ज्ञान चक्षु खोल कर विज्ञान का विस्तार कर जा रहे हो कौन पथ पर देखो ज़रा तुम सोच कर। कौन राह के पथिक हो कौन सी मंजिल है सही डगर के बिना मंजिल भी भटक गई है। अस्त्र - शस्त्र निर्माण कर स्वयं का ही संहार कर क्या चाहते हो मानव ? इस सृष्टि का विनाश कर । विज्ञान इतना बढ़ गया विनाश की ओर चल दिया धरा से भी ऊपर उठ ग्रह की ओर चल दिया । हे मनुज ! रोको कदम स्नेह से भर लो ये मन लौट आओ उस पथ से जहाँ हो रहा मनुष्यता का पतन। |
sahi kaha sangeeta ji...aabhar
जवाब देंहटाएंवाह....क्या लिखा है आपने ......मन की बात कहा दी ....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअजी 21 मई को तो सभी को एक ही पथ पर जाना था, लेकिन दुर्भाग्य से जा नहीं पाए। सोचा था कि सभी एक साथ, वाह क्या आनन्द आएगा! आपकी कविता अच्छी है।
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश।
जवाब देंहटाएंअच्छी चेतावनी दी है इस कविता ने !
जवाब देंहटाएंsunder sarthak ..bhavpoorna satya kaha hai ...
जवाब देंहटाएंsateek lekhan ke liye badhai ...!!
अस्त्र - शस्त्र निर्माण कर
जवाब देंहटाएंस्वयं का ही संहार कर
क्या चाहते हो मानव ?
इस सृष्टि का विनाश कर ।
sahi aagah kiya hai
हे मनुज ! रोको कदम
स्नेह से भर लो ये मन
लौट आओ उस पथ से जहाँ
हो रहा मनुष्यता का पतन।
sahi nirdesh
विज्ञानं अब विकास के बजाय विनाश की ओर अग्रसर है
जवाब देंहटाएं्बेह्द सुन्दर आह्वान किया है…………उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंmanushya ko samaz jaane ki jarurat hai...anyatha patan nishchit hai!...sundar vichaar, badhaai!
जवाब देंहटाएंbahut achchha aur yatharth likha hai. apani pragati jise ham samajh rahe hain usake aage jane par vinash ke dvar hi khul rahe hain. ham khud pragati karte karte apane hi dushman ho rahe hain.
जवाब देंहटाएंचेतावनी भी आव्हान भी.
जवाब देंहटाएंबेहद सशक्त कविता.
हे मनुज ! रोको कदम
जवाब देंहटाएंस्नेह से भर लो ये मन
लौट आओ उस पथ से जहाँ
हो रहा मनुष्यता का पतन।
लोकोपयोगी कामनाएं.वाह क्या बात है .
हे मनुज ! रोको कदम
जवाब देंहटाएंस्नेह से भर लो ये मन
लौट आओ उस पथ से जहाँ
हो रहा मनुष्यता का पतन।
बहुत ही सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण संदेश देती प्रेरक रचना ! बहुत बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें !
अति सुंदर...!!!
जवाब देंहटाएंमनुष्यता की कीमत जिस दिन समझ आ जायेगी शायद लौट आये वो!! तब टक प्रतीक्षा ही करनी होगी किसी युगपुरुष की!!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
हे मनुज ! रोको कदम
जवाब देंहटाएंस्नेह से भर लो ये मन
लौट आओ उस पथ से जहाँ
हो रहा मनुष्यता का पतन।
bahut theek kaha....
इस विकट घड़ी में मानवता की स्थापना और शांति और सौहार्द्र की रक्षा के लिए गांधी जी के अहिंसा का सिद्धांत बहुत ज़रूरी है। सुख और शांति के लिए प्रेम, भाईचारा और स्नेह आज के समय की मांग है। यह उद्देश्य बताने में कविता पूरी तरह खड़ी उतरती है।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत आवश्यक है यह ध्यान में रखना, नहीं तो विज्ञान का सार्थक उपयोग कभी न हो पायेगा...
आखिरी पांति बहुत ही सम्बेदन शील ! बधाई !
जवाब देंहटाएंचेतावनी देती अच्छी रचना
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