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सोमवार, 9 जनवरी 2012

कुरुक्षेत्र ... चतुर्थ सर्ग ( भाग -- १ )




ब्रह्मचर्य के व्रती  धर्म के 
             महास्तंभ , बल के आगार 
परम विरागी पुरुष जिन्हें 
            पाकर भी पा न सका संसार |

किया विसर्जित मुकुट धर्म हित 
                 और स्नेह के कारण प्राण 
पुरुष विक्रमी कौन दूसरा 
               हुआ जगत में भीष्म सामान ?

शहरों की नोक पर लेटे हुए ,गजराज जैसे 
थके , टूटे गरुड़ से ,स्रस्त पन्न्गराज जैसे 
मरण पर वीर - जीवन का अगम बल भार डाले 
दबाये काल को , सायास  संज्ञा को संभाले ,

पितामह कह रहे कौन्तेय के रण की कथा हैं 
विचारों की लड़ी में गूंथते जाते व्यथा हैं 
ह्रदय सागर मथित होकर कभी जब डोलता है 
छिपी निज वेदना गंभीर नर भी बोलता है |

" चुराता न्याय जो , रण को बुलाता भी वही है , 
युधिष्ठिर! स्वत्व की अन्वेषणा पातक नहीं है |
नरक उनके लिए , जो पाप को स्वीकारते हैं ;
न उनके हेतु जो तन में उसे ललकारते हैं |

सहज ही चाहता कोई नहीं लड़ना किसी से ;
किसीको मारना अथवा स्वयं मारना किसी से ;
नहीं दु:शांति को भी तोडना नर चाहता है ;
जहाँ तक हो सके , निज शांति प्रेम निबाहता है |

मगर , यह शांतिप्रियता रोकती केवल मनुज को 
नहीं वो रोक पाती है दुराचारी दनुज को |
दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है ?
विनय की नीति कायर की सदा वह मानता है |

समय ज्यों बीतता , त्यों त्यों अवस्था घोर होती है 
अन्य की श्रंखला बढ़ कर कराल कठोर होती है |
किसी दिन तब , महाविस्फोट कोई फूटता है 
मनुज ले जान हाथों में दनुज पर टूटता है |

न समझो  किन्तु , इस विध्वंस के होते प्रणेता 
समर के अग्रणी दो ही , पराजित और जेता |
नहीं जलता निखिल  संसार दो की आग से है ,
अवस्थित ज्यों न जग दो - चार ही के भाग से है |

युधिष्ठिर! क्या हुताशन - शैल सहसा फूटता है ? 
कभी क्या वज्र निर्धन व्योम से भी छूटता है ?
अनलगिरी फूटता , जब ताप होता है अवनी में ,
कडकती दामिनी विकराल धूमाकुल गगन में |

महाभारत नहीं था द्वन्द्व केवल दो घरों का ,
अनल का पुंज था इसमें भरा अगणित नरों का |
न केवल यह कुफल कुरुवंश के संघर्ष का था ,
विकत विस्फोट यह सम्पूर्ण भारतवर्ष का था |

क्रमश:

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सार्थक और विचारात्मक पोस्ट है आपकी।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  2. महाभारत नहीं था द्वन्द्व केवल दो घरों का ,
    अनल का पुंज था इसमें भरा अगणित नरों का |
    न केवल यह कुफल कुरुवंश के संघर्ष का था ,
    विकत विस्फोट यह सम्पूर्ण भारतवर्ष का था |
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. ऐसे ही एक विस्‍फोट की तैयारी फिर भारत कर रहा है। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. दिनकर जी को स्मरण करने का यह प्रयोग बहुत ही सार्थक है!!

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  5. प्रेरक प्रसंग ! आभार इसे पढ़वाने के लिये, एक दो जगह वर्तनी की अशुद्धियाँ खटकती हैं.

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  6. कुरुक्षेत्र का यथार्थ वर्णन आपने किया है संगीता जी!अच्छी अनुभूति!

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  7. Itna badhiya likhtee hain aap,ki,mai to nishabd ho jatee hun!

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  8. Kya aapka tel.no. mujhe mil sakta hai? Aapse baat karne ka bada man hai.

    जवाब देंहटाएं
  9. मगर , यह शांतिप्रियता रोकती केवल मनुज को
    नहीं वो रोक पाती है दुराचारी दनुज को |
    दनुज क्या शिष्ट मानव को कभी पहचानता है ?
    विनय की नीति कायर की सदा वह मानता है |
    कितना गहन.

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  10. बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति ..

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