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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

ले चल मुझे भुलावा देकर

जयशंकर प्रसादजयशंकर प्रसाद की कविताएं-3

 

ले चल मुझे भुलावा देकर

 

ले चल मुझे भुलावा देकर,

मेरे नाविक! धीरे-धीरे!

 

जिस निर्जन में सागर लहरी

अम्बर के कानों में गहरी --

निश्छल प्रेम-कथा कहती हो,

तज कोलाहल की अवनी रे!

 

जहां सांझ-सी जीवन छाया

ढीले अपनी  कोमल काया,

नील नयन से ढलकाती हो,

ताराओं की  पांति घनी रे!

 

जिस गम्भीर मधुर छाया में --

विश्व चित्र-पट चल माया में --

विभुता विभु-सी पड़े दिखाई

दुःख-सुख वाली सत्य बनी रे!

 

श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से --

जहां  सृजन  करते मेला से --

अमर जागरण-उषा नयन से --

बिखराती  हो ज्योति  घनी रे!

12 टिप्‍पणियां:

  1. प्रसाद जी की सुन्दर रचना पढवाने के लिये आभार्।

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  2. छोटी से अभिव्यक्ति का कितना व्यापक भाव !

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  3. जयशंकर प्रसाद जी की कविता "ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धारे -धारे " एक ऐसे सत्य को उदभाषित करती है जिसकी दार्शनिक भाव-बोध की चाह हर संवेदनशील हृदय की चाह होती है ।. यह बात जिगर है कि हम उन कल्पनाओं के सहारे जी न सकें किंतु सत्य से विमुख होकर एक अलौकिक संसार में तो जी सकते हैं । कवि अपनी कल्पना लोक में जीता है एवं वह किसी अन्य की दुनिया से सरोकार नही ऱखता । प्रसाद जी की दुनिया ही अलग थी एवं उनकी दुनिया में जीना एक बहुत बड़ी बात है । .काश! !.आज के साहित्य प्रेमियों को वह कल्पना -लोक मिल पाता । उनकी इस रचना को प्रस्तुत करने को लिए धन्यवाद ।

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  4. इस सुन्दर रचना से पुनः परिचित करवाने का आभार

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  5. बहुत दिन बाद प्रसाद जी की यह सुंदर रचना पढ़ाने का आभार।

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  6. प्रसाद जी की कविता पढवाने के लिये धन्यवाद।

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  7. जिस निर्जन में सागर लहरी

    अम्बर के कानों में गहरी --

    निश्छल प्रेम-कथा कहती हो,

    तज कोलाहल की अवनी रे!
    ......
    अनुपम है ये रचना

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  8. यह रचना किस कृति में संग्रहित है ?

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