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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

वाइरस-एंटीवाइरस

वाइरस-एंटीवाइरस

आजकल कंप्यूटर हमारे दैनिक काम-काज का अहम हिस्सा बन गया है। कंप्यूटरों के प्रचलन के साथ-साथ वाइरस, एंटीवाइरस, मैलवेयर, स्पाईवेयर आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो तेज़ी से लिये जा रहे हैं।

कंप्यूटर वाइरस शब्द लैटिन शब्द viron (विरोन) से निकला है। VIRON का अर्थ होता है ’ज़हर’।

VIRUS को Very Important Resources Under Siege शब्द का संक्षिप्त भी माना जाता है।

वाइरस की उत्पत्ति की घटना बहुत रोचक है। कुछ सॉफ़्टवेयर इंजीनियर सॉफ़्टवेयरों के लिये कुछ कोड बनाते थे। उनके साथी उनके साथ खेल करने लगे। वे सहयोगी मज़ाक़- मज़ाक़ में उन कोडों को विफल कर देते। यह एक खेल था। एक कमरे में खेला जा रहा था। हां, यह खेल बड़े ही दोस्ताना माहौल में खेला जा रहा था। इस खेल को बहुत दिनों तक गुप्त रखा गया।

एक बार एक सेमिनार में सॉफ़्टवेयर की सुरक्षा संबंधी बहस चल रही थी, तो यह बात गुप्त न रह सकी। यह बताया गया कि किसी सॉफ़्टवेयर के कोडों को यदि तोड़-मरोड़ कर नये ढ़ंग से लिखा जाये तो वह सॉफ़्टवेयर अपने स्वाभाविक रूप में कार्य नहीं करेगा। ऐसा भी हो सकता है कि वह चालू ही ना हो, या फिर यह भी संभव है कि उसकी फाइलें विकृत (corrupt) ही हो जाएं। ऐसी स्थिति में जो उस सॉफ़्टवेयर का प्रयोग कर रहा है उसे अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

कंप्यूटर वाइरस क्या है? यह मूलत: एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है जो अपने आप ही अपनी प्रति (कॉपी) करके कंप्यूटर प्रयोग करने वाले व्यक्ति की जानकारी के बिना ही उस कंप्यूटर को प्रभावित कर देता है। इसके लिये सामान्यत: वाइरस शब्द का प्रयोग किया जाता है। किन्तु इसमें कई प्रकार के प्रोग्राम हैं, जैसे मैलवेयर, स्पाईवेयर, एडवेयर। ये वाइरस प्रोग्राम अपने आप ही फैलते रहते हैं। इसके अलावा ये किसी फ्लॉपी डिस्क, सी.डी., डीवीडी, या यूएसवी ड्राइव के माध्यम से भी फैलते हैं।

आजकल इंटरनेट के माध्यम से वाइरस काफ़ी तेज़ी से फैल रहा है। जब हम ब्राउज़िंग, सर्चिंग या ई-मेल करते हैं तो इस माध्यम से कंप्यूटर वाइरस फैल सकता है। इस माध्यम से फैला वाइरस किसी सिस्टम में सिस्टम फाइलों को प्रभावित करता है। इस तरह यह नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटर की फाइलें विकृत कर सकता है। लोकल एरिया नेटवर्क से जुड़े अन्य कंप्यूटरों में भी इन वाइरसों को फैलने में आसानी होती है। यदि हम ऐसे संक्रमित प्रोग्राम को चलाते हैं तो वाइरस अपने आप ही पूरे सिस्टम फैल जाता है। इस प्रकार वह फाइलों को विकृत कर देता है।

वाइरस के कई प्रकार होते हैं। एक प्रकार मास्टर बूट रिकार्ड वाइरस है। अधिकांश कंप्यूटर वाइरस कंप्यूटर के मास्टर बूट रिकार्ड को संक्रमित करते हैं। इससे कंप्यूटर को चालू करने में देरी होती है। कई बार तो कंप्यूटर चालू ही नहीं होता।

एक अन्य प्रकार है संक्रमण वाइरस। ये वाइरस कंप्यूटर में जो *.exe, *.com, एक्स्टेंशन वाली फाइलें होती हैं उन्हें संक्रमित करते हैं। फिर यह अपने आप ही फैलते रहते हैं।

और भी कई प्रकार के वाइरस हैं, आजकल तो मैलवेयर, स्पाईवेयर, एडवेयर या सामान्य फाइल के रूप में भी वाइरस फैल सकता है।

इस संक्रमण/आक्रमण से निपटने के लिये ऐसे प्रोग्राम तैयार किये जा रहे हैं जो कंप्यूटर में ऐसी संक्रमित फाइलों या प्रोग्राम को पहचान लेता है इसके साथ ही वह उसी तरह की कोडिंग किए गए प्रोग्रम को फिर से इंस्टॉल होने से रोकता है।

किन्तु दुष्ट क्या अपनी करतूतों से बाज़ आने वाले हैं? वे वाइरस फैलाने के लिये रोज़ नये-नये कोड वाले प्रोग्राम लिख रहे हैं। इसका नतीज़ा यह होता है कि पुराने पड़ चुके एंटीवाइरस उन्हें डिलिट नहीं कर पाते। ये उनकी पहचान नहीं कर पाते। पहचान कर भी लें तो उन्हें डिलिट करने के लिये उनके पास पर्याप्त कोड नहीं होते। इसलिए यह अत्यंत ही आवश्यक है कि हम अपने एंटीवाइरस प्रोग्राम को हमेशा अद्यतन रखें। आज बाज़ार में अनेक प्रकार के एंटीवाइरस उपलब्ध हैं। इनमें से कई एंटीवाइरस मुफ़्त भी इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।

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