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शनिवार, 4 जून 2011

आओ मिल जाएँ हम सुगंध और सुमन की तरह


                          Salil Varma 
- सलिल वर्मा
(एक घोषणा: मुझमें भाषा की कोई समझ नहीं है और ना ही मैं साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ. यह आलेख एक सामान्य जानकारी और साधारण जिज्ञासा का परिणाम है, जो किसी भी व्यक्ति के मन में जागृत हो सकती है. इसलिए इस आलेख को उसी आलोक में ग्रहण किया जाए.)
भाषा और राजभाषा की चर्चा से पूर्व एक पहेली. भारतवर्ष की एक ऐसी भाषा का नाम बताएं जो पाँच अक्षरों के मेल से बनी है और जिसे उलटा सीधा दोनों तरफ से एक समान पढ़ा जा सकता है. अगर आपका उत्तर है मलयालम, तो मैं कहूँगा, गलत जवाब! और मेरी बात यहीं से आरम्भ होती है. मलयालम शब्द वस्तुतः मलयाळम है, अतः इसे उलटा पढने पर, इस शब्द में और का स्थान परिवर्तित हो जाएगा, साथ ही उच्चारण भी. अब आप समझ गए होंगे कि आपका उत्तर क्यों और कैसे गलत है.
हिन्दी से राजभाषा के रूप में परिचय अपनी नौकरी के सिलसिले में हुआ. भारत सरकार के उपक्रम में कार्य करने के कारण हिन्दी दिवस, हिन्दी कार्यशाला आदि के माध्यम से राजभाषा के रूप में हिन्दी की उपयोगिता जानने को मिली. बताया गया कि देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली यह भाषा अत्यंत सरल है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शब्दों को जिस प्रकार उच्चारित किया जाता है, ठीक वैसे ही इन्हें लिपिबद्ध भी किया जाता है. अर्थात, जैसा उच्चारण, वैसा ही लेखन या हिज्जे. एक और विशेषता यह भी बताई गयी कि इस भाषा ने कई स्थानीय, प्रादेशिक, देशज व विदेशज शब्दों को सहज ही सामाहित कर लिया है, जिसके कारण वे शब्द हिन्दी का ही एक अभिन्न अंग प्रतीत होते हैं.
मेरे विचार से इसी उदारता के कारण हमारी वर्णमाला की सीमा का भी पता चला. कालान्तर में कई ऐसे स्वर, व्यंजन अथवा मात्राएं प्रयोग में लाई गईं, जो हिन्दी-वर्णमाला में नहीं थीं. कारण स्पष्ट है कि देवनागरी की वर्णमाला हिन्दी शब्दों के लिए थी, न कि हिन्दी इतर भाषाओं के लिए. न वे शब्द थे हिन्दी में, न उनको लिखने के लिए हमारे पास वर्णमाला में अक्षर थे; न वे ध्वनियाँ थीं, न उनको लिपिबद्ध करने के लिए हमारे पास मात्राएं थीं.
विज्ञापन की दुनिया ने इस आवश्यकता का सर्वाधिक बोध कराया, जब कई शब्द अंग्रेज़ी से हू-ब-हू लिप्यांतरित कर दिए गए. एक विज्ञापन की टैग लाइन है “Go get it!”. यदि इसे देवनागरी में लिखा जाए तो एक शब्द व्यवधान पैदा करता है. वह शब्द है “Get”. हिन्दी में Get और Gate दोनों को गेट ही लिखा जाता है. किन्तु पहले शब्द की ध्वनि, दूसरे स्वर की ध्वनि से भिन्न है अर्थात उच्चारण भिन्न. यही बात College शब्द के भी साथ दिखाए देती है. बिहार में जहां इसे कौलेज कहा जाता है, वहीं यू.पी. में कालेज. जबकि इस शब्द का उच्चारण दोनों के मध्य कहीं पर है.
दक्षिण भारतीय भाषाओं में यह समस्या नहीं है. वहाँ की वर्णमाला में स्वर , और तथा , और सम्मिलित हैं. जिस कारण वे इस प्रकार लिखते हैं:
Get: गॅट        Gate: गेट     College: कॉलेज
मराठी और दक्षिण भारतीय भाषाओं में एक अक्षर है जिसका उच्चारण, हिन्दी के से भिन्न है. किन्तु इसे भी हम के स्थानापन्न के रूप में प्रयोग करते हैं. जबकि किसी मराठी माणूस को पूछ कर देखें तो दलवी और काले बिलकुल अलग हैं दळवी और काळे से.
पिछले दिनों कनिमोड़ी के समाचारों में बने रहने के कारण, उनके नाम की कई हिज्जे देखने को मिली. दक्षिण भारतीय भाषाओं में एक अक्षर है इसका उच्चारण बड़ा कठिन है, क्योंकि इसमें जीभ को घुमाकर कंठ की ओर ले जाकर एक ध्वनि उत्पन्न की जाती है, जो हिन्दी के और ड़ के बीच की ध्वनि है. रोमन लिपि में इसे “Zha” लिखने का प्रचलन है और अंग्रेज़ी का अंधानुकरण करने के कारण हम कभी कनिमोझी, कभी कनिमोज़ी लिखते और बोलते हैं. पहले इस अक्षर को में नुक्ता लगाकर लिखा जाता था.
उर्दू और हिन्दी के संबंधों पर तो कई चर्चाएं और बहस हुईं है. ग़ालिब और मीर भी देवनागरी में लिप्यांतरित होकर उपलब्ध हैं. उर्दू के कई शब्दों को हमने देवनागरी के अक्षरों के नीचे बिंदी लगाकर अपना लिया है जैसे ग़ालिब, ज़ेवर, फ़रमाइश आदि.
आज जब लिप्यान्तरण, अनुवाद तथा साझेदारी, भाषा को समृद्ध कर रही है (अंग्रेज़ी शब्दकोष में हिन्दी भाषा से लिए गए शब्द Loot, Dacoity, Bandh, Gherao आदि) तो आवश्यकता है कि उनको ससम्मान स्वीकार किया जाए; इसके लिए चाहे क्यों न हिन्दी वर्णमाला, मात्राओं आदि में स्वल्प परिवर्तन करना पड़े. प्रांतीय भाषाओं को अंतर नहीं पड़ता, किन्तु राजभाषा और राष्ट्रभाषा होने के लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी के सुमन से अन्य भाषाओं की सुगंध साहित्य को सुवासित करे.

