हिंदी अपनाएँ : समृद्ध भाषा को समृद्धतर बनाएं
टूटे सुजन मनाइए जो टूटे सौ बार ।
रहिमन फिर फिर पोहिए, टूटे मुक्ताहार ।।
उत्तम विचार.
पहली बार पढ़ा आपका ब्लाग मनोज भाई , विशिष्ट लगा अपने क्षेत्र में , आपका यह प्रयास प्रसंशनीय है , शुभकामनायें !
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...मनोज
मनोज भाई, यह काम भी आप अच्छा ही कर रहे हैं!
आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें
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जवाब देंहटाएंमनोज
मनोज भाई, यह काम भी आप अच्छा ही कर रहे हैं!
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