जयशंकर प्रसाद की कविता - 1
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो ॥
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो
स्वत्नत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना...
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुरुआत सुन्दर रचना से ... एक सार्थक आह्वान करती हुई प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें और बधाई
यह तो हमने सालों गाया है। विद्यालय में प्रार्थना नहीं, यही अभियान गीत हर दिन होना ही था। प्रसाद जैसे आदमी लिखें, तो तत्सम शब्द तो होंगे ही।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
जयशंकर प्रसाद जी की अमर रचना पढ़वाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna.
जवाब देंहटाएंswatantrta diwas ki hardik shubhkaamnayen.
khubsurat rachna... jai hind....
जवाब देंहटाएंBahut sundar kavita...
जवाब देंहटाएंइसका सार क्या है।
जवाब देंहटाएंवाह
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