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बुधवार, 8 जून 2011

उपन्यास साहित्य–आधुनिक युग

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३. मार्क्सवादी धारा :

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इस धारा के प्रवर्तक यशपाल जी हैं। मर्क्स ने समाज को प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त किया है – शोषक और शोषित। मर्क्स के विचारों से प्रभावित होकर आधुनिक साहित्यकार शोषित वर्ग की समस्याओं, कठिनाइयों, परिस्थितियों और अभावों का यथार्थ चित्रण करने लगे हैं। ऐसे साहित्य को समाजवादी यथार्थ के नाम से पुकारा जाता है। इस धारा से प्रभावित कलाकार जाति, धर्म तथा वर्ग की प्राचीन रूढ़ियों के प्रति विद्रोही होता है तथा सामाजिक संघर्षों से अधिक विषमता को देखने का प्रयास करता है।

हिन्दी-उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में यशपाल जी का बहुत बड़ा योगदान है। अपनी विशिष्ट विचारधारा और सर्जनात्मक शक्ति के कारण यशपाल ने स्वतंत्र पहचान बना ली। वैसे तो प्रेमचंद के परवर्ती लेखन पर मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव दिखाई पड़ने लगा था किन्तु मध्यम वर्ग को आधार बना कर साम्यवादी विचारधारा को हिन्दी साहित्य में व्यापक प्रतिष्ठा दिलाने वाले यशपाल जी प्रथम कलाकार हैं। ‘गोदान’ में प्रेमचंद जी ने आदर्शवाद से बहुत-कुछ मुक्त होकर जिस यथार्थवादी दृष्टिकोण को अपनाया था, उसकी परंपरा को यशपाल ने आगे बढाया। ‘अमिता’ और ‘दिव्या’ जैसे ऐतिहासिक उपन्यासों को छोड़कर उनके सभी उपन्यास समाजवादी यथार्थ का चित्र प्रस्तुत करते हैं।

दादा कॉमरेड (1941), देशद्रोही (1943), पार्टी कॉमरेड (1946), मनुष्य के रूप (1949), झूठा सच (1958 पहला भाग और 1960 दूसरा भाग), मेरी तेरी उसकी बात (1973) आदि उपन्यासों में यशपाल की इसी विचारधारा के दर्शन होते हैं। ‘दादा कामरेड’ में पूंजीवाद, गांधीवाद और आतंकवाद का विरोध करते हुए समाजवाद का समर्थन किया गया है। ‘देशद्रोही’ 1941 की क्रांति से सम्बद्ध उपन्यास है। ‘मेरी तेरी उसकी बात’ में 1942 की क्रांति की बात है।

यशपाल जी का जन्म पंजाब के फिरोजपुर नगर में हुआ था। इनकी प्रारम्बिक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी में हुई। बाद में ये लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़े। यही वे क्रांतिकारी भगत सिंह और सुखदेव के सम्पर्क में आए। इसके बाद सशक्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में उन्होंने देश-विदेश के साहित्य का खूब अध्ययन किया। देश स्वतंत्र होने के बाद स्वतंत्र रूप से साहित्य सृजन में लग गए।

यशपाल में कथा कहने की अद्भुत क्षमता थी। यशपाल का ‘झूठा सच’ स्वतंत्रता पूर्व और प्राप्ति के बाद के यथार्थ को चित्रित करने वाला उपन्यास है। इसका पहला खण्ड ‘वतन और देश’ और दूसरा खण्ड ‘देश का भविष्य’ आज़ादी के पूर्व और अज़ादी के बाद के भारत की संघर्ष कथा को बड़ी सजीवता से रूपायित करते हैं। इस उपन्यास ने सिद्ध कर दिया कि यशपाल बहुत विशाल फलक पर जीवन के विविध रूपों, आयामों, समस्याओं और जटिलताओं को अपने ढ़ंग से प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इसलिए इस उपन्यास को औपन्यासिक महाकाव्य की संज्ञा दी जा सकती है।

कहानी संग्रह :: ज्ञानदान, अभिशाप, तर्क का तूफ़ान, वो दुनिया, भस्मावृत, चिनगारी, फूलों का कुर्ता, धर्मयुग, उत्तराधिकारी, उत्तमी की मां।

यशपाल के अतिरिक्त इस धारा के प्रमुख उपन्यासकारों में रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का नाम उल्लेखनीय है। ‘चढ़ती धूप’ (1945), `नयी इमारत’ (1946), ‘उल्का’ (1947) और ‘मरुप्रदीप’ (1951) उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। यथार्थ के प्रति रुझान होने पर भी उन्होंने कथा-विन्यास में कल्पना की अतिशयता रखी है। इसलिए इनमें जीवन की द्वन्द्वात्मक चेतना अपनी पूरी शक्ति से नहीं उभर पायी है।

अमृतराय, भगवत शरण, उपेन्द्रनाथ अश्क, रागेय राघव (घरौंदे, विषाद मठ,), मन्मथनाथ गुप्त (शोले, माशाल) आदि का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है।

४. राजनीतिक धारा :

गुरुदत्त और यज्ञदत्त शर्मा को इस धारा का प्रवर्तक माना जा सकता हिअ। यद्यपि उनके उपन्यासों में अन्तर है तथापि इन दोनों उपन्यासकारों की पृष्ठभूमि राजनीतिक ही है। गुरुदत्त ने प्राचीन कड़ियों का आश्रय लेकर राजनीतिक उपन्यासों का प्रणयन किया है। बहती रेखा, गुंठन, मानव, विश्वासघात, वाममार्ग, प्रकृति, छाया, आदि उपन्यास उनकी इस धारा के सूचक हैं।

इस धारा से अनुप्राणित होकर यज्ञदत्त शर्मा के इंसान, महाराव का काम, इंसाफ़, दो पहलु, आदि उपन्यास हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. यह कड़ी भी उपन्यास साहित्य पर की जा रही परिचर्चा के हिसाब से महत्वपूर्ण है.. यशपाल के साहित्य परिचय से ज्ञान वृद्धि हुई!!

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  2. मार्क्सवादी धारा के रचनाकारों के बारे में सम्यक जानकारी के लिए 'राम विलाश शर्मा' द्वारा रचित 'आस्था और सौंदर्य' एवं 'परंपरा का मूल्यांकन' पर थोड़ी सी नजर डालने की कोशिश करें। "राम विलाश शर्मा" के बारे में य़दि थोड़ा सा भी उल्लेख हुआ होता तो मुझे इनके पूर्ववर्ती रचनाकारों के प्रति थोड़ी सी सहानुभूति अवश्य हुई होती । सुझाव है-उपर्युक्त दोनों पुस्तकों का गहन अध्ययन करने के पश्चात मार्क्सवादी कवियों के बारे में य़थोचित जानकारी प्रस्तुत करें। जितना भी पढा अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  3. महत्व पूर्ण जानकारी से भरी पोस्ट.
    आभार.

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  4. उपन्यास के इतिहास की विस्तृत जानकारी देती अच्छी पोस्ट

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  5. उपन्यास जगत की विभिन्न विचारधारा के सूत्र धारों को विश्लेषित करता हुआ आलेख

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  6. अधिकतर किताबें पढ़नी बाकी हैं।

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