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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

शहर का व्याकरण


धूमिल
शहर का व्याकरण
शहर का व्याकरण ठीक करने के लिए
एक हल्लागाड़ी
गश्त कर रही है
चुनाव के इश्तहार से निकलकर
एक आदमी सड़क पर आ गया है
आसमान में सन्नाटा छा गया है

शाम के सात बजे हैं
भाषा के चौथे पहर में
‘मैं प्रभु हूँ’ का चेहरा उतार कर
वह विदूषक
उस शो-केस के सामने खड़ा है
जिसमें जूते
पान की गिलौरियों की तरह सजे हैं
और एक रर्रा विदेशी पर्यटक का
पीछा कर रहा है

उसकी ज़ुबान पर अपने यहाँ गाये जानेवाले
जंगल-गीत का प्यारा-सा छन्द है
(आगे सड़क बन्द है)
लाल बत्ती जल रही है
फर्माइशी गीतों की परिचित आवाज़ में
सीमा पर तैनात जवानों का हौसला
बुलन्द है

आज हर चीज़ एक नाम है
लोगों की सुविधा के लिए
बनिया सच्चाई है
यह महँगाई है
जिसने बाज़ार को चकमा दिया है
लोग आ रहे हैं जा रहे हैं
और ख़ुश हैं कि भीड़ सुख पा रहे हैं

मगर सुनो ! तुमने अपने कुत्ते को
दिन में क्यों खोल दिया है
इसके पहले कि वह पकड़ लिया जाय
और चीड़-फाड़ की
किसी धारणा को साबित करते हुए
अस्पताल में हलाल हो
अगर तुम उसे नगरपालिका की नज़र से
बचाना चाहते हो
उसके गले में एक पट्टा डाल दो

सचमुच मज़बूरी है
मगर ज़िन्दा रहने के लिए
पालतू होना ज़रूरी है।
***

10 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच मज़बूरी है
    मगर ज़िन्दा रहने के लिए
    पालतू होना ज़रूरी है।...
    धूमिल जी रचना ....यथार्थवादी रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. सुदामा प्रसाद धमिल की कविता 'शहर का व्याकरण पढा।' इसे पढवाने के लिए धन्यवाद । प्रशासन पर पैनी नजर ऱखते हुए उन्होंने तदयुगीन सामाजिक परिस्थतियों का यथार्थपरक चित्रण प्रस्तुत किया है।

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  3. सच्चाई को कहती अच्छी रचना प्रस्तुत की है ..आभार

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  4. सचमुच मज़बूरी है
    मगर ज़िन्दा रहने के लिए
    पालतू होना ज़रूरी है
    यथार्थपरक अभिव्यक्ति। धूमिल जी को पढवाने के लिये आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. यह महँगाई है
    जिसने बाज़ार को चकमा दिया है
    लोग आ रहे हैं – जा रहे हैं
    और ख़ुश हैं कि भीड़ सुख पा रहे हैं!!

    सच्चाई आज भी कमोबेश ऐसी ही है . धूमिल इसीलिए जब भी पढ़िए विचारों से धूमिल नही होते

    जवाब देंहटाएं
  6. सच्चाई को सामने ला कर खड़ा कर दिया। तमाचा लगा और नींद खुल गई।

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