युगों से विश्व में विष - वायु बहती आ रही थी ,
धरित्री मौन हो दावाग्नि सहती आ रही थी ;
परस्पर वैर - शोधन के लिए तैयार थे सब ,
समर का खोजते कोई बड़ा आधार थे सब |
कहीं था जल रहा कोई किसी की शूरता से |
कहीं था क्षोभ में कोई किसी की क्रूरता से |
कहीं उत्कर्ष ही नृप का नृपों को सालता था
कहीं प्रतिशोध का कोई भुजंगम पालता था |
निभाना पर्थ - वध का चाहता राधेय था प्रण|
द्रुपद था चाहता गुरु द्रोण से निज वैर - शोधन |
शकुनी को चाह थी , कैसे चुकाए ऋण पिता का ,
मिला दे धूल में किस भांति कुरु-कुल की पताका |
सुयोधन पर न उसका प्रेम था, वह घोर छल था ,
हितू बन कर उसे रखना ज्वलित केवल अनल था
जहाँ भी आग थी जैसी , सुलगती जा रही थी ,
समर में फूट पड़ने के लिए अकुला रही थी |
सुधारों से स्वयं भगवान के जो - जो चिढे थे
नृपति वे क्रुद्ध होकर एक दल में जा मिले थे |
नहीं शिशुपाल के वध से मिटा था मान उनका ,
दुबक कर था रहा धुन्धुंआँ द्विगुण अभिमान उनका|
परस्पर की कलह से , वैर से , हो कर विभाजित
कभी से दो दलों में हो रहे थे लोग सज्जित |
खड़े थे वे ह्रदय में प्रज्ज्वलित अंगार ले कर ,
धनुज्याँ को चढा कर , म्यान में तलवार ले कर |
था रह गया हलाहल का यदि
कोई रूप अधूरा ,
किया युधिष्ठिर , उसे तुम्हारे
राजसूय ने पूरा |
इच्छा नर की और , और फल
देती उसे नियति है |
फलता विष पीयूष - वृक्ष में ,
अकथ प्रकृति की गति है |
तुम्हें बना सम्राट देश का ,
राजसूय के द्वारा ,
केशव ने था ऐक्य- सृजन का
उचित उपाय विचारा |
सो , परिणाम और कुछ निकला ,
भडकी आग भुवन में |
द्वेष अंकुरित हुआ पराजित
राजाओं के मन में |
समझ न पाए वे केशव के
सदुद्देश्य निश्छल को |
देखा मात्र उन्होंने बढ़ाते
इन्द्रप्रस्थ के बल को |
पूजनीय को पूज्य मानने
में जो बाधा - क्रम है ,
वही मनुज का अहंकार है ,
वही मनुज का भ्रम है |
क्रमश:
कुरुक्षेत्र को पुनः यहाँ पढना सुखद लग रहा है ...!
जवाब देंहटाएंपूजनीय को पूज्य मानने
जवाब देंहटाएंमें जो बाधा - क्रम है ,
वही मनुज का अहंकार है ,
वही मनुज का भ्रम है
आपका यह पोस्ट कुछ सीखने के लिए प्रेरित करता है। मेरे नए पोस्ट " हो जाते हैं क्यों आद्र नयन" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ये जो मन है हमारा,सौ परेशानियों की जड़ है। इसकी इच्छित एकाग्रता हासिल होने के बाद भी, साधना के गुह्यतर स्तरों में, पुनः उसे व्यष्टि-भाव में प्राप्त करने का कार्य शुरू होता है.
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना|
जवाब देंहटाएंपूजनीय को पूज्य मानने
जवाब देंहटाएंमें जो बाधा - क्रम है ,
वही मनुज का अहंकार है ,
वही मनुज का भ्रम है |
कितना सशक्त ....
Guru pujniye hai. Unhe apmanit nhi karna chahiye. Ydi apmanit karte hai to vhi aapka shankar aur bharam hai.
हटाएंहर अंक लाजवाब!! अद्भुत् कृति।
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर कहां जा रहे हैं हम... ब्लॉग बुलेटिन...
जवाब देंहटाएंरोचक व शानदार्।
जवाब देंहटाएंदिनकर रथ पर आप ... बस पढ़ रही हूँ
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना है ये राष्ट्रकवि की
जवाब देंहटाएंprashansneey kaary k liye natmastak hun.
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