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सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका (भाग-२)

बदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका (भाग-२)

अनुवादकों की भूमिका- चुनौतीपूर्ण

परिवर्तन के इस दौर में अनुवादकों की भूमिका काफी चुनौतीपूर्ण है। अनुवाद में स्रोत भाषा के अर्थ या संदेश का लक्ष्य भाषा में सम्प्रेषण ही मुख्य बात है। समरूपता की दृष्टि से दो भाषाओं में संरचनात्मक अंतर स्वाभाविक है। अनुवाद में स्रोत भाषा में कही गई बात को लक्ष्य भाषा में व्यक्त करने के लिए लक्ष्य भाषा के समतुल्य शब्द, भाव और कथ्य ही अनुवादक का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। एक भाषा के पाठ की भाषिक व्यवस्था का दूसरी भाषा की भाषिक प्रतीक व्यवस्था में रूपांतरण अनुवाद कहलाता है। स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में अंतरण समतुल्यता के आधार पर किया जाता है। समतुल्यता के सिद्धांत के सार्थक निर्वाह के बिना सफल अनुवाद संभव नहीं होता। प्रत्येक भाषा का प्रत्येक शब्द अपने-आप में एक प्रतीक होता है और वह एक विशिष्ट प्रकार का आशय अथवा अर्थ ध्वनित करता है। सिद्धांतत: दो प्रतीक एक जैसे अर्थ के वाहक नहीं होते। अंग्रेजी में वाटर और एलीफैंट के लिए क्रमश: पानी और हाथी समान्य पर्याय हैं। किंतु क्रमश: नीर, अंबु या तुरंग, गज आदि शब्दों को अंग्रेजी शब्दों के सामान्य पर्याय के रूप में ग्रहण नहीं किया जा सकता क्योंकि इन शब्दों की अपनी-अपनी अर्थ ध्वनियां हैं। अनुवादक को लक्ष्य और स्रोत दोनों ही भाषाओं में शास्त्रीय दृष्टि से पारंगत एवं सृजनात्मक दृष्टि से सक्षम होना चाहिए। तभी उसे दोनों भाषाओं के शब्दों और मुहाबरों का ज्ञान हो सकता है। एक ही भाव लिए बहुत समानार्थी शब्द मिल सकते हैं पर वे भिन्न- भिन्न स्थियों को सूचित करते हैं। अत: उनका प्रयोग बहुत सोच-समझ कर करना होता है। मुहाबरों का अनुवाद नहीं हो सकता। अनुवादकों को लक्ष्य भाषा में वैसे ही अर्थ देने वाले मुहावरे ढ़ूंढ़ने होंगे।किसी की आंख का नूर हँ का अनुवाद “the light of one’s eye” न होकर “the apple of one’s eye” होगा।

भाषा न कठिन होती है न सरल, सहज या असहज। कैसा भी कठिन शब्द निरंतर प्रयोग के बाद सहज हो जाता है और अपना बन जाता है। अनुवादक को भाषा की सरलता और जटिलता से ऊपर उठकर सहज भाषा में अनुवाद करना चाहिए। जब अनुवादक सहज भाषा में काम करने लग जाता है तो वह सर्जक हो जाता है। आज अनुवाद का क्षेत्र काफी बढ़ गया है। आज अनुवाद न तो घटिया किस्म का रोजगार रहा और न कामचलाऊ चीज़। आज वह विभिन्न भाषाओं के विस्तार का संसाधन बन गया है। आज विश्‍व का एक दूसरे से परिचय अनुवाद के परिचयपत्र के माध्यम से हो रहा है। अनुवाद आज सांस्कृतिक साहित्यिक राजदूत की भूमिका निभाता है।

हिंदी आज विविध रूपों में प्रयोग की जाती है। इस विविधता में सौंदर्य भी है, शक्ति भी है। अब यही विविधता अनुवादों की दुरुहता के कारण आम आदमी की उपेक्षा करने लगे तो वह कुरूपता और दुर्बलता का प्रतीक बन जाएगी। अत: अनुवादकों को संस्कृत के भारी-भरकम शब्दों के उपयोग से बचना चाहिए। लंबे वाक्यों को दो या दो से अधिक छोटे वाक्यों में बदलकर लिखना चाहिए। संसार में लगभग तीन हज़ार भाषाएं लिखी जाती हैं। इन भाषाओं में उपलब्ध सभी प्रकार के ज्ञान को एक-दूसरे तक पहुँचाने का माध्यम अनुवाद है। अनुवाद एक भाषा को दूसरी भाषा में लिख देना मात्र नहीं है। यह वह विधा है जिसमें अनुदित रचना स्वतंत्र एवं मौलिक लगे। वह सार्थक और मूल रचना के समग्र अर्थ में होना चाहिए। अत: अर्थ की परिशुद्धता अनुवाद का मूल मंत्र है। उत्कृष्ट अनुवादक वही है जो स्रोत और लक्ष्य भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों का भी ध्यान रखे। समाज जिस अर्थ में किसी शब्द का प्रयोग करता है अनुवादक को भी उसी अर्थ में उस शब्द का प्रयोग करना चाहिए। स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दो समानान्तर रेखाएं हैं। उनकी परस्पर दूरी को कम करने का प्रयास अनुवाद है। अनुवादकों को अपनी भाषा में देशी, प्रांतीय और सहज शब्दों को लेना चाहिए तभी हिंदी और हिंदीतर भाषाईयों के बीच की दूरी कम होगी।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. एक सार्थक एवं सारर्गर्भित लेख।

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  2. अनुवाद को सरल,सहज और उत्कृष्ट तभी बनाया जा सकता है, जब मूल पाठ की आत्मा को आत्मसात कर लिया जाए तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र का अनुवाद करते समय उस ज्ञान-विज्ञान की शाखा विशेष की जटिलताओं का आधारभूत ज्ञान अर्जित कर लिया जाए । अनुवाद कोई खाला जी का घर नहीं, जिसमें हरकोई सफल हो जाए । स्वयं के मन-मस्तिष्क से लेकर आत्मा का परिवर्तन तक अनुवाद में होता है । अनुवाद मूल सृजन से भी अधिक कठिन कार्य है, क्योंकि इसमें व्यक्ति को एक साथ दो भाषाओं के अंत:स्थल में घूसना पड़ता है ।

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  3. सही है जब तक सबके समझ मे ना आये कैसा अनुवाद?

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  4. In a modern world a language script may disappear like MODI Script(Marathi) if not made simple and translatable using simple words.If China can simplified it's writing script why not Hindi script can be simplified by using Gujarati Script or Roman script?For foreigners, Gujarati script is lot more easier to learn than Hindi Script.

    Most Indian states don't want to give up their state language scripts but they can learn Hindi in IAST Roman Script.This way each state will have two languages script formula.

    As long as Urdu is not written in Devanagari Script,Hindi will not be popular in non Hindi states.

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