चप्पल की मरम्मत
प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार
बापू साबरमती आश्रम में थे। मीरा बहन ने देखा कि उनकी एक चप्पल टूटी हुई है। वे उसे लेकर आश्रम के फाटक के बाहर बैठने वाले मोची के पास ले गईं। चप्पल मोची को मरम्मत के लिए देकर जब वे लौटीं, तो उन्होंने देखा कि बापू चप्पल को ढूंढ़ रहे हैं। बापू ने मीरा बहन से पूछा, “तुमने क्या मेरी चप्पल कहीं देखा है?”
मीरा बहन ने बताया, “वह मोची के पास है।”
बापू ने व्यंग्य से पूछा, “क्या तुमने मोची के पैसे तय किए हैं या यह उम्मीद कर रही हो कि महात्मा के नाम पर वह मुफ़्त में काम कर देगा?”
मीरा बहन ने बताया, “वह आठ आने लेगा।”
बापू गुस्सा हो गए, “न तो तुम और न तो मैं ही एक पैसा कमाता हूं। फिर यह ख़र्च कौन उठाएगा? चप्पल वापस ले आओ।”
मीरा बहन भाग कर मोची के पास गईं। उसे सारी बातें बताई। चप्पल वापस मांगा। जब मोची को मालूम हुआ कि वह चप्पल बापू की है, तो वह बहुत ख़ुश हुआ। कहने लगा, “अरे! यह चप्पल बापू की है! मेरे लिए यह ख़ुशी की बात है। मैं इस चप्पल को बिना पैसे लिए बना दूंगा।”
“नहीं-नहीं, यह चप्पल वापस कर दो, बापू ने कहा है।”
“नहीं, मैं इसे न दूंगा। इसी बहाने मुझे महात्मा जी की सेवा का एक अवसर मिल रहा है। आप वह मुझसे मत छीनिए।”
मोची चप्पल वापस करने को राज़ी नहीं था। हार कर मीरा बहन ने कहा, “इसकी आज्ञा के लिए तुम्हें अभी मेरे साथ बापू के पास चलना होगा।”
मीरा बहन उस मोची को लेकर बापू के पास आईं। बापू कुछ अंगरेज़ आगंतुक के साथ बैठे थे। मीरा बहन ने बापू को सारी बात बताई। बापू का मूड बदल गया। उन्होंने मीरा बहन की अनदेखी करते हुए मोची से हंस कर कहा, “अगर तुम सचमुच मेरी सेवा करना चहते हो, तो क्यों नहीं मेरे शिक्षक बन जाते और मुझे जूते-चप्पल सीने का काम सिखा देते?”
मोची बेहद ख़ुश हुआ। बापू ने उसे अपनी जगह पर बैठाया और वहीं उसी समय चप्पल की मरम्मत करना सीखने लगे और मेहमानों से बातें भी करते रहे।
***
बापू एक दिन में ही महान नही बने थे । उनकी यश एवं कीर्ति की पृषठभूमि में उनके सादगी और कर्तव्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हम सबको भी हर दिन काम आने वाले कार्यों को सीखने की कोशिश करनी चाहिए ताकि भविष्य में हम सब स्वावलंबी बन सकें । उनके बारे में यह प्रेरक प्रसंग हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रेरक कथा।
जवाब देंहटाएंअच्छी कथा |
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसं आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
प्रेरक प्रसंग...
जवाब देंहटाएंसही है..बापू एक दिन में महान नहीं बने थे।..अद्भुत प्रसंग।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक और अनुकरणीय प्रसंग था ....
जवाब देंहटाएंआपका आशीर्वाद मिला आभार
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंग!
जवाब देंहटाएंCharcha munch pr Gandhi ji ka yah prasng bahut hi prernatmk laga .....shiksha to jeevan pryant chalane wali prkriya hai ....abhar Monoj ji .....mere naye post pr apki prteeksha hai
जवाब देंहटाएंमन को द्रवित करता प्रसंग .ऐसे ही महान नहीं थे बापू कर्म से महान थे .कर्म योगी थे .हम भी कुछ सीखें इस कथांश से .
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंbahut acchha prasang pesh kiya. aabhar ham tak pahunchane k liye.
जवाब देंहटाएंah !!!! kaha gaye ye log~~~~~~!!!!
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