अरुण चन्द्र रॉय
कुछ दिन पहले तक विश्वास नहीं था कि ग्रह दशा ख़राब होती है, इन सबका कोई असर पड़ता है जीवन पर. विश्वास अभी भी नहीं है. लेकिन पिछले तीन शनिवार और रविवार कुछ अच्छे नहीं गुज़र रहे हैं .. कुछ न कुछ उल्टा पलता हो रहा है. संयोग मात्र है यह. पत्नी पीछे पड़ी है कि किसी पंडित ज्योतिष से दिखवाइये. खैर मुद्दा यह नहीं है.
मुद्दा है कि कुछ बातें अन्ना भाई से बांटना चाहता हूँ . भ्रष्टाचार अब भ्रष्टाचार नहीं रह गया है. यह एक सुविधा शुल्क बन गया है और अन्ना भाई के साथ जो जनता खड़ी थी, कैमरे के फ्लैश के साथ नारे लगा रही थी, वह इस सुविधा शुल्क को स्वीकार करती है. पिछले कुछ महीनो से मैं अपने स्तर पर इस विषय पर शोध कर रहा हूँ और बहुत आश्चर्यजनक तथ्य सामने आये हैं.
- नगर निगमों में बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए जो ५०० रूपये से १००० रूपये का रिश्वत देना पड़ता है, ९०% से अधिक लोग उसे भ्रष्ट्राचार नहीं मानते क्योंकि इस से उनके कुछ घंटे, नगर निगम आने जाने का खर्चा आदि बच जाता है. मैंने लगभग चालीस पचास लोगों से इस बारे में पूछा है.
- घर के लिए ऋण लेने में तमाम कागजात पूरे होने के बाद भी २ से ५ फिसदी का खर्चा आता है. लोग घर लेने के उत्साह में, घर की डील छूट ना जाये, कौन बैंको के चक्कर मारे, यह रकम देने को तैयार रहते हैं. कोई ३० मामलों में से २६-२७ मामलों में मैंने ऐसा पाया है.
- बिजली का कनेक्शन, सीवर का कनेक्शन पानी का कनेक्शन बिना सुविधा शुल्क के नहीं हो सकता. ग्रामीण इलाकों में नरेगा से मिलने वाली मजदूरी, गरीबी रेखा के नीचे वालों के लिए इंदिरा आवास के लिए रकम आदि में कमीशन तय है. लोग इसे भ्रष्टाचार नहीं मानते. इस दिशा में लगभग सौ लोगों से मेरी बात हुई है.
और जिस बात से मैंने यह लेख शुरू किया था वहीँ पहुचते हुए कहूँगा कि पिछले शनिवार को अपनी कालोनी के साप्ताहिक बाज़ार में मेरा मोबाइल चोरी हो गया. किसी जेबकतरे ने उड़ा लिया. महंगा हैंडसेट था सो बहुत खुश हुआ होगा. डाटा का बैक अप मैंने रखा नहीं था सो मेरा नुक्सान भी हुआ. कुछ बेहद जरुरी नंबर नहीं है अभी मेरे पास. महीनो लगेंगे अपनी इष्ट मित्रों का नंबर फिर से जुटाने में.
अपने पुराने नंबर का नया सिम लेने के लिए कुछ औपचारिकतायें होती हैं. जैसे सिम के गुम होने की पुलिस रिपोर्ट करनी होती है. मैं भी चला गया. सरकारी महकमे में होने का परिचय नहीं दिया. एक आम आदमी की तरह गया. पहले तो सब इंस्पेक्टर साहब ने डेढ़ घंटे तक चौकी के बाहर इन्तजार कराया जैसे कि मैंने अपना मोबाइल खुद चुराया हो. फिर उस आवेदन पत्र को स्वीकार नहीं किया जिसमे मैंने लिखा था कि मोबाइल चोरी हो गया है. मुझसे लिखवाया गया कि मोबाइल गुम हो गया है कहीं.