21 टिप्‍पणियां:

  1. सलिल जी आपके प्रारंभिक डिस्क्लेमर से आपके इस आलेख और आपका ..दोनों का वज़न बढ़ गया है...नए युग में उच्चारण के साथ हम थोडा लिबरल हो रहे हैं... अपनी भाषा के अनुरूप उसे ढाल रहे हैं..... हमारे रसायन और उर्वरक मंत्री अल्गिरी जी का नाम भी आपके लिए एक उदहारण था...बाद में सुना है कि उन्होंने नाम ही उत्तर भारत के हिसाब से बदल लिया है....बढ़िया आलेख... नियमित रूप से हमें आलोकित करते रहिये...

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  2. नए युग में हम उच्चारण अपनी भाषा के अनुरूप ढाल रहे हैं,बढ़िया आलेख. .....

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  3. कहते हैं कि समय सारे बंधनों को तोड देता है, यह बात भाषा पर भी लागू होती है।

    ---------
    कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
    ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

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  4. हम भी बचपन में एक पहेली बूझते थे कि पाँच अक्षर का मेरा नाम, उल्‍टा सीधा एक समान। लेकिन उसका उत्तर नवजीवन होता था। आपने अच्‍छी जानकारी दी, आभार।

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  5. @ आज जब लिप्यान्तरण, अनुवाद तथा साझेदारी, भाषा को समृद्ध कर रही है (अंग्रेज़ी शब्दकोष में हिन्दी भाषा से लिए गए शब्द Loot, Dacoity, Bandh, Gherao आदि) तो आवश्यकता है कि उनको ससम्मान स्वीकार किया जाए; इसके लिए चाहे क्यों न हिन्दी वर्णमाला, मात्राओं आदि में स्वल्प परिवर्तन करना पड़े. प्रांतीय भाषाओं को अंतर नहीं पड़ता, किन्तु राजभाषा और राष्ट्रभाषा होने के लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी के सुमन से अन्य भाषाओं की सुगंध साहित्य को सुवासित करे.
    बिल्कुल सहमत हूं आपकी बातों से, सलिल जी। तभी तो हम प्रयोजनमूलक हिन्दी की वकालत करते हैं।

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  6. बिलकुल सलिल भाई ..हम आपकी तक़रीर के कायल हुए ..
    कलमोझी को कलमुहीं क्यों न कहा जाय-यह उच्चारण में कितना सरल है !

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  7. परिवर्तन हो रहा है पर उसकी गति बहुत धीमी है क्योंकि भाषा इस देश में कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। जब-जब इसका मसला उठा है,इसने राजनीतिक रूप ले लिया है। देखें,कि रामदेवजी ने इस दिशा में जो छोटी पहल की है,उसका क्या नतीजा निकलता है।

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  8. सलिल जी ,

    बहुत अच्छा लेख ... लेकिन हिंदी में एक आगत स्वर जुड चुका है ..

    ऑ -- इसीलिए अब डॉक्टर , कॉलेज लिखा जाता है ..

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  9. मनोज जी के शब्दो मे कहूं तो प्रयोजनमूलक हिन्दी के बारे में, सलिल भाई का बहुत सार्थक और सारगर्भित लेख !

