया हूँ मैं
चलता फिरता, साँसे भरता जिंदा लाश .
मैं उस समय परेशान हो
तुम्हारी शरण में आया था
और तुमने ही बताया था
मुक्ति मार्ग
आज उस से अधिक विषम स्थिति में
पड़ा हूँ मैं
और बस तुम ही बता सकते हो
मुक्ति मार्ग
बाबा.
मैं कोई और नहीं, तुम्हारा जय किशुन
राउत का बेटा जय किशुन .
apane prerana strot ka aashirvad pana ,use sanjo kar rakh pana jeevan ka sabase bada soubhagya hai...aaj aap baba ke aankhon me aapko le kar umad pade sapano se bhi aage nikal gaye hai ...isi tarah aur aage badhate rahe aur aapki kavitayen logo ke bhavanon ki juban bane yahi shubhakamnayen hai....
जवाब देंहटाएंJeevan me bahut bada aashirwad paya Arunji ne!
जवाब देंहटाएंAnek shubhkamnayen!
is zarurat ke kshan me baba apna aashish zarur denge
जवाब देंहटाएंअरुण जी, स्वयम को बहुत छोटा पाता हूँ इस रचना पर कुछ भी कहने के लिये!! बाबा नागर्जुन का कहा अल्टीमेट है और उन्होंने जो एक दशक पूर्व कह दिया उसके बाद मेरा कुछ भी कहना धृष्टता होगी!!
जवाब देंहटाएंअपने ही लोगों द्वारा मारे जाने वालों की मर्मान्तक पीड़ा ...सरपरस्तों ने बस चेहरा बदला है ...पहले सिर्फ गोरे थे ..अब काले , पीले , चितकबरे !
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंअब समझा.... आपकी कविताओं का राज ! बाबा नागार्जुन का आशीष........... जिस रचना/रचनाकार को मिल गया हो, उस पर कोई भी टिप्पणी करना मेरे लिए धृष्टता होगी. मैं आप दोनों विभूतियों को नमन करता हूँ !
जवाब देंहटाएंतुमने ही तो संतोष दिया था कि
जवाब देंहटाएंछत गया है अँधेरा
सूर्य पुनः प्रकाशित हो उठा है
तुमने ही तो कहा था
जीत मेरी होगी
बस मेरी.
बाबा नागार्जुन का आशीर्वाद पा कर आपकी सृजन शक्ति अद्भुत हो गयी है ...बधाई ..और इस रचना को पढवाने के लिए आभार
बड़े छिपे रुस्तम निकले. बाबा नागार्जुन के शिष्य की कलम में ही इतनी धार हो सकती है. उत्कृष्ट लेखन के उज्जवल भविष्य के लिए बहुत शुभकामना.
जवाब देंहटाएंबाबा का आशीर्वाद मिल गया हो जिसे उसकी सृजनशीलता तो अद्भुत होनी थी……………चलो आज ये राज भी पता चल गया …………वैसे ना उस वक्त और ना ही आज कोई कमी आई है बल्कि उतरोत्तर बढ गयी है रचनाधर्मिता और गहन सोच का दायरा………आपसे यही उम्मीद है कि आप भी बाबा के लेखन की तरह उनके सशक्त हस्ताक्षर बने।
जवाब देंहटाएंबड़ा धर्म संकट है बाबा के बाद कुछ कहना, लेकिन इस कविता को पढ़ कर इसका गहरा असर बना रहता है.
जवाब देंहटाएंइस अद्भूत पुरुष के आशीर्वाद के लिए शुभकामनाएँ आपको....
जवाब देंहटाएंअरुण जी की कविताएँ हमेशा,जमीन से जुड़ी होती हैं....और उनमे अपने परिवेश का दर्द झलकता है .बहुत ही यथार्थवादी कविता है...आज का सच समेटे हुए.
