धूमिल की कविता-3
धूमिल की प्रसिद्ध लंबी कविता पटकथा का एक अंश
मुझसे कहा गया कि संसद
देश की धड़कन को
प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
देश की धड़कन को
प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है
जनता को
जनता के विचारों का
नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
अपने यहां संसद -
तेली की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
और यदि यह सच नहीं है
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?
श्री मनोज कुमार जी,
जवाब देंहटाएंसंस्कृत का एक वाक्य है-'सत्यम प्रियम न ब्रूयात।' सच कहने के लिए आत्म-विश्वास एव मन में दृढ संकल्प की जरूरत पड़ती है । धूमिल जी ने अपनी हर कविताओं चाहे वह छोटी हों या बड़ी सत्य का ही सहारा लिया है । सत्य बात को कहने के लिए कुछ लोगों ने इसे स्वीकार किया है लेकिन कुछ लोग सामाजिक नैतिकताओं की दुहाई देकर उनका मान-मर्दन भी किया है लेकिन उन पर इस तरह की कटाक्षों का प्रभाव नही पड़ा। नैतिकता पर उनकी कुछ पक्तियां नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ-
'यह एक खुला हुआ सच है कि आदमी-
दायें हाथ की नैतिकता से
इस कदर मजबूर होता है
कि तमाम उम्र गुजर जाती है मगर गाँड़
सिर्फ, बाँया हाथ धोता है।'
पोस्ट अच्छा लगा। धन्यवाद।
आज की सच्चाई को कहती अनुपम रचना ..
जवाब देंहटाएंयही सच है कि 'सच का बुरा हाल है' पर क्यों? यह एक यक्ष-प्रश्न है
जवाब देंहटाएंबेहतर...समयानुकूल...
जवाब देंहटाएंसमयानुसार प्रश्न करती सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें।
संवेदना से भरी मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!