सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता-3
ठुकरा दो या प्यार करो
देव ! तुम्हारे कई उपासक
कई ढंग से आते हैं ।
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे
कई रंग की लाते हैं ॥
धूमधाम से, साजबाज से
वे मन्दिर में आते हैं ।
मुक्ता-मणि बहुमूल्य वस्तुएँ
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ॥
मैं ही हूँ ग़रीबिनी ऐसी
जो कुछ साथ नहीं लायी ।
फिर भी साहस कर मन्दिर में
पूजा करने को आयी ॥
धूप- दीप - नैवेद्य नहीं है
झाँकी का श्रृंगार नहीं ।
हाय ! गले में पहनाने को
फूलों का भी हार नहीं ।।
कैसे करूँ कीर्तन,
मेरे स्वर में माधुर्य नहीं ।
मन का भाव प्रकट करने को
वाणी में चातुर्य नहीं ॥
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा
खाली हाथ चली आयी ।
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ ! चली आयी॥
पूजा और पुजापा प्रभुवर !
इसी पुजारिन को समझो ।
दान -दक्षिणा और निछावर
इसी भिखारिन को समझो॥
मैं उन्मत्त प्रेम की लोभी
हृदय दिखाने आयी हूँ ।
जो कुछ है, वह यही पास है,
इसे चढ़ाने आयी हूँ ।।
चरणों पर अर्पित है, इसको
चाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
ठुकरा दो या प्यार करो ।।
समर्पण भाव से आप्लावित सुभद्रा कुमारी जी की इस कविता को पढ़वाने का आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंसुभद्रा कुमारी जी की कविता पढवाने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
चरणों पर अर्पित है, इसको
जवाब देंहटाएंचाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
ठुकरा दो या प्यार करो ।।
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रस्तुत कविता " ठुकरा दो या प्यार करो " में उन्होंने इस चिर सत्य का रूप निर्धारित किया है कि पूजा तथा अर्चन के निमित्त किसी वस्तु की जरूरत नही है। मनुष्य के भाव यदि अमल और धवल हैं तो भगवान भक्त को भी उसी दृष्टि से देखता है । अपनी भावों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर कवयित्री ने इस कविता में यह संदेश देने का प्रयस किया है कि भगवान भाव के भूखे होते हैं,उन्हे प्रसन्न करने के लिए भक्तों के निर्मल मन का प्रेम ही पर्याप्त है। धन्यवाद।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने बताया है कि हमे कभि
हटाएंभि दिखावे के लिए 🙏 पूजा नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा है कि हमें सच्ची पूजा करके कर्म की
ओर अग्रसर करना चाहिए।
चरणों पर अर्पित है, इसको
जवाब देंहटाएंचाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
ठुकरा दो या प्यार करो ।।
एक गहन भाव से भरी इस रचना को हम तक पहुँचाने के लिए आपका आभार
Hi
हटाएंपूर्ण समर्पण भाव को दर्शाती बहुत अच्छी रचना ...पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंसर्वस्व समर्पण के भाव के सिवा उसे और कुछ चाहिये भी नही और यही तो पूजा की उत्तम रीती है। पढवाने के लिये हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
चरणों पर अर्पित है, इसको
जवाब देंहटाएंचाहो तो स्वीकार करो ।
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
ठुकरा दो या प्यार करो ।।
इस बेहतरीन रचना को पढ़वाने के लिये आभार ।
जब मनुष्य स्वयं को इश्वर में समर्पित कर देता है तो उसका अहम समाप्त हो जाता है
जवाब देंहटाएंbehtreen rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव लिए आपकी कविता मन कोछू गयी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबचपन में छठी क्लास में पढ़ी थी। अध्यापक बहुत ही सुर में बच्चों से गवाया करते थे। आपने याद ताजा कर दी। सुभद्रा जी और कविताएं काभी जोश जगाने वाली हैं, जबकि इसमें श्रद्धा और समर्पण का जो भाव है, वह अन्यत्र ढूंढना आसान नहीं। आपका भी आभार जो यह कविता ब्लाग पर साझा की।
जवाब देंहटाएंlove this .......... very beautifu
जवाब देंहटाएंCHHOTI classes me is geet ko jor jor se padh kar yaad kiya karte the...vo sab yaad aa gaya ise padh kar.
जवाब देंहटाएंshukriya ham tak is padhwane ke liye.
वाह मज़ा आ गया कितनी खूबसूरती से भगवान को मना लिया और अपना भी बना लिया |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना |
वाह! अति सुंदर
जवाब देंहटाएंठुकरा दो या प्यार करो कविता का अर्थ
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