जवाब देंहटाएंउन्हें तो बाबा नागार्जुन का आशीर्वाद प्राप्त है...उनकी लेखनी बस ऐसे ही चमत्कृत करती रहे...
Arun jee!! sach me aap bahut pahuche hue logo me se ho..:)
जवाब देंहटाएंमैं उस समय परेशान हो
तुम्हारी शरण में आया था
और तुमने ही बताया था
मुक्ति मार्ग
आज उस से अधिक विषम स्थिति में
पड़ा हूँ मैं
और बस तुम ही बता सकते हो
मुक्ति मार्ग
बाबा.
मैं कोई और नहीं, तुम्हारा जय किशुन
राउत का बेटा जय किशुन .
jab sannidhya hi aisa ho to udveg kaisa hoga...:)
sach me aaj mujhe khushi hai , ki main aapka fan aur frnd dono hoon...dhanyawad!
बाबा के आशीर्वाद से आपकी लेखनी निरंतर चलती रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... बहुत मार्मिक ... प्रभावी रचना है ... बाबा के पात्रों को जीवित करके लिखी रचना ...
जवाब देंहटाएंजमीन से जुडी रचनाओं का स्त्रोत है अरुण जी ...
तुरुप की पत्ती इतने दिन कहाँ छिपा के रखी थी.
जवाब देंहटाएंअरुण जी के अन्दर का कवि बाबा नागार्जुन जी का आशीर्वाद पाने का हक़दार था और वो अरुण जी को मिला. ये बाबा का आशीर्वाद ही है की अरुण जी की कवितायें आम आदमी के दुःख-दर्द की कहानी कहती दिखती हैं और लोगों के दिलों को छूती हैं. .
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन का आशीर्वाद आपकी रचनाओं में परिलक्षित होता है ..इस रचना को पढवाने का बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंआज उस से अधिक विषम स्थिति में
जवाब देंहटाएंपड़ा हूँ मैं
और बस तुम ही बता सकते हो
मुक्ति मार्ग
बाबा..roy ji ko baba ka sanidhya mila .yah gauraw ki bat hai.
इतने वर्षों बाद भी,तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद,परिस्थितियां कमोबेश वही हैं। भीम झाओँ,वीरभद्रों और जीवनाथों का खेल बहुत हुआ। अब बारी जयकिशुनों की है। अरब देशों का हाल हम देख ही रहे हैं।
जवाब देंहटाएं@ कविता जी, क्षमा जी, राष्मिप्रभाजी, सलिल जी, वाणी जी, समीर जी, करन जी, संगीता जी, रामपती जी, वंदना जी, राहुल जी, रश्मि रविजा जी, मुकेश जी, मनोज जी, मानिक जी, दिगंबर जी, कुमारेश जी, शिखा जी, शा जी, राधा रमण जी...
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह और आशीष के बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार...
यह तो मनोज जी का स्नेह था कि यह कविता और बाबा का आशीवाद लोगों के सामने लाया वरना मेरी पुरानी डायरी में यह सो रही थी.. बाबा से मिले कोई बीस वर्ष होने जा रहा है और उनका उपन्यास बाबा बटेसर नाथ आज भी प्रासंगिक है और मुझे अपनी कविता भी आज की ही लग रही है... सादर
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक!
जवाब देंहटाएंअरुण जी, बहुत आश्चर्य के साथ इस कविता को देख रहा हूँ कि यह कविता आज से बीस वर्ष पहले लिखी गई थी वह भी एक इंटरमीडिएट के विद्यार्थी द्वारा। बाबा नागार्जुन की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से सृजन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता है आज से दो दशक पूर्व लिखी गई किंतु दिनो दिन ज्यादा सामयिक होती कविता बहुत बहुत बधाइयां
जवाब देंहटाएंहरीश जोशी
harish-joshi.blogspot.com पर भी कृपया दृष्टि डालने का अनुरोध है ।
सुन्दर..अति सुन्दर लेख..
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