    अब तो बाबा रामदेव ने भी हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं को उनका हक दिलाने की बात देश के एजेंडे में जोड़ दी है। जिस दिन "चिकनी" रोटी और "मोटी" रोज़ी से भी हिन्दी को जोड़ा जायेगा उस दिन से इसकी सुंगन्ध को दसों दिशायों में महकाने से कोई नहीं रोक सकता।

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  10. बहुत ही अच्छा आलेख.
    किसी भी भाषा की उन्नति के लिए उसमें फ्लेक्सिविटी जरुरी है.और वक्त के साथ भाषा में परिवर्तन स्वाभाविक रूप से भी होते हैं.बस समस्या यह है कि भाषा के तथाकथित मठाधीश उसे मानने या अपनाने के लिए तैयार नहीं होते.

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  11. हिंदी और प्रांतीय शब्दों का विश्लेषण कर, हिंदी के प्रयोजन मूलक बननेकी दिशा में सराहनीय आलेख

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  12. बहुत सारगर्भित ,जानकारी से लबालब और विचारणीय बिन्दुओं को उभारता आलेख .आपका आभार ।
    कितने (इतने )शहरी हो गए लोगों के ज़ज्बात ,
    हिंदी भी करने लगी ,अंग्रेजी में बात .

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  13. सलील जी,नमस्कार।
    जिस बात की हम आज चर्चा कर रहे है उसे 'भारतीय संविधान" के निर्माताओं ने बहुत पहले ही सोच लिया था। हिंदी शब्द-संपदा की वृद्धि के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 का अवलोकन करने पर इस संबंध में विस्तृत जानकारी मिलेगी। पोस्ट अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  14. सलिल जी !!! हिंदी एक ऐसी भाषा है,जिसमें अन्य सभी भाषाओं को समाहित करने की शक्ति है। आज सबसे ज्यादा जरूरत है हिंदी को स्कूल,कॉलेज,विश्वविद्यालय स्तर तक अपनाने की और ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का मूल रूप से हिंदी में अध्ययन किए जाने की। हिंदी की वर्तनी में ळ आदि इतर भाषाओं की ध्वनियों को शामिल किए जाने के हम पक्षधर हैं, अंग्रेजी के बहुत से उच्चारण के लिए अर्ध-चँद्र बिंदु को अपनाया गया वहीं अन्य विदेशज शब्दों के लिए नुक्ता का इस्तेमाल किया गया। लेकिन अभी भी हिंदी की वर्तनी का मानकीकरण पूरी तरह से नहीं हो पाया है। अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं ने अपने मानक निश्चित किए हुए हैं; जैसे पंचमाक्षर नियम का अनुपालन नहीं होता या बहुत से शब्दों की वर्तनी के दो-दो रूप प्रचलित हैं जैसे- नई/नयी, गई/गयी, चाहिए/चाहिये, इसलिए/इसलिये, बैठिए/बैठिये, गए/गये,दुहरा/दोहरा । यहाँ शुद्ध रूप पहले विकल्प में दिए गए हैं।

    लेख राजभाषा की परिभाषा की दृष्टि से उत्तम है। राजभाषा में अन्य भाषाओं के शब्दों को लिप्यांतरित कर लिखने की छूट है। वह शब्द जो जन-मानस में रच-पच गया है,उसे उसी रूप में अपना चाहिए।

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  15. आपने डिस्क्लेमर लगा दिया है...पर ये तो किसी साहित्य के विद्यार्थी द्वारा लिखा आलेख ही लग रहा है....उम्दा पोस्ट

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  16. भाषा की विशुद्धता बनाए रखने वाले कुछ भी कर लें हिंदी बदलती आई है व आगे भी बदलती ही रहेगी यही इसकी कमी हो सकती है तो यही इसकी शक्ति भी है

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  17. राजभाषा हिन्दी की सेवा भावना से एक असाहित्यिक व्यक्ति द्वारा लिखा गया आलेख, सुधिजनों ने सराहा यह मेरे लिए आशीर्वाद है. आभारी हूँ मनोज जी का जो उन्होंने मुझे इस मंच पर स्थान प्रदान किया.. आशा है मैंने उस दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया होगा!
    आप सबों का पुनः आभार!!

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  18. @ सलिल जी
    हम आपके कृतज्ञ हैं जो आपने हामारा निवेदन माना और राजभाषा हिंदी ब्लॉग परिवार का हिस्सा बने।

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  19. आपकी जिज्ञासा इतनी अच्छी दिशा ले गयी आपको और इतना सार्थक सुलेख हमें पढने मिला ..!!
    आभार.

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  20. Aalekh bahut achha hai....likhna to aur chaah rahee thee,par likh nahee paa rahee hun.

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  21. jankari samanya hone ke babjood bahut rochak hai kyuonki aise bahut se shabd hain jinke uchharan ke liye ek school going bchhe se lekar badon ke man me bhi kai baar jigyasa hoti hai

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