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मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

गहन है यह


निराला की कविता-5


गहन है यह

गहन है यह अंधकारा
स्वार्थ के अवगुंठनों से 
हुआ है लुंठन हमारा।

खड़ी है दीवार जड़ की घेर कर
बोलते हैं लोग ज्यों मुँह फेर कर
इस गहन में नहीं दिनकर 
नहीं शशधर नहीं तारा।

कल्पना का ही अपार समुद्र यह
गरजता है घेर कर तनु रुद्र यह
कुछ नहीं आता समझ में 
कहाँ है श्यामल किनारा।

प्रिय मुझे यह चेतना दो देह की
याद जिससे रहे वंचित गेह की
खोजता फिरता न पाता हुआ 
मेरा हृदय हारा।

5 टिप्‍पणियां:

  1. कहाँ है श्यामल किनारा।

    इस प्रस्तुति के लिए आभार!

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  2. शशघर या शशधर?

    खड़ी है दीवार जड़ की घेर कर
    बोलते हैं लोग ज्यों मुँह फेर कर
    इस गहन में नहीं दिनकर

    ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ...कृपया कोई तनु का अर्थ बता दे.

    जवाब देंहटाएं
  4. तनु = शरीर , देह , काया ,
    यदि इस शब्द को विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाये तो अर्थ होंगे ..सूक्ष्म , पतला , दुर्बल

    जवाब देंहटाएं

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