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शनिवार, 3 सितंबर 2011

रामदास


रघुवीर सहाय की कविताएं –3

रामदास

चौड़ी सड़क गली पतली थी
दिन का समय घनी बदली थी
रामदास उस दिन उदास था
अंत समय आ गया पास था
उसे बता, यह दिया गया था, उसकी हत्या होगी।

धीरे धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे, सभी निहत्थे
सभी जानते थे यह, उस दिन उसकी हत्या होगी।

खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर
दोनों हाथ पेट पर रख कर
सधे कदम रख कर के आये
लोग सिमट कर आँख गड़ाये
लगे देखने उसको, जिसकी तय था हत्या होगी।

निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौल कर चाकू मारा
छूटा लहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी?

भीड़ ठेल कर लौट आया वह
मरा हुआ है रामदास यह
'
देखो-देखो' बार बार कह
लोग निडर उस जगह खड़े रह
लगे बुलाने उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी।

13 टिप्‍पणियां:

  1. रामदास की ह्त्या नहीं होती.. बस एक की जगह दूसरा खडा हो जाता है!!
    बहुत ही भावप्रवण कविता!!

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  2. गहन भाव दर्शाती अच्छी रचना का चयन किया है ..आभार

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  3. रघुवीर सहाय की कविताएं सरल और वोधगम्य हैं ।
    इनकी कविताओं में नई कविता के कवियों की तरह विंबों, प्रतीकों एवं मिथकों का प्रयोग नही के बराबर है । इस कविता में समाज के उन लोगों के बारे में कहा गया है जो विडंबना के रूप में अपना जीवन जी रहे हैं । आज लोगों की संवेदनशीलता प्राय:शून्यप्राय स्थिति में आ गयी है। किसी की मृत्यु महज एक खबर बन कर ही रह जाती है। समाज की वास्तविकता को उजागर करती 'सहाय' जी की कविता 'रामदास' को पोस्ट करने के लिए धन्यवाद ।

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  4. बहुत खूबसूरती से रामदास के जीवन को चित्रित करती सुन्दर रचना |

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  5. रामदास की ह्त्या को दर्शाती...एक सीधी सच्ची रचना..शब्दों से चित्र बनाती प्रस्तुति

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  6. ये कविता कभी ज़ेहन से नहीं उतरती, ख़ासतौर पर ये वाक्य....उसे ये बता दिया गया था उसकी हत्या होगी...दिल-दिमाग़ पर अटैक करती है ये कविता।

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  7. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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