(1398-1518)
कबीरदास की रचनाएं
(1)
झीनी झीनी बीनी चदरिया॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी कौन तार से बीनी चदरिया।
इंगला पिंगला ताना भरनी सुषमन तार से बीनी चदरिया॥
आठ कंवल दल चरखा डोले, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया।
साईं को सियत मास दस लागे ठोक ठोक के बीनी चदरिया॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़े, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया।
दास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया॥
***
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़े, ओढ़ के मैली कीनी चदरिया।
जवाब देंहटाएंदास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया॥
कबीरदास निर्गुणिया संत परंपरा के कवि होने के कारण धार्मिक पाखंडों एवं तदयुगीन समाज में व्याप्त आडंबरों के विरूद्ध अपनी वाणी के माध्यम से समाज में अपना संदेश देते रहे । उपर्युक्त दोहों में उन्होमे मन को मलीन न करने का संदेश दिया है । उनकी मान्यता रही होगी कि य़ह शरीर पवित्र है एवं इस पर किसी भी प्रकार का दाग नही लगना .चाहिए । जीवन के आध्यत्मिक स्तर से उपर की ओर उठते हुए उन्होंने गुरू की वाणी और संदेश को अपने जीवन में डालने पर ही विशेष बल दिया है । इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा है-
आछे दिन पाछे गए गुरू से किया न हेत,
अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत ।।
पोस्ट अच्छा लगा । धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर प्रेरणादायक रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंकवीर दास जी को एक समाज सुधारक भी कहते हैं इस लिए सारगर्भित रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसत्यम शिवम् सुंदरम
जवाब देंहटाएंएक बार कबीर से मिलने क़ोई उनके घर आया
जवाब देंहटाएंकबीर नहीं थे
कहां मिलेगे
एक संत ने कहा कबीर , किसी की मृत्यु के बाद , शमशान घाट गए हैं वहाँ चले जाओ
मिलने वाले ने पूछा मै उन्हे पह्चानुगा कैसे
संत ने कहा कबीर के सिर पर एक लौ जलती दिखेगी
मिलने आने वाला शमशान घाट गया और लौट आया
संत ने पूछा मिल आये
उसने कहा नहीं पहचान पाया , वहाँ सबके सिर पर लौ जल रही थी
संत ने कहा दुबारा जाओ और अबकी बार शमशान घाट के बाहर खड़े रहना और इंतज़ार करना
मिलने वाला दुबारा गया शमशान घाट के दरवाजे पर खडा होगया
लोग बाहर आने लगे
वो अंत में कबीर को पहचान गया
कैसे
कबीर के सिर की लौ शमशान घाट से बाहर आने के बाद भी जलती हुई दिख रही थी और बाकी सब की शमशान के दरवाजे तक ही जलती थी
सन्देश परक रचना पढवाने का आभार
जवाब देंहटाएंन मन वैसा रहा,न सद्कर्मरत रहे। प्रभु से बस लेना ही हुआ। जब होगा मिलन,आत्मग्लानि के सिवा कुछ बचेगा नहीं अपने पास।
जवाब देंहटाएंसंत कबीर जैसे महान समाज सुधारकों की अनमोल वाणी से ही समाज को जीने की सही राह मिल सकती है. सार्थक प्रस्तुतिकरण के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कविता पढवाने का आभार...
जवाब देंहटाएंआह सुन्दर.कबीर जैसे भाव और कहाँ.
जवाब देंहटाएंes padya main kabeer ka dambh bol raha hai
जवाब देंहटाएंBahut badhiya rachana se ru-b-ru karaya aapne!
जवाब देंहटाएंदास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया॥ ऐसा तो सिर्फ़ कबीर ही कर सकते थे हम जैसे इंसान तो मैला कर देते हैं …………
जवाब देंहटाएंsahi kah rahi hai aap..
हटाएंकबीर जी का यह पद पढ़वाने के लिए आपका आभार...काश हर कोई अपने जीवन की चादर को कबीर की तरह रख सके और उसे उसी रूप में उसे लौटा सके...उसने हमें बहुत साफ-सुथरी जिंदगी दी है,लेकिन हम उसे काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद और मत्सर(ईर्ष्या) से मैला कर देते हैं। सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकबीर को दुनिया का सबसे क्रांतिकारी कवि कहा जाता है…रचना जी वाली कथा ठीक लगी…अनूप जलोटा ने गाया है इसे…कइयों ने गाया होगा…
जवाब देंहटाएं