अज्ञेय की कविता :
खिड़की एकाएक खुली
खिड़की एकाएक खुली,
बुझ गया दीप झोंके से,
हो गया बन्द वह ग्रन्थ
जिसे हम रात-रात
घोखते रहे;
पर खुला क्षितिज, पौ फटी,
प्रात निकला सूरज, जो सारे
अन्धकार को सोख गया।
धरती प्रकाश-आप्लावित !
हम मुक्त कण्ठ
मुक्त-हृदय
मुग्ध गा उठे
बिना मौन को भंग किये।
कौन हम ?
उसी सूर्य के दूत
अनवरत धावित।
शुक्रिया ,मनोज भाई .इस क्रम को ज़ारी रखिए.
जवाब देंहटाएंकौन हम उसी सूर्य के दूत ,
अनवरत ,
धावित .
सृष्टि चक्र में सृंग और गर्त, दिन और रात्रि के युiग्म तो आते ही रहते हैं. गिर के उठ जाना, अँधेरे से निकल कर प्रभात को हून्ध लेना और लाभ उठाना. यही तो मानव का पुनीत कर्म और धर्म है. अज्ञेय जी की लेखनी ने इसको ओजस्वी भाषा में बयां किया जिसे आपने हम सब तक पहुचाया. आभार इस प्रस्तुति के लिए.
जवाब देंहटाएंखिड़की एकाएक खुली,
जवाब देंहटाएंबुझ गया दीप झोंके से,
हो गया बन्द वह ग्रन्थ
जिसे हम रात-रात
घोखते रहे;
अस्तित्ववादी दर्शन से प्रभावित कवि अज्ञेय जीवन को रहस्यमयी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं .....इस रचना में भी उसी भाव की सृष्टि हुई है .....आपका आभार इस क्रम को जारी रखने के लिए ..!
अज्ञेय जी की सुंदर और गूढ़ रचना .के लिए आपका आभार और उनकी लेखन को नमन ...
जवाब देंहटाएंbadhiya , nirantarata bani rahni chahiye ..
जवाब देंहटाएंकौन हम ?
जवाब देंहटाएंउसी सूर्य के दूत
अनवरत धावित।
अज्ञेय जी की सुन्दर रचना पढवाने के लिए साधुवाद
कौन हम ?
जवाब देंहटाएंउसी सूर्य के दूत
अनवरत धावित।
aabhar ..is prayas ke liye.
वाह अज्ञेय जी की रचना.आभार यहाँ पढवाने का.मुझे कृपया इस शब्द का मतलब बता दें.
जवाब देंहटाएंघोखते =?
@ शिखा जी,
जवाब देंहटाएंघोखना से बना है। इसका अर्थ होता है = बार-बार याद करना, रटना।
हम लोग छुटपन में उत्तर घोख लेते थे।
अज्ञेय जी की इतनी गूढ कविता पढवाने के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंAgyey jee ki rachana ko padhana mahan anubhuti hai.aapko aabhar
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