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रविवार, 9 मई 2010

काम करती मां

माँ के दूध से बढ़ कर कोई मिठाई और माँ के आँचल से बढ़ कर कोई रजाई नहीं होती। "मातृ देवो भवः !"  माँ.... धात्री ! अपने जीवन के कीमत पर हमें जीवन देती है। अपने रक्तसे सींच हमारा पोषण करती है। संस्कारों से सुवाषित कर 'जड़ता' नाश करती है। साक्षात ब्रहमा, विष्णु, महेश.... ! 9मई को विश्व मातृ-दिवस मनाया जाता है। मुझे आश्चर्य है कि जिसके बिना हमारा वजूद नहीं है, उसको समर्पित सालमें मात्र एक दिन.... ! फिर भी काम करती मां शीर्षक कविता के साथ उस परब्रह्म रूप को सिर नवाते हैं। विश्व मातृ-दिवस पर माँ तुझे सलाम !!

काम करती मां

                                                              --- --- मनोज कुमार   

जब मां आटा पीसती थी

तो सिर्फ अपने लिए ही नहीं पीसती थी,

सबके लिए पीसती थी,

झींगुर दास के लिए भी !

मां जब झाड़ू देती थी

तो सिर्फ घर आंगन ही नहीं बुहारती थी

ओसारा, दालान और

झींगुर दास का प्रवास क्षेत्र भी बुहार देती थी।

मां जब बर्तन धोती थी

तो सिर्फ अपना जूठन ही नहीं धोती थी

घर के सभी लोगों के जूठे बर्तन धोती थी

झींगुर दास के चाय पिए कप को भी !

 J0145168 काम करती मां का चेहरा

खिले फूल की तरह होता था

जिसकी सुगंध पर सबका हक़ था

झींगुर दास का भी !

उस फूल की सुगंध सबके लिए होती थी

झींगुर दास के लिए भी !

अब समय बदल गया है

घर के काम के लिए  बाई है

वह झाड़ू, पोछा, चौका-बर्तन कर देती है

पर मां

अपना घर आज भी बुहार रही है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की महिमा अवर्णीय! कोटि कोटि प्रणाम!

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  2. भाव-भीनी कविता के साथ उस परब्रह्म रूप को सिर नवाते हैं। विश्व मातृ-दिवस पर - माँ तुझे सलाम !!

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  3. बहुत ही उम्दा व भावपूर्ण रचना लगी ।

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