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सोमवार, 18 जुलाई 2011

चाँद और कवि / रामधारी सिंह दिनकर




रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।


जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।



आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का;
आज उठता और कल फिर फूट जाता है;
किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।



मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से, चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?



मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।



मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।



स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"





6 टिप्‍पणियां:

  1. मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
    कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
    वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
    स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

    युग-चारण,स्वप्म-द्रष्टा एवं उर्जस्वित कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद।आपका चयन अच्छा है।

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  2. OH मेरी " The most fevt "कविता.
    इस कविता का एक एक शब्द उर्जा भरता हुआ लगता है ..
    बहुत बहुत शुक्रिया इसे यहाँ पढवाने का.

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  3. दिनकर जी रचना बचपन से लेकर अब तक मुझे बहुत प्रिय रही है . माताजी जरुर सुनती है ये कविता . आभार

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  4. वैसे तो दिनकर जी की सभी कविताएं ला जवाब हैं, पर आपने बहुत ही अच्छा चयन किया है। राजभाषा पर चुनिंदा कविताओं का डलने का यह सिलसिला बहुत अच्छा प्रयास है।

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  5. वैसे तो दिनकर जी की सभी कविताएं ला जवाब हैं, पर आपने बहुत ही अच्छा चयन किया है। राजभाषा पर चुनिंदा कविताओं का डलने का यह सिलसिला बहुत अच्छा प्रयास है।

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