फिर मुझसे चाय मंगवाई गई. मुझे चाय मिली नहीं क्योंकि वहां आसपास कहीं कोई चाय की दुकान थी ही नहीं. पुलिस वालों को पता था वह. सो मुझे उनके लिए २ लीटर वाली कोल्ड ड्रिंक और नमकीन लानी पडी. साथ में सौ रूपये अलग से देने पड़े. मैंने दिए भी क्योंकि मैं देखना चाहता था कि एक आम आदमी को एक छोटी सी रिपोर्ट लिखवाने के लिए क्या कुछ करना पड़ता है.
जाते जाते अन्ना भाई साहब, आम आदमी जंतर मंतर पर धरना भी नहीं दे सकता. यह अधिकार भी उस से छिन चुका है. विश्वास ना हो तो इन दिनों कभी भट्टा परसौल आकर देखिये . दिल्ली से बहुत दूर है.
ये वो कडवी सच्चाई है जिससे हर आम आदमी को दो-चार होना पडता है,
जवाब देंहटाएंआप की बात सौ फीसदी सही है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंयही तो भ्रष्टाचार है। इसे अन्ना को सुनाने के बजाय स्वयं को सुनाया जाए। क्या आन्ना को ठेका दे दिया गया है कि भ्रष्टाचार समाप्त करें? इसमें आहुति ही इसे बढ़ावा देती है। आहुति देने की हिमायत करना भी भ्रष्टाचार है। आज ही एक रिपोर्ट छपी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रष्टाचार में कमी आई है। अतः यह शुभ लक्षण है। शहर वालों के पास पैसा है और जाने-आने तथा काउंटरों पर लाइन में खड़े रहने को तकलीफ़ समझकर सुविधा शुल्क देकर भ्रष्टाचार में आहुति डालना बंद कर दिया जाए तो भ्रष्टाचार समाप्त नहीं तो कम होगा और एक दिन ऐसा आएगा कि भ्रष्टाचार दम तोड़ देगा।
जवाब देंहटाएंसटीक बात कही है ...
जवाब देंहटाएंबड़े भ्रष्टचार तो नजर में आते है पर ये तो छोटा दीमक है इस पर कोई छिडकाव काम नहीं करता
जवाब देंहटाएंबहुत सही और सटीक बात कही है.
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार की दीमक ने अन्दर तक खोखला कर दिया है …………कहीं सुनवाई नही है अरुण जी………कितनी ही आवाज़ें दो कोई जवाब नही आयेगा।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बातें लिखी हैं आपने .....
जवाब देंहटाएंआम आदमी ने अपने दैनिक जीवन में स्वीकार कर लिया है सामान्य भ्रष्टाचार को .. जैसे थोड़ी-बहुत रिश्वत देकर अपने काम निकालना ...
भ्रष्टाचार के संस्कार घर से पड़ते हैं। बचपन में दस-पाँच रुपए का प्रसाद देवताओं पर चढ़ा कर उत्तीर्ण करा देने की कामना करते हैं। भगवान भरोसे सफलता मिल जाती है तो हौसला बढ़ जाता है। आदत के अनुसार बड़े काम बनवाने के लिए कहीं बड़ी रकम देनी पड़ती है तो शर्म नहीं लगती है। भ्रष्टाचार को वे लोग सेवा-शुल्क समझते हैं जिनके पास समय की कमी है। और भ्रष्टाचार में चढ़ाए गए धन से अधिक भ्रष्टाचार से वसूल कर लेने का जरिया है। भ्रष्टाचार की असल मार उन पर पड़ती है जिनके पास उसका मुंह बंद करने के लिए न धन होता और न कोई जरिया।
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’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
अब यह लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी।
जवाब देंहटाएंतभी तो ये सब देख सुनकर कभी - कभी अन्ना जी पर बहुत तरस आता है की उन्होंने क्या सोच कर ये बीड़ा उठाया होगा यहाँ तो भ्रष्टाचार की जड़े जमीं तक पहुँच चुकी है समझ नहीं आता किस - किसको सुधरेंगे यहाँ तो उपर से नीचे तक जितना भी खा सके खा लो वाली बात पर चल रहे हैं चलो जो होगा देखी जाएगी |
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विषय पर चर्चा लिखी आपने |
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